हादसा - उत्सव बदला मातम में, सरकार सोती रही
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हादसा – उत्सव बदला मातम में, सरकार सोती रही

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Oct 11, 2014, 12:00 am IST
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दिंनाक: 11 Oct 2014 14:11:32

पटना के गांधी मैदान मेंa दशहरे के दिन रावण वध का पुतला दहन देखकर लौट रहे 33 लोग भगदड़ की भेंट चढ़ गए। यह घटना उस समय घटी जब लोग पुतला दहन के बाद अपने घर को लौट रहे थे। गांधी मैदान के दक्षिण ओर स्थित बड़े गेट के सामने केबल का तार शाम से ही गिरा हुआ था। वहां कैटल कैचर में उलझकर एक महिला गिर गई जिसके बाद लोगों ने अफवाह उड़ा दी कि बिजली का नंगा तार गिरा हुआ है। इस अफवाह के चलते प्रदर्शनी मार्ग के सामने स्थित इस गेट पर भगदड़ मच गई। लोग त्राहि-त्राहि करते हुए भागने लगे और भागने के क्रम में एक-दूसरे के ऊपर गिरते चले गए। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार पुलिस ने भगदड़ को देख लाठी भांज दी जिससे स्थिति और विकट हो गई। इस गेट के पास लगे वाहनों ने रास्ता संकरा कर रखा था जिससे भागने की जगह भी नहीं मिली और जो जहां था वहीं भीड़ के पैरों तले कुचलता चला गया। बेहोश लोगों को पटना मेडिकल कॉलेज हास्पिटल (पीएमसीएच) तक पहुंचाने की कोई प्रशासनिक व्यवस्था नहीं थी। लोग पानी मांग रहे थे लेकिन उन्हें पानी देने वाला भी कोई नहीं था। चिकित्सकों का कहना है कि कई लोग तो दम घुटने से मर गए। इस हादसे में परसा बाजार के विनोद कुमार की तीन वर्षीय पुत्री नेहा कुमारी अपनी मां तीस वर्षीय सोनी देवी के साथ सिधार गई। वहीं पुनपुन के दो वर्षीय भोला कुमार, कंकड़बाग की पूजा कुमारी, गोपालपुर की डेढ़ वर्ष की खुशी कुमारी से लेकर फुलवारीशरीफ के 70 वर्षीय राम सिंहासन सिन्हा, यासालिमपुर आरा की साठ वर्षीया गायत्री देवी सब लोग इस अव्यवस्था की भेंट चढ़ गए। पुनपुन के रहने वाले रिंकू शर्मा अपनी पत्नी पुष्पा देवी के साथ अपनी ससुराल करबिगहिया आए थे। उन्होंने पत्नी को काफी समझाया लेकिन पत्नी की जिद के आगे वे भी झुक गए। उन्हें क्या पता था कि उनकी नवविवाहिता पत्नी की मौत वहां इंतजार कर रही है? फफकते हुए रिंकू ने बताया कि उसने पत्नी को मना किया था जाने से और गहना पहनने से भी, परंतु पत्नी ने नहीं माना। लाश की ओर खिड़की से इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि दरिंदों ने पुष्पा के शरीर का सारा गहना तक भी उड़ा लिया। पिछले तीन वर्ष से लगातार गांधी मैदान और आस-पास में भयंकर हादसे हो रहे हैं परंतु प्रशासन की नींद नहीं खुली। 2012 को छठ पूजा के समय अदालत घाट में अनेक लोग पीपा पुल टूटने के कारण मौत के शिकार हुए थे। 2013 में नरेंद्र मोदी की सभा में एक-एक कर हुए अनेक बम विस्फोटों ने पूरी दुनिया का ध्यान गांधी मैदान की ओर आकृष्ट किया था। उस घटना में भी कई लोग मौत के शिकार हुए थे। इस वर्ष भी प्रशासनिक आंकड़ों के मुताबिक 33 लोग मौत के शिकार हुए और सैकड़ों लोग घायल। 3 अक्तूबर को हुए इस हादसे में अभी तक लाशें पटना के विभिन्न घाटों से मिल रही हैं। अर्थात यह आंकड़ा 33 से अधिक का है। सैकड़ों लोग अभी भी विभिन्न अस्पतालों में भर्ती हैं। मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने पूरे घटनाक्रम की उच्चस्तरीय जांच के आदेश दे दिए हैंं। पटना के जिलाधिकारी, आयुक्त, एसएसपी एवं डीआईजी का तबादला कर दिया गया है। पीएमसीएच के अधीक्षक डॉ़ लखिन्द्र प्रसाद को लापरवाही के कारण निलंबित कर दिया गया है। कुछ चिकित्सकों पर भी कार्यवाही हुई है। कई संगठनों ने संबंधित पदाधिकारियों के खिलाफ हत्या का मुकदमा चलाने की मांग की है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् ने बिहार में तत्काल राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की है।
पटना का दशहरा एवं छठ पूजा राज्य में काफी लोकप्रिय हैं। दशहरे के अवसर पर विभिन्न पूजा पंडालों द्वारा आकर्षक झांकियां प्रदर्शित की जाती हैं तथा देश-विदेश के प्रमुख स्मारकों की प्रतिकृति पंडाल के रूप में दिखाई जाती है। दशहरा पूजा के अंतिम दिन विजयादशमी को गांधी मैदान में पिछले 59 वषार्ें से रावण, मेघनाद तथा कुंभकरण के पुतले दहन किए जाते हैं। आकर्षक रथ पर सवार होकर रामजी अपनी वानरी सेना के साथ गांधी मैदान में पहुंचते हैं तथा तीर चलाकर रावण का वध करते हैं। यह प्रतिवर्ष चलने वाला अनुष्ठान है। रावण वध के समय लाखों की भीड़ गांधी मैदान में उमड़ती है।
