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भारतीय क्रिकेट में जब तक खूब पैसे नहीं थे, तब तक यह खेल भद्रजनों का खेल बना रहा। लेकिन जैसे ही इसमें धनवर्षा शुरू हुई, भ्रष्टाचार ने भी पैर पसारने शुरू कर दिए। सट्टेबाजों की चांदी हो गई। उन्होंने खिलाडि़यों पर डोरे डालने शुरू कर दिए।
प्रवीण सिन्हा
हुत ज्यादा समय नहीं गुजरा है जब भारतीय क्रिकेट हर लिहाज से ऊंचाइयों को छू रहा था। एकदिवसीय विश्व कप हो या आईसीसी टी-20 विश्व खिताब या फिर चैंपियंस ट्रॉफी, हर तरह के प्रतिष्ठित खिताब भारत के नाम थे। इस बीच, इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) का पदार्पण हुआ। उसकी चमक ऐसी उभरी कि विश्व के तमाम धुरंधर इस मंच से जुड़ते चले गए। आईपीएल ने विश्व क्रिकेट के महामेले का रूप ले लिया, जहां चौकों-छक्कों की झड़ी के साथ आयोजकों व क्रिकेटरों पर अकूत धनवर्षा होने लगी। भारतीय क्रिकेट में पैसे और 'तड़क-भड़क' की चकाचौंध से विश्व क्रिकेट अछूता नहीं रह सका लेकिन रातोंरात मिली प्रसिद्धि और अकूत धनवर्षा ने भारतीय क्रिकेट को ऐसा झिंझोड़ा कि अब इसकी स्थिति एक परकटे पंछी की तरह हो गई है। उनकी ऊहापोह की सी स्थिति बन गई है। भारत में आईपीएल 'स्पॉट फिक्सिंग' व 'मैच फिक्सिंग' को लेकर सर्वोच्च न्यायालय में चल रही सुनवाई के दौरान नित उभरते नए तथ्यों और भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के शीर्ष पद पर बने रहने की निर्वासित अध्यक्ष एन श्रीनिवासन की जिद ने क्रिकेटप्रेमियों को ऐसी स्थिति में ला खड़ा किया है कि अब क्रिकेट न तो निगलते बन रहा है और न ही उगलते। भारतीय क्रिकेट जगत में एक सन्नाटा सा पसरा है। यह ठीक वैसा ही सन्नाटा है जैसे तूफान आने से पहले होता है।
भारतीय क्रिकेट की वर्तमान स्थिति वैसी नहीं है, जैसी दिख रही है। इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) की महत्वाकांक्षी योजना ने वर्ष 2008 में मूर्तरूप लिया तो लगा विश्व क्रिकेट पर भारत का आधिपत्य जमना तय है। कुछ ही समय में कमोबेश ऐसी स्थिति आ भी गई। उस समय एक आम भारतीय क्रिकेटर भी करोड़पति बन गया और विदेशी क्रिकेटर तो जितना अपने पूरे कॅरियर में कमा पाते, उतनी राशि वे आईपीएल का एक सत्र खेलने से कमाने की स्थिति में आ गए। जाहिर है, आईपीएल के रूप में एक ऐसा मंच तैयार हो गया जिसमें शामिल होने के लिए विश्व के तमाम शीर्षस्थ क्रिकेटरों की लंबी लाइन लग गई। जब एक ही मंच पर दिग्गज खिलाडि़यों की भरमार हो तो उस आईपीएल को सफल होने से कौन रोक पाता? आईपीएल ने पहले ही सत्र से क्रिकेट प्रेमियों को दीवाना बना दिया। लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया, आईपीएल की अपार सफलता के साथ भ्रष्टाचार ने भी पैर पसारने शुरू कर दिए। हद तो तब हो गई कि एन श्रीनिवासन और उनके करीबी लोगों के कुकृत्यों के परत दर परत खुलने के बावजूद बीसीसीआई अध्यक्ष पद पर बने