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मोरेश्वर जोशी
रोम के वेटिकन शहर में ह्यपरिवारह्णविषय पर फिलहाल एक अंतरराष्ट्रीय परिषद चल रही है। डेढ़ वर्ष पूर्व पोप फ्रांसिस के पद पर बैठने के बाद यह पहली सिनॉड यानी बिशपों-पादरियों का सम्मेलन है। आमतौर पर हर दो वर्ष बाद इस तरह का सिनॉड आयोजित किया जाता है। रोम में होने वाले केंद्रीय सिनॉड की तरह ही प्रत्येक उपमहाद्वीप में वहां के विषय पर सिनॉड आयोजित होता है। इसके अलावा हर देश का अलग सिनॉड होता है। प्रत्येक सिनॉड उस क्षेत्र के अगले दो वर्ष का एजेंडा तय करता है। फिलहाल रोम में चल रहा सिनॉड अत्यंत असाधारण माना जा रहा है, क्योंकि आशंका जताई जा रही है कि पूरे विश्व में ह्यफैमिलीह्ण की संकल्पना दकियानूसी मानी जाने लगी है। उसी तरह सूचना प्रौद्योगिकी के कारण विश्व में इंटरनेट द्वारा फैलाई गई उन्मुक्तता, ह्यविवाहह्ण की संकल्पना का पूरे विश्व में कम हो चुका महत्व आदि भी इस चर्चा के महत्वपूर्ण विषय हैं। उसी तरह यूरोप में समलैंगिक विवाहों की बढ़ती संख्या पर भी इस सभा में काफी चर्चा चली है। समलैंगिकों के विवाह का मुद्दा वेटिकन उठाए, इस तरह की मांग पिछले दो दशकों से की जा रही थी। लेकिन पुराने लोगों का उसको लेकर कड़ा विरोध था। उनका कहना था कि इस विषय की चर्चा करना उसे मान्यता देने जैसा ही होगा। लेकिन समलैंगिक विवाह से लेकर समलैंगिक संबंधों तक, अनेक विषय उसमें आए हैं और चूंकि हजारों कैथोलिक पंथ-गुरु भी उसमें शामिल हैं इसलिए उसका फैसला, बताते हैं, सिनॉड ही करेगा। वर्तमान पोप फ्रांसिस के यह कहने की वजह से कि ह्यउन पादरियों को परमेश्वर की उपासना एवं क्षमायाचना से रोकने वाला मैं कौन होता हूंह्ण, यह विषय असाधारण बन गया है। परिवार और विवाह के संदर्भ में कैथोलिक पंथ-गुरुओं को अपने अपने कार्यक्षेत्र में निर्यण लेना है, इसलिए यह विषय उन्हें अत्यंत महत्वपूर्ण प्रतीत होता है। इस विषय पर इस परिषद में तुरंत कोई निर्णय नहीं लिया जाएगा बल्कि अगले दो वर्ष तक पूरे कैथोलिक जगत से संवाद करने के बाद ही कुछ मार्गदर्शक बिन्दु तय किए जाएंगे। उसके लिए बीस प्रश्नों की एक सूची बनाई गई है। वह विश्व के कैथोलिक तथा अन्य ईसाई धाराओं जैसे बैप्टिस्ट, सेवन्थ डे, प्रोटेस्टेंट, पेंटाकोस्टल आदि के जानकारों को भेजकर उनसे भी मत लिया जाएगा।
वास्तव में तो ईसाइयत की तमाम धाराओं,अलग अलग सत्ताधारियों और वेटिकन के बीच संबंध मधुर नहीं हैं। उसी तरह विश्व के अनेक देशों को कैथोलिक दुश्मन जैसे ही लगते हैं। उनका आरोप है कि पिछली पांच सदियों के दौरान कोलंबस के बाद विश्व के कई देशों में जो लूट मचाई गई और लाखों लोगों के नरसंहार हुए उन्हें इन्हीं कैथोलिकों ने मान्यता दी थी। फिर भी इंटरनेट द्वारा फैलाई गई उन्मुक्तता, समलैंगिकों के बढ़ते असर, परिवार संस्था के प्रति बढ़ता दुराव आदि समस्याएं उग्र बन चुकी हैं। इसलिए परिवार संस्था ही नहीं बल्कि बुनियादी तौर पर मानव का ही क्षरण हो रहा है। इसलिए 125 करोड़ लोगों की इस प्रातिनिधिक पंथसभा ने दो वर्ष तक चलने वाला यह कार्यक्रम अपने सामने रखा है। इसमें विश्व के 200 बिशप उपस्थित हैं। ब्रिटेन की संसद इस पंथसभा का हिस्सा नहीं है, लेकिन ब्रिटेन के प्रधानमंत्री का मत इस पंथसभा ने गंभीरता से लिया है। