सादगी का चोला और सारदा का दाग
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सादगी का चोला और सारदा का दाग

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Oct 4, 2014, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 04 Oct 2014 16:02:35

वर्ष 2011 में प. बंगाल में विधानसभा चुनाव होने वाले थे। ममता बनर्जी ने इन दिनों अपने एक अच्छे दोस्त को चाय पर बुलाया। ये दोस्त कोई राजनीतिक नेता नहीं थे। आशुतोष कॉलेज में एक साथ पढ़ते समय उनकी दोस्ती हुई थी। राजनेता न होते हुए भी वह दोस्त ममता को राजनीतिक सलाह देते थे और ममता उन्हें मानती भी थीं।
चाय के दौरान विभिन्न विषयों पर हो रही बातचीत के समय दोस्त ने ममता से कहा कि राजनीतिक हवाओं के रुख के अनुसार मुझे लगता है कि तुम जीत जाओगी, फिर क्या करोगी?
ममता ने तुरंत जवाब दिया, कम से कम तुम मुझे यह न कहना कि मैं मुख्यमंत्री बन जाऊं। कुर्सी में किस तरह से दखल किया जाता है, यह मैं अच्छी तरह से जानती हूं। परंतु मैं यह नहीं जानती कि उस कुर्सी को कैसे बचाया जाता है। दिनांक 7 अक्तूबर, 2012 को कोलकाता के हिन्दुस्तान टाइम्स में देवज्योति चक्रवर्ती द्वारा लिखा गया 'ए जर्नी इन टू माइंड ऑफ ममता ' निबंध उपरोक्त विषय पर प्रकाशित हुआ था।
निबंध में यह भी लिखा गया था कि ममता वह महिला हैं जो कि एक मंजिल हासिल करने के बाद और भी ऊंची मंजिल हासिल करना चाहती हैं। लड़ाई में जीतने के लिए वह कुछ भी दाव पर लगा सकती हैं। यह सिलसिला उन्होंने 2014 के लोकसभा चुनाव के समय शुरू कर दिया था। वह चाहती थीं कि केन्द्र में एक बड़ा गठबंधन हो जिसमें सबसे बड़े दल के नाते 'टीएमसी ' उभरे और उन्हें प्रधानमंत्री बनाया जाए। लोकसभा चुनावों में प. बंगाल की 42 सीटों में टीएमसी को 34 सीटें मिली भी, लेकिन ममता का सपना सपना ही रह गया। उन्होंने यह कल्पना भी नहीं की थी कि भाजपा को कुल 542 लोकसभा सीटों में से दो तिहाई का बहुमत मिलेगा।
सारदा चिड फंड घोटाला लोगों के सामने आ चुका है। मामले की जांच सीबीआई कर रही है। समाचारपत्रों को पढ़कर लोगों को स्पष्ट नजर आ रहा है कि घोटाला करने वालों के सिर पर किसका हाथ था। ममता जी को यह पता होना चाहिए कि लोगों को केवल यह दिखाकर कि वे सादगी भरा जीवन जी रही हैं बेवकूफ नहीं बनाया जा सकता। इतना सब होने के बाद भी ममता जी की बोलती तो बंद नहीं हुई पर फिलहाल वे कुछ कम बोल रही हैं।
उल्लेखनीय है कि वर्ष 2006 के दौरान सारदा समूह ने जमीन मकान फ्लैट, भ्रमण व पर्यटन आदि की कंपनियां खोली थीं। ममता पहले तो प. बंगाल विधानसभा पर अपना कब्जा जमाना चाहती थी। उसके लिए पैसे चाहिए थे जो कि अन्य दानदाताओं के साथ शारदा समूह की कंपनियों से भी आया। बाद में कई नेताओं का आशीर्वाद प्राप्त कर सारदा समूह ने 2008 में 'नॉन बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनी' भी खोल ली। वर्ष 2013 में सारदा समूह पर मुकदमा शुरू होने के बाद पता चला कि इस समूह ने गैरकानूनी रूप से 17 लाख जमाकर्ताओं का 10,000 करोड़ रुपया हजम कर लिया।
