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कांग्रेस की हुड्डा सरकार की तुष्टीकरण की नीति है राबर्ट वाड्रा डीएलएफ करार
ॅहरियाणा की हुड्डा सरकार को न तो कानून की चिंता है और न ही चुनाव के समय लगी आचार संहिता की परवाह है। सरकार सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वाड्रा व डीएलएफ अनुबंध की चकबंदी को उचित ठहराकर अपनी जी हजूरी का परिचय दे रही है। हालांकि चुनाव आयोग ने इस मामले में किसी प्रकार के चुनाव उल्लंघन की बात को अस्वीकार कर दिया, लेकिन यह मामला एक बार फिर से सुर्खियों में आ चुका है। भविष्य में इस पर ठोस कार्रवाई होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है।
यह मामला गुड़गांव के शिकोहपुर गांव की 3़53 एकड़ जमीन से सम्बंधित है। इस भूमि का आवंटन रद्द करने का आदेश तत्कालीन महानिदेशक आईएएस अशोक खेमका ने दिया था, जो कि ऐसा आदेश देने के सक्षम अधिकारी थे। अब गुड़गांव के मौजूदा जिला उपायुक्त शेखर विद्यार्थी ने उस रद्द आवंटन को अनुचित ठहराकर निपटारा करने का प्रयास किया है। अधिकारी द्वारा ऐसा करने के पीछे हुड्डा सरकार की मंशा साफ नजर आ रही है। तभी तो अब इससे जुड़ा कोई भी अधिकारी कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं है और सभी अपना पल्ला झाड़ने की कोशिश करते नजर आ रहे हैं। इससे एक बार फिर हरियाणा सरकार कटघरे में खड़ी है। प्रदेश की जनता का मानना है कि जब एक ईमानदार अधिकारी किसी करार पर प्रश्नचिन्ह लगाकर उसमें विशेष जांच की बात कर रहा है तो सरकार उससे क्यों बच रही है और 2 वर्ष से भी ज्यादा समय बीत जाने के बाद भी कोई सार्थक जांच क्यों नहीं हो सकी है। इससे साफ हो जाता है कि सरकार अपने हाईकमान को खुश करने के लिए यह सब कर रही है।
यह मामला तब सामने आया जब करार आवंटन में जल्दबाजी करने का संदेह दिखाई दिया और तत्कालीन चकबंदी निदेशक अशोक खेमका ने 15 अक्तूबर, 2012 को डीएलएफ का आवंटन रद्द कर दिया था। यह आवंटन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वाड्रा की कंपनी 'मेसर्स स्काई लाइट' से जमीन खरीद से जुड़ा हुआ था, जिसे 'मेसर्स डीएलएफ यूनिवर्सल' के नाम पर दर्ज किया गया था। आवंटन रद्द करने पर अधिकारी खेमका ने यह भी स्पष्ट किया था कि जिस सहायक चकबंदी अधिकारी (एसीओ) ने इसे मंजूर किया है, उसे ऐसा करने का नियमानुसार अधिकार नहीं है, ऐसे में अनुचित आवंटन को रद्द माना जाए।
खेमका ने एसीओ को कानूनी शक्तियां नहीं होने के आधार पर वर्ष 2012 में डीएलएफ का आवंटन रद्द किया था। ऐसा नहीं है कि उन्होंने अचानक यह निर्णय लिया हो, इससे पहले 4 अक्तूबर, 2012 को मंडलायुक्त, उपायुक्त, उप राजस्व अधिकारी और तहसीलदारों को सूचना जारी करके कहा था कि एसीओ को कानूनन आवंटन मंजूर करने और खसरा-खतौनी बदलने का अधिकार नहीं है। इसलिए यह कार्य उनसे नहीं करवाया जाना चाहिए। इससे हड़कम्प मच गया और सरकार ने 'कंसोलिडेशन' विभाग के महानिदेशक के यहां से 19 जून, 2014 को एसीओ की ड्यूटी के संबंध में स्पष्टीकरण जारी करवाकर कहा कि आवंटन मंजूर करना और खसरा-खतौनी में बदलाव करवाना उसका कर्तव्य है। इसे ही आधार बनाकर अब उपायुक्त गुड़गांव ने डीएलएफ की इस भूमि के करार को जायज ठहरा दिया। सवाल यह उठता है कि प्रशासनिक मामलों में सम्बंधित अधिकारियों को अपने आला अधिकारियों के आदेश का पालन करना होता है न कि उनका उल्लंघन है। इस तरह खेमका के आदेश को मुख्य सचिव अथवा न्यायालय ही गैरकानूनी ठहरा सकती है। लोगों का कहना है कि खेमका के 'म्यूटेशन' रद्द करने के आदेश पर अमल होता या न्यायालय में चुनौती मिलती तो हरियाणा में सीएलयू और कॉलोनी के लाइसेंस बेचने के अनेक गोरखधंधे और फर्जीवाड़े भी सामने आ सकते थे। लेकिन सरकार ने यह सब उजागर होने से पहले ही इस पर लीपापोती कर दी है। अशोक खेमका ने अपनी रपट में स्पष्ट किया था कि डीएलएफ को दो बार लाइसेंस देने से मना किया जा चुका था, लेकिन जैसे ही वाड्रा की कंपनी इसमें शामिल हुई, लाइसेंस कर दिया गया। इसके बदले में वाड्रा की कंपनी को प्रति एकड़ 15 करोड़ 78 लाख रुपए का प्रीमियम मिला। फरवरी 2008 में वाड्रा की कंपनी 'स्काइलाईट हॉस्पिलिटी' ने ओंकारेश्वर प्रॉपर्टीज से शिकोहपुर गांव में 3़53 एकड भूमि खरीदी। सेल डीड में साढ़े सात करोड़ रुपए के चेक से भुगतान का जिक्र है।
उन्होंेने कहा कि फरवरी में करार और मार्च 2008 में हरियाणा सरकार के 'डिपार्टमेंट ऑफ टाउन एंड कंट्री प्लानिंग' (डीटीसीपी) से वाड्रा की कंपनी ने कमर्शियल कॉलोनी का लाइसेंस हासिल किया और अगस्त 2008 में वाड्रा की कंपनी ने जमीन 58 करोड़ रुपए में डीएलएफ को बेच दी। जिस पर अप्रैल 2012 में डीटीसीपी ने डीएलएफ को कॉलोनी लाइसेंस स्थानांतरित करनेे की अनुमति दी। करार से संबंधित जमीन-गुड़गांव मंे शिकोहपुर गांव में राबर्ट वाड्रा-डीएल एफ डील से संबंधित जमीन खसरा ऩ 730 में है। 9 एकड़ इस जमीन को 21 फरवरी, 2006 में मालिक बदलु राम ने लक्ष्य बिल्डर्स को बेचा। जिसे बाद में ओंकारेश्वर प्रॉपर्टीज को बेचा गया। इस जमीन के 3़53 एकड़ जमीन पर वाड्रा डीएलएफ के बीच करार हुआ। – डॉ. गणेश दत्त वत्स
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