रहने के लिए उन्होंने तमाम हथकंडे अपनाए और आज भी वे उसे हासिल करने के लिए अड़े हुए हैं। उन्होंने बीसीसीआई के अंदर अपने समर्थकों को इस कदर भर दिया है कि आज भी उनके लिए 'वोट' हासिल करना चुटकियों का खेल है। यही नहीं, अपने रसूख के बलबूते उन्होंने आईपीएल पर एक तरह से कब्जा सा कर रखा है। आईपीएल की सबसे मजबूत टीम के रूप में चेन्नई सुपर किंग्स को खड़ा कर चुके हैं, जबकि भारतीय टीम के अंदर उनके पसंदीदा खिलाडि़यों की एक लंबी कतार है लेकिन अब श्रीनिवासन पर कानूनी शिकंजा कसता जा रहा है, बीसीसीआई के अंदर उनका एकछत्र राज लगभग समाप्त होने को है।
बहरहाल, भारतीय क्रिकेट में जब तक खूब पैसे नहीं थे, तब तक यह खेल 'भद्रजनों का खेल' बना रहा, लेकिन जैसे ही इसमें धनवर्षा शुरू हुई, भ्रष्टाचार ने भी पैर पसारने शुरू कर दिए। सट्टेबाजों की चांदी हो गई। उन्होंने खिलाडि़यों पर डोरे डालने शुरू कर दिए और देखते ही देखते खिलाडि़यों सहित आईपीएल फ्रेंचाइजी टीम के मालिक भी उन सटोरियों व सट्टेबाजों की गिरफ्त में आते चले गए। हालांकि सट्टेबाजी को लेकर सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई चल रही है इसलिए किसी अंतिम नतीजे पर अभी नहीं पहंुचा जा सकता है, लेकिन न्यायमूर्ति मुदगल कमेटी की रपट के आधार पर कई प्रतिष्ठित लोकप्रिय क्रिकेट खिलाडि़यों को पैसे के चक्कर में सट्टेबाजी की फांस झेलनी पड़ सकती है या फिर उनका नाम सामने आने से उनका पूरा कॅरियर तबाह हो सकता है इसलिए उनके नाम उजागर नहीं किए गए लेकिन इस रपट से इस बात का खुलासा जरूर हुआ कि एन श्रीनिवासन के दामाद और आईपीएल 'फ्रेंचाइजी' चेन्नई सुपर किंग्स से जुड़े गुरुनाथ मयप्पन और राजस्थान रॉयल्स के सहस्वामी राज कुंद्रा सट्टेबाजी में लिप्त थे, जबकि बोर्ड के अध्यक्ष रहते हुए श्रीनिवासन और आईपीएल प्रशासनिक परिषद के मुख्य कार्यकारी सुंदर रमन ने कुकृत्य में लिप्त लोगों (अधिकारी व खिलाड़ी) की जानकारी होने के बावजूद उनके खिलाफ सख्त रवैया नहीं अपनाया। उन्होंने एक तरह से अपनी आंखें मूंद रखी थीं। यह दुखद स्थिति है। क्रिकेट को धर्म की तरह पूजे जाने वाले देश में भ्रष्टाचार में लिप्त या भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाले आकाओं के जो सच सामने आ रहे हैं।
हालांकि श्रीनिवासन न्यायालय में दलील दे रहे हैं कि गुरुनाथ मयप्पन के भ्रष्टाचार में लिप्त होने की खबर मिलते ही उन्हें चेन्नई सुपर किंग्स से बाहर कर दिया गया और जांच के लिए बोर्ड के सचिव संजय जगदाले सहित तीन सदस्यीय समिति गठित कर दी गई, लेकिन बीसीसीआई के आनन-फानन में लिए गए इस फैसले में कार्यकारी समिति के कितने सदस्य मौजूद थे और इसकी अध्यक्षता किसने की, इसके बारे में अब भी बहुत कुछ स्पष्ट नहीं है। फिर, एक सप्ताह के अंदर ही बीसीसीआई के सचिव संजय जगदाले ने अपने पद से इस्तीफा देकर स्पष्ट संकेत दे दिया था कि मजबूरन गठित की गई जांच समिति का