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विजय कुमार
लीजिए साहब, हमारे ही नहीं, हमारे पूर्वजों के भी अच्छे दिन आ गये। दुनिया भर के इतिहासकार सिर पटक लें; कम्प्यूटर से लेकर नैनो तकनीक वालों को बुला लें; न्यूटन से लेकर आइंस्टीन तक को मैदान में खड़ा कर दें; पर वे हमारे मुकाबले नहीं ठहर सकते।
आप समझेंगे कि शायद मेरा दिमाग कुछ चल गया है, या किसी ने होली की बची हुई पकौड़ी मुझे दीवाली से पहले खिला दी है; पर नहीं साहब, बात एकदम सोलह आने सच है। हमारे देश के महान सरकारी कर्मचारियों ने राजस्थान में हनुमान जी का भी आधार कार्ड बना दिया है। उस पर उनका फोटो, डाक का पता और मोबाइल नंबर भी लिखा है। हां, हस्ताक्षर की जगह अंगूठे के निशान हैं। हो सकता है उन्होंने जिस प्राचीन लिपि में हस्ताक्षर किये हों, वह उस मूढ़ कर्मचारी के पल्ले न पड़ी हो, इसलिए उसने अंगूठा भी लगवा लिया होगा।
भारत में एक बड़ी बिरादरी ऐसे लोगों की है, जो रामायण और महाभारत को कल्पना समझते हैं। यद्यपि जबसे देश में नमो-गान तेज हुआ है, तब से उन्हें सांप सूंघ गया है। रात में गम गलत करने का साधन तो उनके पास था; पर अब वे एक-दूसरे को इसका दोष देकर दिन में भी गम गलत कर रहे हैं। क्या करें बेचारे, उनके पास समय काटने का अब यही एकमात्र साधन रह गया है। ऐसे लोगों का कहना है कि जब राम ही नहीं हुए, तो हनुमान जी के होने का क्या मतलब है ? इसलिए यह सारा विवाद निरर्थक है।
पर कुछ लोग मानते हैं कि हनुमान जी का अवतार हुआ तो है; पर वे दो करोड़ साल पहले हुए या दो लाख साल पहले, यह पक्का नहीं है। इसे ढूंढ़ते हुए कई इतिहासकार खुद इतिहास बन गये। भगवान उनकी आत्मा को शांति दे। कई लोग सदियों से इस कवायद में लगे हैं कि हनुमान जी का जन्म कहां हुआ? कुछ लोग उन्हें बिहार के प्राचीन वज्जी गणराज्य में जन्मा बताते हैं। यह क्षेत्र मिथिला के आसपास है। यहां की बोली वज्जिका है। उनका तर्क है कि हनुमान जी ने अशोक वाटिका में कैद सीता जी से वज्जिका में ही बात की थी। मिथिला कुमारी होने के कारण सीताजी तो समझ गयीं; पर वहां तैनात राक्षसियों के पल्ले कुछ नहीं पड़ा। इस प्रकार हनुमान जी ने रामजी और सीताजी के संदेश एक-दूसरे तक पहुंचा दिया।
पर हनुमान जी के कुछ भक्तों के अनुसार किष्किंधा और ऋष्यमूक पर्वत कर्नाटक राज्य में तुंगभद्रा नदी के आसपास स्थित हैं। आजकल जहां हम्पी नगर है, रामायण काल में वहां पर ही वानरराज बालि और सुग्रीव का राज्य था; और हनुमान जी सुग्रीव के प्रधान सचिव थे, इसलिए वे भी शत-प्रतिशत वहीं के निवासी थे।
पर धन्य हैं राजस्थान के सरकारी कर्मचारी उन्होंने सब विवाद मिटा दिये हैं। उनके अनुसार हनुमान जी सीकर जिले के दातारामगढ़ कस्बे में वार्ड नंबर छह के निवासी हैं और उनके पिताजी का नाम पवन जी है। जब डाकघर में यह आधार कार्ड पहुंचा, तो हनुमान जी की खोज शुरू हुई। काफी परिश्रम के बाद भी जब डाकिये को वार्ड नंबर छह में कोई हनुमान जी नहीं मिले, तो उसने लिफाफा खोल लिया। वह यह देखकर हैरान रह गया कि वहां हनुमान जी का वही चित्र लगा था, जो घर-घर में प्रचलित है। उसने वहां लिखे मोबाइल का नंबर मिलाया, तो किसी विकास नाम के युवक से बात हुई। उसने बताया कि उसने आधार कार्ड के लिए आवेदन तो किया है; पर वहां हनुमान जी कैसे पहुंच गये, यह पवनपुत्र ही जानें?
खैर साहब, आप चाहे जो कहें; पर मैं तो इसे संकटमोचन हनुमान जी का ही चमत्कार मानता हूं। अब यह शोध का विषय है कि इस कृपा के लिए हनुमान जी ने विकास को ही क्यों चुना और मुझे क्यों नहीं ? जबकि मैं पिछले 40 वर्ष से हनुमान चालीसा का नित्य पाठ कर रहा हूं। मेरे विचार से विकास में हनुमान जी का कुछ अंश जरूर है।
नि:संदेह वह पूर्व जन्म में हनुमान जी के साथ रावण के विरुद्घ लड़ा होगा। अगर वह बुरा न माने, तो मैं उसे यह सलाह दूंगा कि वह दातारामगढ़ में 'आधार कार्ड वाले हनुमान जी' का एक भव्य मंदिर बनाये, जिसमें हनुमान जी के एक हाथ में गदा और दूसरे में आधार कार्ड हो और मुझे उस मंदिर का पुजारी बना दे। आधार कार्ड की योजना भारत सरकार की है, इसलिए इसे सरकारी समर्थन भी मिलेगा। कुछ ही दिन में इसकी गणना देश के प्रमुख हनुमान मंदिरों में होने लगेगी। इससेे उसके भी वारे-न्यारे हो जाएंगे और मेरे जैसे बेरोजगार के भी।
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