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जम्मू-कश्मीर विलय दिवस के अवसर पर विकासपुरी, नई दिल्ली में एक विचार गोष्ठी आयोजित हुई। इसके मुख्य वक्ता थे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह सम्पर्क प्रमुख श्री अरुण कुमार। राष्ट्रीय परीक्षा बोर्ड के कार्यकारी निदेशक डॉ. बिपिन बत्रा की अध्यक्षता में आयोजित इस गोष्ठी के मुख्य अतिथि थे मेजर जनरल (से.नि.) विशम्बर दयाल। विशिष्ट अतिथि थीं भारत विकास परिषद्, विकासपुरी की अध्यक्ष श्रीमती दीपशिखा डांडू।
गोष्ठी को सम्बोधित करते हुए श्री अरुण कुमार ने कहा कि शुरू से जम्मू-कश्मीर को लेकर अनेक भ्रांतियां फैलाने की कोशिश की गई है और वही भ्रांतियां अभी तक चल रही हैं। इन भ्रांतियों को दूर करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि आजादी के बाद अनेक रियासतें भारत में शामिल हुईं। उनमें से एक जम्मू-कश्मीर भी है। अन्य रियासतों के विलय पत्र और जम्मू-कश्मीर के विलय पत्र में कोई अन्तर नहीं है। जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन महाराजा हरि सिंह ने 26 अक्तूबर, 1947 को विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए थे। विलय पत्र पर हस्ताक्षर होने के बावजूद भारतीय संविधान ने सभी राज्यों को एक छूट दी थी कि वहां की निर्वाचित विधान सभा उस राज्य के भारत में विलय पर अन्तिम मुहर लगाएगी। अन्य राज्यों की विधानसभाओं ने बहुत जल्दी इस पर मुहर लगा दी थी। लेकिन उस समय जम्मू-कश्मीर पर पाकिस्तान ने हमला कर दिया था इसलिए वहां विधान सभा तत्काल गठित नहीं हो पाई थी, लेकिन जैसे ही वहां की विधान सभा गठित हुई उसने जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय पर मुहर लगा दी थी। इसलिए जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय को लेकर किसी तरह का कोई सवाल ही नहीं उठता है। यह सवाल आज तक पाकिस्तान ने भी नहीं उठाया है। विधान सभा के अभाव में जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 अस्थाई रूप में लगाया गया था। दूसरी बात भारत के संविधान में जम्मू-कश्मीर का उल्लेख है, जबकि पाकिस्तान के संविधान में जम्मू-कश्मीर की चर्चा भी नहीं है। इसके बावजूद जम्मू-कश्मीर को लेकर गलत धारणाएं फैलाई जा रही हैं। गोष्ठी का आयोजन जम्मू-कश्मीर पीपुल्स फोरम की पश्चिमी दिल्ली इकाई ने किया था। मंच संचालन आभा खन्ना गुप्ता ने किया। ल्ल प्रतिनिधि
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