हालांकि वर्ष 2010 में घोटाले के बारे में समाचार मिलते ही केन्द्र सरकार ने इस कंपनी को चिट्ठी लिखकर उनसे रपट मांगी, परंतु वहां से कोई जवाब नहीं दिया गया।
खुद को निर्दोष मानुस बताते हैं सुदीप्त सेन
सुदीप्त सेन खुद को भले आदमी के रूप में पेश करना चाहते हैं। इसी उद्देश्य से उन्होंने सीबीआई को 18 पृष्ठ की एक चिट्ठी लिखकर बताया कि वे धीमे स्वर में बातचीत करने वाले एक निर्दोष व्यवसायी है। उनका कहना है कि 'मेरा एक स्वभाव ऐसा है कि आसपास जो कुछ मुझे अच्छा दिखता है उन्हें मैं खरीदना चाहता हूं और खरीदता भी हूं और इसी का फायदा उठाया पत्रकार, मीडिया तथा समाचारपत्रों के मालिक तथा राजनेताओं ने। इन लोगों ने मुझे धमकी दी और ब्लैकमेल किया । वे चिट्ठी में दावा करते हैं कि वे बेकसुर हैं। लोगों ने अपने फायदे के लिए उनका गलत इस्तेमाल किया।
मंत्रियों के लिए खरीदी गईं कारें
ऐसा बताया जाता है कि प. बंगाल के तृणमूल सरकार के सभी मंत्रियों के लिए सुदीप्त सेन ने नई कारें खरीदकर दीं। मुख्यमंत्री ममता पेंटिंग भी करती हैं। उनकी पेंटिंग की प्रदर्शनी लगी तो 'टीएमसी' के सांसद तथा संवाद प्रतिदिन नामक समाचारपत्र के संपादक सृंजय बसु ने सुदीप्त को कहा कि ये चित्र आप खरीद लें और सुदीप्त ने वे खरीद लिये। कीमत लगाई गई 1 करोड़ 86 लाख रुपए। राज्य सरकार के वस्त्र मंत्री श्यामापद मुखर्जी ने उन्हें लैंडमार्क सीमेंट कंपनी नामक एक बन्द पड़ी हुई कंपनी को बाजार के भाव से तीन गुणा ज्यादा कीमत पर बेच दिया। सारदा समूह ने बंद पड़ी हुई सीमेंट कंपनी खरीद तो ली लेकिन आज तक यह खबर नहीं कि वह कंपनी चलती भी है।
बॉलीवुड के एक जमाने के नामी हीरो मिथुन चक्रवर्ती को शासक दल के कहने पर सारदा के एक टीवी चैनल के लिए ब्रांड अम्बेसडर नियुक्त किया गया। जिसके लिए दो करोड़ रुपया भुगतान किया गया। इसके अलावा प्रतिमाह उनको 20 लाख रुपया दिया जाता रहा है। एक दूसरी अभिनेत्री जिनका नाम है शताब्दी राय, जो कि टीएमसी की तरफ से राज्यसभा की सदस्य भी हैं- उनको सारदा समूह का ब्रांड अम्बेसडर नियुक्त किया गया।
सारदा ने जब मिथुन को पैसे देकर अपने जाल में फंसा लिया था तो बंगाल की दूसरी बड़ी चिटफंड कंपनी रोजवैली किसी न किसी तरह से शाहरुख खान को अपने जाल में फंसाने में कामयाब हो गई। क्रिकेट में आईपीएल के चलते शाहरुख खान की 'रेड चिलीज' नाम की एक संस्था के साथ रोज वैली ने लाखों रुपए का समझौता किया। यह था तो ऑफीशियल समझौता लेकिन इसके बाहर भी लाखों करोड़ों रुपए का नकद में लेनदेन तब हुआ। यह जानकारी प्रवर्तन निदेशालय को तब मिली जब इस विषय में जांच पड़ताल की जा रही थी। मतलब यह कि क्या अब शाहरुख भी चिट फंड के घेरे में फंस गए हैं?