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने कुछ दिन पहले संसद में ही इस बारे में एक बयान दिया था। उन्होंने कहा था, ह्यब्रिटेन का प्रधानमंत्री बनने के बाद हर दिन घर जाने पर अपने बच्चों के सामने मैं अपने आप को अपराधी मानता हूं। यह एक ऐसा दुर्भाग्यपूर्ण अनुभव है, जिसे यहां के और विश्व के सभी सांसदों को बताया जाए। मैं अपने आपको इसलिए अपराधी मानता हूं क्योंकि विश्व के एक महत्वपूर्ण देश का प्रधानमंत्री होकर भी मैं कम्प्यूटर पर (यौन) उन्मुक्तता का प्रदर्शन नियंत्रित नहीं कर पाता। यह बात हमेशा मेरी आंखों में पानी लाती है। हम सब को इस पर गौर करना होगा कि दुनिया की अगली पीढ़ी हमें बिल्कुल माफ नहीं करेगी और उसे माफ करना भी नहीं चाहिए।ह्ण प्रधानमंत्री कैमरन का यह कोई राजनीतिक भाषण नहीं था, लेकिन फिर भी उनके भाषण पर दुनियाभर से प्रतिक्रियाएं आईं। पूरे यूरोप एवं अमरीका महाद्वीप में यह विषय किसी भी आर्थिक अथवा राष्ट्रीय सुरक्षा के विषय जितना ही गंभीर हो चुका है। इसका एक महत्वपूर्ण कारण यह है कि यह समस्या विश्व के अन्य किसी भी देश की तुलना में यूरोपीय देशों एवं अमरीका में ही अधिक है। इस उन्मुक्तता से कैथोलिक पादरियों का भी बडे़ पैमाने पर संबंध है। पोप का मत है कि इस विषय पर बिशपों को सार्वजनिक तौर पर बोलना चाहिए। ये लोग इतने आक्रामक हो चुके हैं कि यूरोप के किसी भी देश की सरकार, सिनॉड जैसी कैथोलिक पंथसभा, चर्च ऑफ इंग्लैंड और अमरीका के सभी राज्यों की सरकारों को भी इन लोगों का डर सताता रहता है, क्योंकि उनकी धमकियों के कारण वहां की सरकारें गिरने का भय रहता होता है।
इस परिषद के कारण वैश्विक दृष्टी से 2-3 महत्वपूर्ण मुद्दे सामने आ रहे हैं। उनमें से एक तो यह कि कैथोलिक देशों को अपने सामने आने वाली इन लोगों की समस्याओं को लेकर क्या निर्णय लेने चाहिए। दूसरा यह कि यूरोप-अमरीका को आज जो सवाल सता रहे हैं, क्या आने वाले समय में वे अन्य देशों को भी सता सकते हैं? तीसरा यह कि इंटरनेट के जरिए घर घर तक फैल चुकी उन्मुक्तता का क्या कोई उत्तर है। इस पर कैथोलिक समाज का निर्णय लेने के लिए ही यह परिषद आयोजित हो रही है। इसमें बाईिबल के ह्यटेन कमांडमेंट्सह्ण जैसे वचनों से जो मार्गदर्शन किया गया है, उसे 21वीं सदी के संदभोंर् से जोड़कर निर्णय करने पर जोर दिया जा रहा है। इस उन्मुक्तता के अन्य देशों पर पड़ने वाले परिणामों पर भी वहां की कुछ संस्थाएं विचार कर रही हैं। लेकिन कम्प्युटर पर उन्मुक्तता को लेकर खुली चर्चा नहीं की जा सकती, जबकि उसका असर हर दिन, हर घंटे उग्र होता जा रहा है। इस पर सूचना तकनीकी जगत के लोगों ने जो उपाय सुझाने शुरू किए हैं, उन्हें गंभीरता से लेना होगा।
