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21वीं सदी दो महत्वपूर्ण घटनाओं की साक्षी बनी जहां विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में एक चाय वाले के बेटे नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बने वहीं विश्व के सबसे पुराने लोकतंत्र अमरीका में एक अश्वेत बराक ओबामा राष्ट्रपति बने। 21वीं सदी का प्रारंभ एक वैश्विक अर्थव्यवस्था की उदय के साथ हुआ था जो वैश्विक आतंकवाद और बढ़ते वैश्विक ताप के साथ-साथ निजी उद्यमिता को बढ़वा देने वाला था। इसके साथ ही 21वीं शताब्दी सोवियत संघ की अनुपस्थिति में अमरीका को पूर्ण विश्वशक्ति के रूप में स्थापित करने में सहायक रही। चीन अपनी समृद्ध अर्थव्यवस्था से आगे बढ़ते हुए अमरीका के सकल घरेलू उत्पाद के करीब पहुंच गया। आर्थिक रूप से भारत भी विश्व मंच पर सशक्त लोकतंत्र के साथ तेज आर्थिक विकास की ओर बढ़ता हुआ अमरीका और चीन की कतार में शामिल होने के करीब है। चंद्रयान और मंगलयान का सफल अभियान पूरे विश्व को यह बता चुका है कि भारत तकनीक के क्षेत्र में विशिष्ट भूमिका निभा रहा है।
अप्रवासी भारतीय भी भारत की इस विकास यात्रा और नवोन्मेश में सहभागी हैं। डिजिटल दुनिया के कई महत्वपूर्ण उपकरण जैसे – लैपटॉप, मोबाइल, कैमरा, पेंटियम चिप्स, यूएसबी कनेक्टर, ग्राफिक एक्सलरेटर कार्ड, वीडियो प्रोजेक्शन के लिए एमपीईजी4, हाई डेफिनेशन टीवी सेट और तेज गति से डाटा अंतरण करने वाले ऑप्टिक फाइवर- विनोद धाम, अजय भट्ट, अरुण नेत्रावली और डॉ. नरेन्द्र सिंह कपानी जैसे भारतीयों द्वारा आविष्कृत किये गये हैं। प्रणव मिस्त्री, सत्यनारायण नडेला, इन्दिरा नूयी, सुन्दर पिचई, विक्रम पंडित और ऐसे ही कई लोग सैमसंग, माइक्रोसॉफ्ट, पेप्सिकोला, गूगल और सिटी बैंक आदि बहुराष्ट्रीय उपक्रमों का नेतृव कर रहे हैं। त्रिनिदाद के वी.एस. नायपाल और अमरीका के वेंकटरामन रामकृष्णन 21वीं शताब्दी में साहित्य और रसायन में अपने विशिष्ट योगदान के लिए नोबेल पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं। अगस्त 2014 में कनाडा के भारतीय गतिणतज्ञ मंजूल भार्गव प्रतिष्ठित फील्ड मैडल जीत चुके हैं।
अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा अपने साथ चार भारतीयों को मुख्य भूमिका में रखते हैं। 20 मई 1968 को जन्मे एक अमरीकी अर्थशास्त्री और सरकारी अधिकारी सोनल आर. शाह को अप्रैल 2009 से अगस्त 2011 तक व्हाइट हाउस में सामाजिक नवोन्मेश और जनसहभागिता कार्यालय में निदेशक का दायित्व निभा चुके हैं। शाह जॉर्ज टाउन यूनिवर्सिटी के बीक सेंटर फॉर सोशल इंपैक्ट एण्ड इन्नोवेशन के संस्थापक कार्यकारी निदेशक रहे हैं। जब अमरीका में अरबों डॉलर का वित्तीय संकट पैदा हुआ तब तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने अक्तूबर 2008 में एक कश्मीरी पंडित नील कासकारी को आर्थिक स्थिरता के नये कार्यालय का प्रमुख नियुक्त किया था। 2009 में ओबामा टीम ने भी उन्हें कुछ और समय के लिए इसी दायित्व में रखा ताकि संक्रमण काल में वे उबार सकें। वाशिंगटन डीसी में कई भारतीय सत्ता की गलियारों में देखे जा सकते हैं। खेल प्रतिभाओं में भारतीय-मॉरीशस मूल के फ्रांसवासी विकास धोरासू विश्व कप फुटबाल टीम के सदस्य रहे। वह विश्व कप फुटबाल में खेलने वाले पहले भारतीय हैं। इसी प्रकार बख्तावर (बक) सिंह समराई सिख मुक्केबाज हैं जिन्होंने 1964 में टोक्यो ओलम्पिक खेलों में आस्ट्रेलिया की मुक्केबाजी टीम के सदस्य बने।