सारदा चिट फंड की सहयोगी संस्थाओं पर चल रही जांच के चलते अब तक 82 मामले पंजीकृत किए गए हैं। इसी दौरान सारदा से जुड़े हुए कई एजेन्टों ने आत्महत्या कर ली है।
इधर 10,000 करोड़ रुपए का सारदा घोटाले का जो कुछ लेखा जोखा सीबीआई को प्राप्त हुआ उसके अनुसार सारदा समूह ने बंगाल, ओडिशा, असम, झारखण्ड आदि स्थानों के 17 लाख लोगों से 10000 करोड़ रुपए संग्रहीत किए थे। एजेन्टों ने ग्राहकों को यह बताकर पैसे इकट्ठे किए कि पांच साल के बाद 28 प्रतिशत शतांश ब्याज दर के साथ पैसे वापस मिलेंगे।
उस लेखे जोखे में आगे यह दिखाया गया कि 35 प्रतिशत के हिसाब से एजेन्टों को कुल 3500 करोड़ रुपए दिए गए। जानकार लोगों का कहना है कि सारदा चिटफंड घोटाला दस हजार करोड़ रुपए का नहीं बल्कि एक लाख करोड़ रुपए से भी अधिक रुपए का भी हो सकता है क्योंकि अभी तक जो हिसाब बताये गये हैं उनमें कालाधन यानी सरकारी हिसाब के बाहर के रुपयों का हिसाब साफ ही नहीं हो पाया है।
यह बात अब तक सबको भलीभांति पता चल गई है कि समाचारपत्र तथा मीडिया जगत में सारदा के मालिक सुदीप्त सेन ने खुद को प्रतिष्ठित किया। वे बंगला, हिन्दी, उर्दू तथा अंग्रेजी भाषाओं के दैनिक तथा सामयिक पत्र और एक के बाद एक चैनल खरीदते गये- नहीं तो नया शुरू करते गये। यही मौका था जबकि पत्रकार तथा टीएमसी के सांसद कुणाल घोष बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान पर आ गये। सुदीप्त सेन ने कुणाल को अपने सभी समाचारपत्र तथा मीडिया कंपनियों का सीईओ बना दिया।
उधर एक और प्रगति हुई। धन जमा कराने वालों ने सारदा के खिलाफ जांच करने के लिए सरकार को बाध्य कर दिया। ममता जानती थीं कि कोई भी जांच समिति अगर सही ढंग से काम करेगी तो सबसे पहले फंसने वालों में वह खुद ही होंगी।
सारदा घोटाले में भले ही सुदीप्त सेन को बलि का बकरा बनाया गया हो लेकिन इस घोटाले में सबसे ज्यादा फायदा अगर किसी को हुआ तो वह है ममता बनर्जी, यही कारण था कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सभी तरह की जांच की बागडोर को राज्य सरकार के हाथों में रखना चाहा, लेकिन जब सारदा समूह के खिलाफ मामला उच्चतम न्यायालय पहुंचा तो ममता के लिए उल्टी गिनती शुरू हो गई।
पहले-पहले सीबीआई ने जब यह मुकदमा हाथों में लिया तो सीबीआई के निदेशक रणजीत सिन्हा पर पक्षपात करने का आरोप भी लगाया गया, लेकिन उससे बात नहीं बनी।
आम लोगों का विश्वास अटूट रहा। वे सीबीआई तथा प्रर्वतन निदेशालय (ईडी) के कार्य से खुश हैं। उधर केन्द्रीय गृह मंत्रालय से सीबीआई के पास यह निर्देश आया है कि उनके दफ्तर का कोई भी कर्मचारी बाहर के किसी व्यक्ति से न मिले-चाहे वह मंत्री, सांसद, विधायक या आम आदमी कोई भी हो। इसके दूरगामी परिणाम होंगे। जापान जाने से पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्पष्ट रूप से निर्देश दिया था कि कोई भी केन्द्रीय मंत्री या अधिकारी सारदा चिट फंड के बारे में चल रही सीबीआई जांच को प्रभावित करने का प्रयास न करे। ल्ल

