विविध - 'जीवनदायिनी नदियां, स्वयं जीवन मांग रही हैं'
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विविध – 'जीवनदायिनी नदियां, स्वयं जीवन मांग रही हैं'

by
Nov 1, 2014, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 01 Nov 2014 13:02:49

पिछले दिनों भारतीय जनसंचार संस्थान, नई दिल्ली में दो दिवसीय मीडिया चौपाल आयोजित हुई। इसमें 'नदी रक्षति रक्षित:' विषय पर जल के क्षेत्र में कार्य करने वाले अनेक समाजसेवियों, पत्रकारों और अन्य विचारकों ने भी विचार व्यक्त किए। पंजाब की एक मृत नदी 'कालीदेई' को फिर से जीवित करने वाले संत बलबीर सिंह सीचेवाल ने कहा कि नदियां और दूसरे जल स्रोत न सिर्फ जिन्दगी के लिए, बल्कि सभी सभ्यता-संस्कृतियों के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। यही कारण है कि गुरु नानकदेव ने पानी को पिता कहा था। दुनिया के सभी मत, पंथों में पानी के संरक्षण और इस्तेमाल को लेकर काफी सावधान रहने को कहा गया है। पीने योग्य पानी के सीमित भण्डार और बढ़ते प्रदूषण से हमारे जीवन और दुनिया के भविष्य पर संकट लगातार बढ़ रहा है। पहाड़ों से आने वाले अमृत जैसे पानी में हमने शहरों का अपशिष्ट मिला कर उसे जहरीला बना दिया है, जबकि 1974 के एक्ट के अनुसार किसी भी नदी में चीजें फेंकना तो दूर, हम थूक तक नहीं सकते।
चौपाल के पहले सत्र में वरिष्ठ पत्रकार जवाहरलाल कौल ने कहा कि नदियों को बचाना या उसके लिए काम करना सरकार या जनता का ही नहीं, बल्कि हम पत्रकारों का भी दायित्व है। भारतीय विज्ञान लेखक संघ (इस्वा) के अध्यक्ष वी. के. श्रीवास्तव ने कहा कि आज सबसे जरूरी है कि हम पानी को शुद्ध रखना अपनी आदत में शामिल करें। पीने के पानी पर काम कर रही संस्था 'इंडिया वाटर पोर्टल' के निदेशक विश्वदीप घोष ने बताया कि देश में 60 प्रतिशत जिले पानी की समस्या से जूझ रहे हैं। दूरदर्शन के अतिरिक्त महानिदेशक और वरिष्ठ वैज्ञानिक मनोज पटेरिया ने बताया कि हमने पानी को लेकर देश के करीब 500 जिलों में कार्यशालाएं की हैं। इसके बाद यह सुझाव देने के लायक हुए हैं कि पानी को उबालकर पीना ही एकमात्र इलाज नहीं है, बल्कि पानी को छानना भी बहुत जरूरी है।
हिन्दी भाषा में पहले 'न्यूज पोर्टल' वेबदुनिया के सम्पादक जयदीप कार्णिक ने कहा कि सराहनीय काम को मुख्यधारा के मीडिया में जगह मिलने न मिलने को लेकर परेशान होने की जरूरत नहीं है। राज्यसभा सदस्य और 'कमल सन्देश' के सम्पादक प्रभात झा ने कहा कि अब खबरों का गला नहीं घोंटा जा सकता, क्योंकि उसको जाहिर करने के कई आयाम सामने आ गए हैं। पाञ्चजन्य के सम्पादक हितेश शंकर ने कहा कि इन दिनों खबर आगे जाकर रुक जाती है और उन्हें उचित जगह नहीं मिलती, जैसी बातें कहना बेमानी है। अगर तथ्यपरक खबर हो, तो वह कहीं नहीं रुकती। मीडिया विश्लेषक के. जी. सुरेश ने कहा कि पाठक पढ़ना चाहता है, लेकिन उसके सामने जो कुछ परोसा जा रहा है, उसमें गुणवत्ता होनी चाहिए। आई.ए.