एलेक्सी सिंह ग्रेवाल भारत-अमरीकी मूल की साइकिल खेल ओलम्पिक स्वर्ण पदक विजेता हैं। इसी प्रकार 1997 और 2001 में अमरीका की ओर से विश्व चैम्पियनशिप जिमनास्टिक प्रतियोगिता में रजत पदक और संयुक्त रूप से दूसरा स्थान पाने वाली मोहिनी भारद्वाज भारत मूल की हैं। इसी प्रकार 2008 के ओलम्पिक खेल में कांस्य पदक जीतने वाले अमरीका के जिमनास्ट संजय राज भावसर भारतीय मूल के हैं। वेस्टइंडीज टीम के कप्तान रहे रोहन कन्हाई और अल्विन कालीचरण के अलावा वर्तमान टीम सदस्य- शिवनारायण चंद्रपॉल, डेरेन गंगा, महेंद्र नागमुत्तू, रामनरेश सरवन, सोनी रामदीन, दिनेश रामदीन, रवि रामपॉल और सुनील नारायण आदि भारतीय मूल के हैं।
राजनीतिक क्षेत्र में भी अप्रवासी भारतीय विश्व भर में नेतृत्व कर रहे हैं। भारतीय मूल के कई व्यक्ति राष्ट्र प्रमुख हैं या अपने देश का विशिष्ट रूप में प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। गुयाना के छेदी जगन और भरत जगदेव, मॉरीशस के सर शिवसागर रामगु़लाम और सर अनिरुद्ध जगन्नाथ,न्यूजीलैंड के डॉ. आनन्द सत्यानंद, सिंगापुर के देवन नायर और एस आर नाथन अपने-अपने देशों के राष्ट्रपति रह चुके हैं। आर. सरजोई सूरीनाम के गणतंत्र के उपराष्ट्रपति रहे हैं, इसी प्रकार त्रिनिदाद के वासुदेव पांडे और श्रीमती कमला प्रसाद बिसेसर, फिजी के महेंद्र चौधरी और मॉरीशस के डॉ. नवीनचंद्र राम गुलाम प्रधानमंत्री रहे हैं। कनाडा, जमैका, मलावी, मलेशिया, मोजाम्बिक और दक्षिण अफ्रीका में भारतीय अपनी क्षमता के अनुसार मंत्री के रूप में कार्य कर रहे हैं। ब्रिटिश संसद में पहले भारतीय सांसद दादा भाई नौरोजी थे जो लेबरल पार्टी के सदस्य थे। उसके बाद कई भारतीय लेबर, लिबरल और कंजर्वेटिव पार्टी के माध्यम से सांसद बने।
दलीप सिंह सौंद (1899-1973) अमरीका में हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव्स के सदस्य थे। उन्होंने 3 जनवरी 1957 से 3 जनवरी 1963 तक 3 बार चुने जाने के बाद केलीर्फोनिया के 29वें जिले की सेवा की। अमरीकी कांग्रेस में निर्वाचित होने वाले वे पहले एशियाई अमरीकी/भारतीय अमरीकी थे। वर्तमान में बॉबी जिंदल लुईिसयाना के गवर्नर हैं।
1972 में जन्मीं लीसा राजनीतिज्ञ हैं जो लेबर पार्टी की सदस्य और तस्मानिया से आस्ट्रेलियाई सीनेट हैं। 1929 में मुम्बई में जन्मे गोवा के फिट्ज डिसूजा 1960 में केन्या की संसद के सदस्य बने और बाद में कई वर्षों तक वहां की संसद के उपसभापति रहे। भारतीय प्रतिभाएं इसके साथ ही अन्य क्षेत्रों में भी नेतृत्व कर रही हैं। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्टैण्डर्ड, अमरीका की निदेशक सुश्री आरती प्रभाकर व्हाईट हाउस में काउंसलर सुश्री प्रीता बंसल, अंतरिक्ष यात्री कल्पना चावला और सुनीता पंड्या आदि ने पश्चिम के विश्व में यह प्रमाणित किया कि हिन्दू नारी किसी भी चुनौती को स्वीकार कर सकती है। इस प्रकार पूरे विश्व में अप्रवासी भारतीय अपनी प्रतिभा और क्षमता के बल पर भारत देश का नाम और उसका गौरव बढ़ा रहे हैं। -रवि कुमार
(लेखक सेवा इंटरनेशनल के सह संयोजक हैं)
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