केन्द्र के जवाब मांगने पर भी नहीं मिला उत्तर

सन 2010 में प. बंगाल में वाममोर्चे की सरकार थी। केंद्र सरकार को उस समय जानकारी मिल गई थी कि राज्य में चिट फंड कंपनियों की आड़ में फर्जीवाड़ा शुरू हो गया है। जिसके तहत लाखों लोगों को ठगा जा चुका है, लेकिन राज्य सरकार कुछ नहीं कर रही है। तृणमूल कांग्रेस राज्य की सत्ता में आने से पहले ही इन भ्रष्टाचारी चिटफंड कंपनियों की सहायक बन गई थी, क्योंकि गैरकानूनी रूप से कमाया गया पैसों का एक बहुत बड़ा हिस्सा शासक दल के नाते तृणमूल कांग्रेस को भी मिलता था। केंद्र सरकार के संज्ञान में जब यह विषय आया तो उसके केंद्र राज्य संपर्क विभाग ने लगातार तीन वर्षों तक राज्य सरकार से यह पूछा कि राज्य सरकार गैर कानूनी आर्थिक लेनदेन को रोकने के लिए क्या कार्रवाई कर रही है। इस संबंध में चिट्ठी भी लिखी गई लेकिन राज्य सरकार की तरफ से उसका कोई जवाब नहीं दिया गया।
सीबीआई को पता चला कि केन्द्र सरकार के केन्द्र राज्य संपर्क विभाग ने अक्तूबर 2011, दिसम्बर 2011, फरवरी 2012, अगस्त 2012 तथा जनवरी 2013 को मिलाकर कुल छह पत्र लिखे थे जिनका जवाब नहीं मिला। सीबीआई के एक शीर्ष अधिकारी ने बताया कि अब हमारे पास इस विषय में ठोस प्रमाण हैं कि शासक दल को इस संबंध में सारी जानकारी है।
राज्य के वित्त विभाग के कार्यालय की 2012-13 की रपट में इस विषय में कहा गया कि सन 2013 के 31 मार्च तक उनके दफ्तर में कुल 95 आरोप पत्र जमा हुए, जिनमें से 8 संस्थाओं को सारदा चिट फंड की तरफ से 2 लाख 88 हजार 949 रुपए वापस किये गए। यह खबर मिलते ही कुल मिलाकर 17 लाख अमानतधारियों ने लिखित रूप से अपने पैसे वापस मांगे हैं, परंतु इनकी कोई सुनवाई अभी तक नहीं हुई।

कहानी कुणाल की
सारदा चिट फंड घोटाले के बारे में जांच करने का दायित्व सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सीबीआई को सौंपते ही जिन लोगों को हिरासत में लिया गया उनमें मुख्य रूप से कुणाल घोष का नाम आया। वे पत्रकार हैं। सबसे पहले वे आजकल नामक दैनिक में काम करते थे। उसके बाद वे संवाद प्रतिदिन में चले गये। उस पत्र के मालिक संपादक थे स्वप्न साधन बसु। परंतु वे टुटु बसू नाम से ज्यादा जाने जाते हैं। कुणाल बहुत जल्दी ही टुटु बसु के बहुत ही नजदीक पहुंच गये थे। इधर सन् 1998 में ममता बनर्जी ने कांग्रेस छोड़कर अपनी अलग पार्टी बना ली थी। कुणाल का परिचय ममता से हुआ और ममता ने बात-बात में कुणाल को यह कहा था सामने कोलकाता 'म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन का चुनाव है और चुनाव लड़ने के लिए उनके पास फंड नहीं है।