एस. अधिकारी उमाकांत उमराव ने देवास जिले में जिलाधिकारी रहते हुए अपने कार्यकाल के दौरान विकसित की गई 'तालाब संस्कृति' की कामयाबी के बारे में लोगों को बताया। उन्होंने कहा कि 25-30 वर्ष पहले हजारों नदियां थीं, जो अब विलुप्त हो गई हैं। छत्तीसगढ़ से आईं सुभद्रा राठौर ने 'नदी संरक्षण में जनसंचार माध्यमों की भूमिका' विषय पर प्रकाश डाला। अपनी मानसरोवर यात्रा के दौरान तिब्बत की हालत का हवाला देते हुए उन्होंने बताया कि वहां 1500 झीलें हैं और सभी स्वच्छ हैं। संचार शोध विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर ड़ॉ. मोनिका वर्मा और मशहूर ब्लॉगर पंकज चतुर्वेदी ने भी इस बारे में अपने विचार रखे।
चौपाल को सम्बोधित करते हुए पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुरेश प्रभु ने पानी की समस्या का एक ही हल बताया कि इसका इस्तेमाल किफायत से करें। उन्होंने कहा कि खेती के लिए उपलब्ध पानी का करीब 85 प्रतिशत इस्तेमाल किया जाता है। इसके बाद सबसे अधिक पानी बिजली उत्पादन के लिए इस्तेमाल होता है। नदियों में खुद भी संरक्षण की क्षमता है, लेकिन हम उसमें दखल देते हैं इसलिए ये नष्ट हो रही हैं।
मशहूर विचारक के. एन. गोविन्दाचार्य ने कहा कि शास्त्रों में गंगा को ज्ञान, युमना को प्रेम और नर्मदा को वैराग्य की नदी बताया गया है, लेकिन उनके बारे में हमारी सोच क्या है। उन्होंने कहा कि एक सीमा के बाद तो मनुष्य के शरीर से रक्त भी नहीं निकालना चाहिए। मगर हमने अपनी धरती मां के शरीर में अनगिनत छेद कर इसके जलरूपी अमृत का बेतहाशा दोहन किया है। उन्होंने कहा कि इससे बचाव के लिए मौजूदा दौर में साहस, पहल और प्रयोग की जरूरत है।
'नर्मदा समग्र' के संयोजक और सांसद अनिल माधव दवे ने इस सत्र में कहा कि नर्मदा और शिवाजी ही हमारी ऊर्जा के प्रमुख स्रोत हैं। देशभर में नदियों की बिगड़ती दशा और उसे बचाने की दिशा के बारे में बाढ़ विशेषज्ञ दिनेश मिश्र और गांधी शांति प्रतिष्ठान, नई दिल्ली के निदेशक अनुपम मिश्र ने नदी के प्रति हमारे सत्ता प्रतिष्ठान और समाज की बदलती सोच पर सवाल खड़े किए। नदियों की बिगड़ती हालत के लिए दोनों विद्वानों ने जहां सरकार की अदूरदर्शिता पर हमले किए, वहीं पत्रकारों के साथ ही बड़े मीडिया घरानों को भी कठघरे में खड़ा किया। भारतीय जनसंचार संस्थान, नई दिल्ली के प्राध्यापक हेमंत जोशी ने सोशल मीडिया के सामने पारम्परिक मीडिया को भी जरूरी तरजीह देने की वकालत की। वरिष्ठ पत्रकार उमेश चतुर्वेदी ने कहा कि पारम्परिक मीडिया खासकर अखबार की जगह लेखन के क्षेत्र में कोई और नहीं ले सकता है। स्पंदन के संयोजक अनिल सौमित्र ने इस बारे में बताया कि बीते तीन वर्ष से लगातार मीडिया चौपाल के जरिए हम समाज को जागरूक करने वाले मीडियाकर्मियों के बीच किसी खास मुद्दे पर चर्चा करते हैं। चर्चा से सामने आए फैसलों और उपायों को प्रशासन और सरकार के साथ ही समाज के संबंधित जगहों पर पहुंचाते हैं। मध्य प्रदेश विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान और 'स्पंदन' संस्था की साझा अगुआई में कुछ अन्य संगठनों के सहयोग से यह कार्यक्रम आयोजित हुआ था। ल्ल प्रतिनिधि

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