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बड़ी छलांग
सुरक्षा एजेंसी के साथ मीडिया और शिक्षण संस्थानों में निवेश, 850 करोड़ की संपत्ति के साथ देश के सबसे धनी सांसद
संदेश
उद्यमी बनने के लिए समय विशेष की आवश्यकता नहीं होती, व्यक्ति में जज्बा होना आवश्यक। मंजिल निर्धारित करने से पूर्व गहन अनुसंधान और फिर रास्ता तय करना चाहिए
देेश में नए खबरिया टीवी चैनलों को सरकार ने शुरू करने की अनुमति दी तो बहुत से पत्रकारों ने उद्यमी बनकर अपने चैनल खोले,पर पत्रकार रहे आर.के. सिन्हा ने मीडिया की दुनिया से हटकर अपने लिए पहले ही संभावनाएं तलाश ली थीं। वे 70 के दशक में पटना से निकलने वाले सर्च लाइट और प्रदीप अखबारों के लिए काम कर चुके थे। जेपी आंदोलन का दौर था। वे बेबाक लिख रहे थे। सरकारी विभागों में होने वाले भ्रष्टाचार को उजागर कर रहे थे। जब लग रहा था कि सब कुछ ठीक चल रहा है, तब उनकी अखबार से नौकरी चली गई। सिन्हा बताते हैं,मुझे धर्मयुग से स्वतंत्र पत्रकार का प्रस्ताव मिला। मैं वहां पर लिखने लगा। गुजारा होने लगा। इस दौरान छोटा-मोटा कामकाज और नौकरियां भी जारी रहीं। उम्र बढ़ रही थी और सफलता दूर हो रही थी। कारोबारी बनने का फैसला कैसे लिया? मैंने एक दिन पत्नी को साफ कहा कि अब मैं अपनी शतांर्े पर जिंदगी जीना चाहता हूं। पत्नी ने कहा,आप अपने मन का काम करो। अब मैं तैयारी करने लगा अपनी सुरक्षा एजेंसी खोलने के लिए। यह क्षेत्र मुझे पत्रकारिता के दिनों से ही प्रभावित करता था। उद्यमी बनने का रास्ता टेढ़ा-मेढ़ा था? मैं मानता हूं कि उद्यमी बनना किसी नौसिखिये के लिए पहाड़ के ऊपर चढ़ने जैसा है। बड़े सोच-विचार के बाद अपनी सुरक्षा एजेंसी खोली। नाम रखा सिक्योरिटी एंड इंटेलीजेंस सर्विसेज (एसआईएस)। शुरू में एक-दो कंपनियों से सुरक्षा कर्मियों की सप्लाई के आर्डर मिले। कई बार खुद भी गार्ड बनने लगा। वषांर्े तक सारी रात गाडार्ें की मुस्तैदी की जांच करता। मुझे अपने कई ग्राहकों की भी बहुत सी शिकायतों से जूझना होता था। लेकिन अब तो सपना ही लगता है कि मेरे द्वारा स्थापित कंपनी का वार्षिक कारोबार 2500 करोड़ रुपये है। एसआईएस 28 राज्यों में सक्रिय है। करीब 20 बैंकों की समूची सुरक्षा एसआईएस ही अंजाम देती है। उद्यमी बनना तब कठिन था या अब? मैं समझता हूं कि उद्यमी बनने के लिए हर दौर मुफीद होता है। आप में जज्बा होना चाहिए। उद्यमी बनने का सपना देखने वालों को सिन्हा का संदेश? पहले शोध करिए और फिर पूरे मन से निकलिए अपनी मंजिल को पाने के लिए। वे बताते हैं कि उन्हें खुद यकीन नहीं होता कि 250 रुपये से शुरू की गई एस.आई.एस. अब 2,700 करोड़ रुपये के बहुराष्ट्रीय समूह में बदल गई है। मौजूदा समय में उनके ग्राहकों की संख्या करीब 3,000 है और उनके पास 72,000 कर्मचारी हैं।
सिन्हा ने बताया कि मैं पटना के एक परिवार में पैदा हुआ, हम सात भाई-बहन थे। मेरे परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी, इसलिए हमें बचपन में काफी दिक्कतें हुईं। 1973 में वे जयप्रकाश नारायण और उनके राजनीतिक अभियान से काफी प्रभावित हुए। उन्होंने जेपी का खुलकर समर्थन किया। सिन्हा ने 1974 में जब एसआईएस बनाई, उस समय उनकी उम्र 23 साल थी। उनके लिए दूसरा अहम काम मानव शक्ति को जोड़ना था। उन्होंने बिहार रेजिमेंट में अपने जानने वालों से मुलाकात की और उनसे सेवानिवृत्त सैन्यकर्मियों के विवरण लिए। उन्होंने इन लोगों से संपर्क किया और उन्हें अपने उपक्रम से जुड़ने के लिए राजी किया। उन दिनों निजी सुरक्षा एजेंसी को लोग बिलकुल नहीं जानते थे। सेवानिवृत्ति के बाद ये सेवानिवृत्त कर्मी खाली थे, इसलिए वे मेरे साथ काम करने को तैयार हो गए। मैंने 14 सेवानिवृत्त सैन्यकर्मियों को अपने यहां नौकरी दी। एक सवाल के जवाब में वे बताते हैं कि किसी भी व्यवसाय के लिए लोग सबसे बड़े ब्रांड एम्बेसडर होते हैं और अगर वे खुश हैं तो वे आपके लिए ज्यादा व्यवसाय का प्रबंध करेंगे। मैंने यह चीज सुनिश्चित की कि मेरे कर्मचारियों को अच्छा कामकाजी माहौल मिले। पहले साल के अंत तक कंपनी के कर्मचारियों की संख्या बढ़कर 250-300 हो गई और टर्नओवर 1 लाख रुपये से ज्यादा हो गया। बिहार से राज्यसभा भाजपा के सांसद चुने जाने के साथ ही आर.के. सिन्हा देश के सबसे अमीर सांसद बन गए हैं। सिन्हा की कुल संपति करीब 850 करोड़ रुपये है।
आर.के. सिन्हा संघ के स्वयंसेवक रहे हैं और वे कई दशक से भाजपा से जुड़े हैं। आर के सिन्हा मानते हैं कि अपने क्षेत्र में लगातार मिली सफलता के बाद अब लगता है कि अब देश और समाज को देने का वक्त आ गया है। वे देहरादून में अपना एक स्कूल भी चला रहे हैं।
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