फैसला क्या आने वाला है। अंतत: बीसीसीआई की जांच समिति को खारिज कर सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय क्रिकेट को बचाने का बीड़ा उठाया। न्यायालय द्बारा गठित न्यायमूर्ति मुदगल कमेटी की रपट में काफी हद तक खुलासा हो चुका है कि भारतीय क्रिकेट में भ्रष्टाचार की जड़ें गहरी होती चली जा रही हैं। दिखावे के लिए बोर्ड द्वारा गठित जांच समिति में सच्चाई उजागर करने का न तो मादा था और न ही कोई ऐसा खुलासा हो सका जिससे दोषियों को सामने लाया जा सके। उल्टे उन्होंने राज कंुद्रा और गुरुनाथ मयप्पन जैसे भ्रष्ट लोगों को 'क्लीन चिट' देकर भारतीय क्रिकेट को लीलने की व्यवस्था कर दी थी।
सर्वोच्च न्यायालय ने सुनवाई के दौरान कई बार संकेत दिया कि एन श्रीनिवासन के रहते बीसीसीआई अपनी प्रतिष्ठा के अनुरूप ईमानदारी से काम नहीं कर पाएगा, इसलिए भारतीय क्रिकेट की भलाई के लिए उन्हें इसपद को छोड़ देना चाहिए लेकिन वे अभी भी अपनी जिद पर अड़े हुए हैं। अपने खिलाफ होते तमाम खुलासों के बावजूद वह खुद को निर्दोष साबित करने की हरसंभव कोशिश कर रहे हैं। संभव है कि कागज पर श्रीनिवासन यह साबित करने में सफल हो जाएं कि चेन्नई सुपर किंग्स की स्वामित्व वाली इंडिया सीमेंट्स कम्पनी में उनकी हिस्सेदारी न के बराबर है, लेकिन वह कम्पनी के उपाध्यक्ष और महानिदेशक हैं इस बात से तो इंकार नहीं कर सकते? फिर, यदि यह हितों का टकराव नहीं है तो उनके दामाद को बोर्ड द्वारा गठित जांच समिति ने कैसे 'क्लीन चिट' दे दी? इसी तरह हाल ही में श्रीनिवासन की तरफ से न्यायालय में दलील दी गई कि अगर उन पर हितों के साथ टकराव साबित होता है तो महान क्रिकेटर सुनील गावस्कर, रवि शास्त्री, अनिल कुंबले, वेंकटेश प्रसाद, बृजेश पटेल भी इसी दायरे में आते हैं।
इन नामों के लेने से श्रीनिवासन का दोष कहीं कम तो हो नहीं जाएगा। उन्होंने कुछ गलतियां की हैं या उनकी टीम अब भी आईपीएल में बनी हुई है जो कानूनन गलत है तो उस पर जायज फैसला होना ही चाहिए। इसी तरह, श्रीनिवासन एक ओर आईपीएल में इंडिया सीमेंट्स की टीम चेन्नई सुपर किंग्स को शामिल करने के बारे में दलील देते हैं कि उन्होंने बोर्ड के निवर्तमान अध्यक्ष शरद पवार के कहने पर 'फ्रेंचाइजी' खरीदने का फैसला किया तो दूसरी ओर, वित्त मंत्री अरुण जेटली की सलाह पर बीसीसीआई की जांच समिति गठित की जिसके कारण बाद में बोर्ड की किरकिरी भी हुई। यानी हर मामले में श्रीनिवासन एक अनुशासित प्रशासक के तौर पर काम करते रहे और क्रिकेट के हित में अपने साथी पदाधिकारियों की बातों का अनुसरण करते रहे। तो फिर सवाल उठता है कि बीसीसीआई अध्यक्ष पद पर बने रहने के लिए वह इतनी हाय-तौबा क्यों मचा रहे हैं। उन्हें समझना होगा कि भारत में क्रिकेट अब भी जिंदा है और इसकी सफलता का ग्राफ तेजी से आगे बढ़ाने के लिए ताजी बयार का बहना भी जरूरी है। ल्ल
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