सूचना तकनीकी के जानकारों द्वारा इस पर जो बात उठाई गई है वह है कि आज सभी जगह पेंटियम कम्प्यूटर प्रयुक्त किए जाते हैं। इसकी बजाय 20 वर्ष पूर्व केवल 398 अथवा 498 कम्प्यूटर प्रयुक्त किए जाते थे। उससे भी ह्यअधिक अविकसितह्ण कम्प्यूटर बनाकर उसका नया संस्करण निकालने का प्रयास अनेक लोग कर रहे हैं। दुनियाभर में इस विषय पर चर्चा शुरू हो चुकी है। अनेक स्थानों पर इस पर अच्छे प्रयोग भी हुए हैं। लेकिन वे प्रयोग अभी स्वीकारे जाने से काफी दूर हैं। पिछले 25 वर्ष से कम्प्यूटर को सतत् विकसित करने की ओर दुनिया का रुझान बढ़ा था। लेकिन अब कम्प्यूटर वापस ह्यअविकसितह्णबनाने का चलन बढ़ने की संभावना है। पोप से लेकर पंथसभा में बैठे पादरियों तक, उन्मुक्तता पर चर्चा होती है और चिंता भी जताई जाती है़, लेकिन ह्यकम्प्यूटर पुन: अविकसित होह्ण, इस पर चर्चा नहीं होती। ऐसा नहीं है कि वहां वह चर्चा होनी ही चाहिए। वैश्विक पंथसभा में चिंता के मुद्दे उनकी चर्चा से हल होने वाले नहीं हैं, वे तो सूचना तकनीकी के जानकारों द्वारा ही हल होंगे। चीन ने गूगल पर पाबंदी लगाकर मार्ग निकालने का प्रयास किया, लेकिन उसे अधिक सफलता नहीं मिली। उसे वह निर्णय वापस लेना पड़ा। जानकारों का कहना है कि कम्प्यूटर पर 95 प्रतिशत काम केवल ह्यडाटाह्ण की तरह होता है। उसके लिए एक दफतर में एक पेंटियम काफी होता है। उनका यह भी कहना है कि जहां ह्यपरिवारह्ण विषय पर चर्चा होती है वहां इस तरह के कम्प्यूटर को लेकर चर्चा होनी आवश्यक है। अनेक लोगों ने अपने घरों के कम्प्यूटर से फ्लैश प्लेयर हटाकर ह्यवीडियो सिस्टिम डिसेबलह्ण कर इसकी राह निकाली है, लेकिन उसकी भी सीमा है। इसमें प्रामाणिक मुद्दा यह है कि सूचना तकनीकी के प्रसार के कारण खड़ी हुई समस्याएं पंथसभा से सुलझने वाली नहीं हैं। आई.टी. के लोगों को ही आगे आकर उन्हें सुलझाना चाहिए। मुद्दा यह है कि विश्व की नई पीढ़ी के स्मार्ट कार्ड से भी आगे निकलने के बाद कम्प्यूटर को वापस ह्यअविकसितह्ण करने का मार्ग स्वीकारा जाएगा या नहीं। लेकिन ह्यपरिवारह्ण विषय पर विचार करने वाले सभी लोगों को उससे मार्ग निकालने के लिए आगे आना चाहिए। अपने अपने परिवारों की अगली पीढ़ी को नियंत्रण में रखने के लिए इस तरह का कोई ह्यएप्पह्ण बनवाने की आवश्यकता है। शायद नई पीढ़ी खुले मन से उसे स्वीकार करे। वेटिकन में ह्यपरिवारह्ण विषय पर चर्चा में अत्यंत गंभीर मुद्दे उठने के लिए वेटिकन ही जिम्मेदार है, इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इसका कारण यह है कि अति (यौन) उन्मुक्तता के ये मुद्दे मुख्य रूप से अमरीका एवं यूरोप में हैं।
पिछली 4-5 सदियों में जिन देशों ने शेष विश्व को भारी मात्रा में लूटा वहां से काफी संपत्ति इकट्ठी होने के कारण नई पीढ़ी पर उसका असर ह्यबिना मेहनत किए अथवा कम मेहनत कर भरपूर सुख प्राप्त करनाह्ण हो गया है। उन्मुक्तता का भस्मासुर अब ह्यजो दिखे उसकोह्ण भस्म कर रहा है। इस विषय को चर्च संगठन ने चचांर्ओं के द्वारा सामने लाना आरंभ किया है। यूरोप-अमरीका में आज सबसे गंभीर मुद्दा यह उन्मुक्तता ही है। यह दुनियाभर में फैल रही है। उसके लिए उन देशों की संस्थाओं का आगे आना आवश्यक है। आज विश्व में अनेक देशों में स्थिति सुधरने के स्तर के पार जा चुकी है। हमारे यहां वह स्थिति आए उससे पहले ही हमें इसकी गंभीरता आंककर मार्ग निकालना होगा।
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