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इन दिनों अपने देश में एक बार फिर से कन्वर्जन की चर्चा जोरों पर है। अकाल और बाढ़ की तरह यह भी देश की एक ऐसी समस्या है जो समय-समय पर उठती रहती है। लेकिन कबूतर के आंख बंद कर लेने से जिस प्रकार बिल्ली नहीं चली जाती, उसी प्रकार उक्त समस्या का भी अंत आता हुआ नहीं दिखलाई पड़ रहा है। ईसाई मिशनरी और इस्लामी तब्लीग का जबसे आगमन अपने देश में हुआ है तबसे यह दूषण वातावरण में विष घोल रहा है। जोर जबरदस्ती से किसी की आस्था का खरीद फरोख्त करना मध्य पूर्व से आने वाले इन दोनों देशों की बुनियादी रीति नीति रही है। पाकिस्तान निर्माण के बाद कुछ वर्षों तक तब्लीगियों की तलवार म्यान में चली गई थी लेकिन ईसााई मिशनरियों द्वारा चलाए जाने वाले कन्वर्जन की मुहिम कभी ठंडी नहीं पड़ी है। आजादी के पश्चात नागपुर में जब हमारे संविधान के निर्माता बाबा साहेब अम्बेडकर ने स्वयं आगे चलकर अपनी आस्था बौद्ध मत के साथ जोड़ ली उसके पश्चात उन सैकड़ों अनुयाइयों ने भी बौद्ध पंथ से रिश्ता जोड़ लिया। हिन्दू और बौद्ध एक ही संस्कृति से जुड़े हुए हैं इसलिए इस कन्वर्जन में राष्ट्रांतरण का खतरा नहीं था। उस समय न तो कानून बनाने की आवश्यकता पड़ी और न ही उसके पीछे किसी राजनीति की गंध को महसूस किया गया। देश की सुरक्षा और संस्कृति को कोई खतरा न देखकर प्रतिक्रिया का प्रश्न ही पैदा नहीं हुआ,लेकिन ईसाई मिशनरी और तब्लीगियों के हथकंडों में देशद्रोह की गंध थी इसलिये भारतीय समाज में उक्त आंदोलन के सम्बंध में अनेक सवाल खड़े किए जाने लगे। पिछले दिनों आगरा में जो मुसलमान परिवारों द्वारा हिन्दू धर्म को अंगीकार कर लेने की घटना घटी उस पर तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिली है। हिन्दू हितों के लिए काम करने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की छतरी तले जो हिन्दू संगठन काम करते हैं उनके पास जब कुछ मुसलमान परिवारों ने अपनी पुरानी आस्था को छोड़कर पुन: हिन्दूधर्म में शामिल होने का निर्णय किया तो एक तूफान उठ गया। कन्वर्टेड लोगों का यह तर्क है कि उनके पूर्वज हिन्दू थे इसलिए उनके घर लौट आने वाली घटना को कन्वर्जन की संज्ञा नहीं दी जा सकती है। योगायोग इस घटना के समय भारतीय जनता पार्टी केन्द्र में पूर्ण बहुमत के साथ सत्तासीन है, इतना ही नहीं पिछले दिनों जहां भी राज्य विधानसभा के चुनाव हुए हैं वहां भी भाजपा की सरकारों का उदय हुआ है। इस जीत से अन्य राजनीतिक दलों का निराश होना स्वाभाविक है। वे अपने अस्तित्व के लिए खतरा देखकर इसका विरोध कर रहे हैं यह उनके लिए स्वाभाविक है। मोदी सरकार को अपमानित और बाधित करने के लिए वे कटिबद्ध हैं। ऐसी स्थिति में उस समाज के लोगों का कन्वर्टेड हो जाना जो कि कल तक उनका वोट बैंक थे, निश्चित ही उनके लिए बिजली के झटके से कम नहीं है।
भारत के वे राजनीतिक दल जो कल तक सत्ता में थे, उनके वोट बैंक में सेंध लगाकर वे भविष्य में भाजपा के मतदाता बन जाएं यह कैसे सहन कर सकते हैं? इसलिए हिन्दू समाज के पक्ष में हुए मतांतरण का वे विरोध कर रहे हैं। कल तक भाजपा और संघ परिवार जिन तथ्यों को सामने रखकर कन्वर्जन का विरोध किया करते थे, वही लोग अब इस नई मुहिम का विरोध करने लगे हैं। मुस्लिम समाज द्वारा हिन्दुत्व को अपनाने का अर्थ है कांग्रेस, समाजवादी और साम्यवादी जो अपने आप को वामपंथी कहते हैं उनके लिए राजनीतिक क्षेत्र में हड़कंप पैदा करना। कन्वर्जन के इस मामले का यदि राजनीतिक दृष्टि से विश्लेषण किया जाए तो यही परिणाम सामने आता है कि मुस्लिम वोट बैंक सरक जाने का यह विलाप और मातम है। घर वापसी करने वाले परिवार जो आवाज बुलंद की है उससे वामपंथी दलों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। संक्षेप में कहा जाए तो यह धर्म की आड़ में राजनीतिक लड़ाई है। भूतकाल में ईसाइयों और मुसलमानों ने जिस हथियार के बल पर अनेक देशों में अपनी सत्ता कायम की है, यदि अब सनानत धर्म