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श्री एम.वी.कामत के निधन का समाचार सुनकर अत्यंत दुख हुआ। उनके निधन से पत्रकारिता जगत में पैदा हुई रिक्तता आने वाले लंबे समय तक बनी रहने वाली है। एक प्रबुद्ध चिंतक और राष्ट्रवादी स्तंभ लेखक श्री कामत अपने आखिरी वक्त तक सक्रिय रहकर पत्रकारिता जगत को अपना महत्वपूर्ण योगदान देते रहे। पत्रकार जगत और बौद्धिक विमर्शों में एक राष्ट्रीय वैचारिक योद्धा के नाते वे सदा स्मरण किये जाएंगे।
एक साधारण परिवार में जन्म लेकर विश्वविख्यात पत्रकार तक की ऊंचाई प्राप्त करना किसी भी युवा पत्रकार के लिए एक पथ-प्रदर्शक उदाहरण है। रा.स्व.संघ की ओर से हम प्रभु से प्रार्थना करते हैं कि दिवंगत आत्मा को परम शांति और परिवारजन को इस गहन दुख को सहन करने की शक्ति प्रदान करें।
-मनमोहन वैद्य
अ.भा. प्रचार प्रमुख
रा.स्व.संघ
अमर रहेगी यह अक्षर देह
ल्ल रामबहादुर राय
तिरानवे साल और पैंतालिस पुस्तकें कम नहीं होतीं एक जिन्दगी के लिए। एम़ वी. कामत को किसी विशेषण की जरूरत नहीं है। उन्हंे कौन नहीं जानता, सभी जानते हैं। उनकी भौतिक देह नहीं रही, पर अक्षर देह अमर रहेगी। वह उनके लेखन और पुस्तकों में हमेशा बनी रहेगी। उन्हें पद और
प्रतिष्ठा से नहीं, पत्रकारिता की उस विरल परंपरा से जाना जायेगा जिसमें वे पले, बढ़े और पूरा जीवन खपाया। उनका जीवन एक निरंतरता में बना ही रहेगा। देह जाती है, जीवन बना रहता है।
पत्रकारिता में वे एस़ सदानन्द के राही थे। आजादी की लड़ाई के दौरान जब ज्यादातर अंग्रेजी अखबार और उसके पत्रकार अंग्रेजों के साथ खड़े रहते थे तब मुंबई में एस़ सदानन्द एक अलग टापू बने हुए थे। स्वाधीनता संग्राम में एस़ सदानन्द का योगदान पत्रकारिता की भारतीय परंपरा को बल प्रदान करने वाला है। इसी रूप में उसे याद भी किया जाता है। वे अंग्रेजी पत्रकारिता के एक लड़ाकू सेनानी थे। उन्हीं के मूल्यों को अपनाकर एम़ वी. कामत पत्रकारिता की राह पर आगे बढ़े। यह बात 1946 की है। थोडे़ ही लोग हांेगे जिन्हें पत्रकारिता की हर विधा का उतना अनुभव होगा जितना कामत को था। रिपोर्टर, उपसंपादक, विशेष संवाददाता, सहायक संपादक और संपादक के अनुभवों से वे गुजरे। हर जगह अपनी छाप छोड़ी। वे टाइम्स ऑफ इंडिया के बॉन, पेरिस, वाशिंगटन और संयुक्त राष्ट्र में विशेष संवाददाता थे। वहीं रहते हुए उन्होंने उस समय जब हेनरी किसिंजर की तूती बोलती थी तब एक पुस्तक लिखी जिसमें बताया कि वह आधा ही राजनयिक है। अमरीका और भारत के सौ साल के संबंधों पर उनकी एक बहुचर्चित पुस्तक है। पत्रकारों की आने वाली पीढि़यां एम़ वी. कामत की 'प्रोफेशनल जर्नलिज्म' पुस्तक को संजो कर रखेंगी। यह पुस्तक 34 साल पहले आई थी। विकास पब्लिशिंग हाउस ने छापी थी। उस समय पत्रकारिता की छोटी-बड़ी बातों को समझाने वाली कोई पुस्तक, खासकर किसी भारतीय की लिखी हुई नहीं थी। आज के जमाने में पत्रकारिता पर बहुत सारी पुस्तकें मिल जायेंगी। लेकिन तब यह पुस्तक उन लोगों के लिए सब कुछ थी जो पत्रकारिता में अपना पहला कदम रख
रहे थे। नरेन्द्र मोदी की जीवनी पर काम करने वाले वे पहले पत्रकार थे। 7 साल पहले उन्होंने नरेन्द्र मोदी की जीवनी अंग्रेजी में लिखी, जिसे प्रभात प्रकाशन ने 2012 में छापा। यह पुस्तक जहां एम़ वी. कामत की गहरी सूझबूझ का प्रमाण देती है वहीं उनके अध्यवसाय की परिचायक भी है। 2013 में पत्रकारों और लेखकों ने उस समय ही नरेन्द्र मोदी की जीवनी पर काम शुरू किया जब उन्हें भारतीय जनता पार्टी ने प्रधानमंत्री का उम्मीदवार घोषित कर दिया था। आम चुनाव से पहले नरेन्द्र मोदी की जीवनी पर करीब एक दर्जन पुस्तकें आईं। उस समय ज्यादातर पत्रकारों-लेखकों ने बहुत सारी सामग्री कामत की पुस्तक से ली। उनके निधन पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ठीक ही ट्वीट किया है कि वे सच्चे मनुष्य थे। लिख्खाड़ पत्रकार थे। 'उनके चले जाने से पत्रकारिता और साहित्य को असाधारण क्षति हुई है।'
एम़ वी. कामत उडुपी में पैदा हुए थे, 7 सितंबर, 1921 को। मनिपाल में प्रारंभिक शिक्षा पाई। उसी मनिपाल में इन दिनों वे पत्रकारिता के एक संस्थान में मानद निदेशक थे। जीवन के आखिरी क्षण तक वे सक्रिय रहे। 'आर्गेनाइजर' में उनका 'द मूविंग फिंगर राइट्स' कॉलम छपता था। इस बार भी यानी आर्गेनाइजर के 19 अक्तूबर अंक में उनका वह कॉलम छपा है। उन्हें अपनी समझ सुधारने और बढ़ाने के लिए चाव से पढ़ा जाता था।
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