इस बड़े आयोजन में प्रशासनिक चुस्ती की अपेक्षा रहती है। दशहरा पूजा के पूर्व पत्रकार वार्ता में प्रशासनिक अधिकारियों ने अपनी तैयारी का जिक्र करते हुए कहा था कि पटना के चप्पे-चप्पे पर पुलिस की चौकसी बढ़ती जाएगी। भीड़-भाड़ वाले इलाके में पहली बार ड्रोन (हेलीकॉप्टर) से निगरानी रखने की बात भी कही गई थी। लेकिन गांधी मैदान में हुए हादसे ने प्रशासनिक तंत्र की पोल खोल दी। रावण वध के समय एक नहीं अनेक प्रशासनिक चूकें हुईं। प्रशासन को ज्ञात था कि लाखों की भीड़ उमड़ती है। लेकिन गांधी मैदान में अनेक गेट होने के बावजूद सारे गेट नहीं खोले गए। बड़े गेट पूरी तरह नहीं खोले गए थे। सिर्फ वीआईपी लोगों के आने के लिए ही एक बड़ा गेट पूरी तरह खोला गया था। बाकी तीन गेट आधे ही खुले थे। गांधी मैदान के अंदर जनसुविधाएं पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं थीं। गांधी मैदान के बड़े गेटों के सामने कैटल कैचर लगा हुआ है लेकिन वह दुरुस्त नहीं है। गांधी मैदान के दक्षिण स्थित जिस गेट पर यह हादसा हुआ वहां का कैटल कैचर टूटा हुआ है जिसमें फंसकर के लोग गिरते चले गए। भीड़ का प्रबंधन प्रशासन की ओर से नहीं किया गया था। गांधी मैदान में चारों ओर हाई मास्ट लाइट तथा लाइट लगाई गई हैं परंतु वहां कभी सारी लाइट नहीं जलतीं। गांधी मैदान में इसके पूर्व भी कई हादसे हुए हैं। 2013 में 27 अक्तूबर को भाजपा नेता नरेन्द्र मोदी की सभा के दौरान कई बम विस्फोट हुए। उसके बाद प्रशासन ने गांधी मैदान की लचर व्यवस्था से कोई सीख नहीं ली। कुछ दिनों बाद ही लाइट जलना बंद हो गईं। कुछ लोगों का यह आरोप है कि लाइट बंद होने से पुलिस की कमाई बढ़ जाती है। अनुमानत: तीन से चार हजार की उगाही प्रतिदिन पुलिस वाले शाम के समय करते हैं। यह सामान्य आदमी भी जानता है कि रोशनी के अभाव में इस 65 एकड़ में फैले विशाल परिसर में कभी भी कोई हादसा हो सकता है। श्री मोदी की सभा में इसी अंधेरे का लाभ उठाकर आतंकवादियों ने बम रखा था। लेकिन प्रशासन को इन सब बातों से कोई मतलब नहीं।
तीन अक्तूबर के दिन सारी प्रशासनिक व्यवस्था वीआईपी केंद्रित थी। वीआईपी गेट के अलावा कहीं भी पर्याप्त संख्या में पुलिस बल नहीं दिखा। वीआईपी लोगों के जाते ही तत्कालीन जिलाधिकारी घर की पार्टी में होटल मौर्य चले गए। उनके साथ तमाम अधिकारी भी इधर-उधर हो गए और भीड़ को देखने वाला कोई नहीं रहा। जो इक्का-दुक्का पुलिस बल था उसने भीड़ पर स्थिति अनियंत्रित होते देख लाठी चार्ज कर दिया। गांधी मैदान के जिस गेट पर यह हादसा हुआ वहां की सड़क दो पहिया और चार पाहिया वाहनों के चलते संकरी हो गई थी। गांधी मैदान के तीनों तरफ सामान्य यातायात के नियमों पर भी प्रशासन का ध्यान नहीं था। केबल का तार शाम से ही वहां गिरा हुआ था। फिर भी पुलिस एवं प्रशासनिक तंत्र ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। मंगलवार को पत्रकार वार्ता को संबोधित करते हुए बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री एवं नेता विपक्ष सुशील कुमार मोदी ने इस घटनाक्रम पर नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि संबंधित अधिकारियों का तबादला कोई दंड नहीं होता। इस मामले की गंभीर जांच होनी चाहिए। उन्होंने इस घटना के लिए राज्य सरकार को दोषी ठहराते हुए कहा कि पटना के जिलाधिकारी मनीष वर्मा की सेवाएं वापस ओडि़शा सरकार को दे देनी चाहिएं। मनीष वर्मा के ऊपर गत लोकसभा चुनाव में निर्वाचन आयोग ने गंभीर आरोप लगाया था। श्री वर्मा ने प्रशासनिक पद का दुरुपयोग करते हुए सत्ताधारी दल के पक्ष में काम किया था। ऐसे अधिकारी की सेवा बिहार के लिए आवश्यक नहीं है। उन्होंने बिहार के गृह सचिव आमिर सुवहानी के लंबे समय तक इस पद पर बने रहने के औचित्य पर भी प्रश्नचिन्ह उठाया। उन्होंने कहा कि राजधानी पटना में प्रति वर्ष कोई न कोई बड़ी दुर्घटना हो रही है। 2012 में छठ पूजा के दौरान, 2013 में नरेन्द्र मोदी की हुंकार रैली के दौरान तथा इस वर्ष रावण वध के समय दुर्घटनाएं घटीं जिसमें सैकड़ों लोग हताहत हुए। फिर भी ऐसे गृह सचिव को इस पद पर बनाए रखने का क्या कारण है?  –पटना से संजीव कुमार

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