अपना दायित्व समझकर इस काम में हस्तक्षेप कर रहा है तो फिर उसे किस दलील के तहत रोका जा सकता है? यहां एक बात और भी बतलाना अनिवार्य है कि पिछले दिनों सीएनएन के माध्यम से प्रसिद्ध पत्रकार फरीद जकरिया ने अनेक उदाहरण प्रस्तुत कर यह बात कही है कि मुस्लिम जगत में पिछले दिनों जो क्रूर घटनाएं घटी हैं उन्हें अंजाम देने वाले केवल और केवल नए-नए कन्वर्टेड मुसलमान ही थे। पिछले दिनों कनाडा के राष्ट्रीय स्मारक के सामने कनाडा के सैनिक को एक व्यक्ति ने गोली मार दी। खोजने पर पता चला कि उस व्यक्ति को कुछ ही माह पूर्व इस्लाम में कन्वर्टेड किया गया था। क्यूबेक में कनाडा के सैनिक को कुचलकर मार देने वाला थांप्सन भी कुछ ही समय पूर्व कैथोलिक से मुसलमान बना था। फरीद जकरिया का स्पष्ट मत है कि समस्या इस्लाम के भीतर की है। जिहादी मनोवृत्ति उन्हें यह करने के मामले में प्रेरित करती है। दि न्यूयार्क टाइम्स में छपे माइकल जोइफ बिबेयू के जीवनवृत्त से पता चलता है कि वह जब 16 साल का था तो लोगों के क्रेडिट कार्ड चुराया करता था और मादक पदार्थों के धंधे में लिप्त रहता था। जोइफ कुछ दिन पहले ही मुसलमान बना था और अपने भीतर कट्टरपंथ का तूफान लेकर जिहाद में शामिल होने के लिए सीरिया जाना चाहता था।
आगरा के जिन मुसलमान बंधुओ ने इस्लाम स्वीकार किया वे निश्चित ही अच्छे नागरिक होंगे और जीवन में मां भारती के लिए अपना योगदान भी देंगे लेकिन जब हम कन्वर्टेड होने वाले लोगों के विषय मंे इस प्रकार के समाचार पढ़ते हैं तो चिंता होना भी स्वाभाविक है, लेकिन अपनी घर वापसी के पश्चात वे देश के लिए वफादार बनकर अपनी सेवाएं देगें। हिन्दू समाज इस बात का भी दावा कर सकता है कि हम समाज और व्यक्ति को हिन्दुत्व के परिवेश में सभ्य नागरिक बनाने का भी दमखम रखते हैं। हिन्दुत्व का सुदृढ ढांचा निश्चित ही मनुष्य के स्वभाव में परिवर्तन लाता है। इस आधार पर ही राजनैतिक धर्म और प्राकृतिक धर्म में अंतर किया जाता है। कन्वर्टेड करने वाले और होने वाले दोनों के लिए यह चुनौती है। देश के राजनीतिक परिदृश्य पर नजर दौड़ाएं तो पिछले दिनों शिवसेना और भारतीय जनता पार्टी ने एकता के सूत्र में बंधकर महाराष्ट्र के विकास की शपथ ली है।
इसी प्रकार शरद पवार ने कांग्रेस के साथ हाथ मिलाना तय किया है। इन दोनों के वोट बैंक मुस्लिम मतदाता हैं,लेकिन क्या मुस्लिम मतदाता अब कांग्रेस के निकट आएंगे? स्थिति यह बतला रही है कि अब मुस्लिम मतदाताओं का रुझान बदलाव है। देशभर यहां तककि जम्मू-कश्मीर तक में भजपा से मुसलमानों को परहेज नहीं रहा। आनेवाले वक्त में कांग्रेस और राकांपा मुसलमानों का कितना समर्थन प्राप्त कर सकंेगी यह एक बड़ा सवाल है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले दिनों बंगलादेश के माध्यम से एक बड़ा संदेश दिया है। उन्होंने 1974 के भू-सीमा समझौते को लागू करने की घोषणा की है। इस समझौते के अंतर्गत भारत अपनी सीमा में स्थित बंगलादेश के 51 भू-प्रकोष्ठ ले लेगा और उसकी सीमा में स्थित 111 भारतीय भू-प्रकोष्ठ उसे दे देगा। स्पष्ट है कि इस लेनदेन में भारत की 17000 एकड़ जमीन जाएगी और उसके बदले में 7000 एकड़ जमीन मिलेगी। उसे 28 किलोमीटर के स्थान पर 70 किलोमीटर जमीन देनी पड़ेगी। इससे सीमा के आरपार इन प्रकोष्ठों में रहने वाले 51 हजार लोगों को राहत मिलेगी।
इस समय दोनों प्रकोष्ठों के लोग मुक्त रूप से अपने-अपने देशों में आ जा नहीं सकते। हमारे संविधान में संशोधन न होने के कारण यह समझौता अब तक लागू नहीं हो सका है। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के साहस और दूरदर्शिता की प्रशंसा करनी ही पड़ेगी कि इस मामले में अपना दो टूक निर्णय करके उन्होंने दोनों देशों की जनता को राहत दी है। पाकिस्तान और भारत के कट्टरपंथी जो मोदी को मुस्लिम विरोधी बतलाते हैं उनके गाल पर बंगलादेश के साथ भारत का यह समझौता एक करारा तमाचा है।
-मुजफ्फर हुसैन
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