कुणाल ने प्रतिदिन के मालिक टुटु बसु से इस बात का जिक्र किया। बसु ने कहा 'मैं सहायता कर सकता हूं, परंतु मुझे क्या मिलेगा? कथित तौर पर ममता ने कुणाल को कहा कि मैं उनको राज्यसभा का सदस्य बना सकती हूं। कहा जाता है कि टुटु और ममता के बीच एक डील हुई जिसके चलते टुटु बसु राज्यसभा के सांसद बने और ममता को चुनाव खर्च के लिए कई करोड़ रुपए दिए गए। इस तरह कुणाल ममता के काफी नजदीकी बन गए। सारदा चिटफंड के मालिक सुदीप्त सेन के साथ पहले से परिचय होते हुए भी कुणाल के माध्यम से ही सुदीप्त के साथ ममता का परिचय तथा लेन देन गहरा होता गया। ममता कुणाल के प्रति कृतज्ञ थीं। यही कारण था कि ममता ने कुणाल को भी राज्यसभा का सदस्य बना दिया। मीडिया में ममता को आगे करने के लिए कुणाल ने अथक परिश्रम किया। सब ठीकठाक ही चल रहा था। सारदा के विरुद्ध मुकदमा चले भी तो कोई बात नहीं। ममता 'मैं हूं ना' का भाव लेकर चलती थीं। कुणाल भी निश्चिंत थे। एकाएक जब सर्वोच्च न्यायालय ने सारदा घोटाले की जांच का दायित्व सीबीआई को दिया तो सबके होश उड़ गए। कुणाल को लगा कि कहीं उनकी जान पर न बन आए इसलिए उन्होंने खुद यह बयान दिया कि जेल के अंदर उनको जान से मारने की साजिश की जा रही है।
कुणाल ने 91 पृष्ठ की चिट्ठी में ममता तथा उनकी सरकार के लोगों की पोल खोल दी। चिट फंड के लिए गरीब से गरीब लोगों से पैसे यह कहकर लिए गए कि ममता जी की सरकार इसके पीछे है इसलिए पैसा डूबने जैसी किसी बात की फिक्र करने की जरूरत नहीं। चिट्ठी में यह भी कहा गया कि ममता ने खुद भी उनसे पैसे लिए और दूसरों को दिलवाए भी। तीसरी बात, हर एक 'सोपान' पर ममता ने सुदीप्त की सलाहकार के नाते काम किया। चौथी बात, इतने सारे समाचार पत्र तथा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया सुदीप्त के द्वारा इसलिए खरीदे गए ताकि उनका पूरा लाभ ममता को मिले। पांचवी बात, जब सारदा समूह के साथ बात बिगड़ने लगी तो ममता ने खुद सुदीप्त सेन को गुप्त स्थान पर अज्ञातवास करने का परामर्श दिया। छठी बात, सन 2013 के 18 अप्रैल को सुदीप्त सेन को कोलकाता से भाग जाने का परामर्श दिया गया केवल यही नहीं बल्कि दार्जिलिंग में बैठकर ममता बनर्जी ने सुदीप्त के लिए भविष्य का एक्शन प्लान क्या होगा यह भी बताया। सातवीं बात, उस 91 पृष्ठ की चिट्ठी में कुणाल ने यह भी बताया कि उनको जान से खत्म करने के लिए साजिश रची गयी है यही कारण है कि चिट्ठी में लिखी सारी बातें रिकॉर्ड करवाकर गुप्त स्थान पर भेज दिया गया। आठवीं बात, अभी भी ऐसे बहुत प्रभावशाली लोग हैं जिनको पुलिस ने बाहर छोड़ रखा है, जो कि जांच व मुकदमा दोनों को प्रभावित कर सकते हैं। आखिरी बात कुणाल ने चिट्ठी में लिखी है कि विचारधारा के अनुसार ममता बनर्जी खत्म हो गयी हैं। आज (29-9-2014) को भी कुणाल ने अदालत में खड़े होकर कहा ये लोग कभी भी मेरी हत्या कर सकते हैं।

27 क्लबों को 1 करोड़ रुपया
कोलकाता के 27 क्लबों को एक करोड़ रुपए अचानक दिए गए । जब इस संबंध में सुदीप्त सेन से पूछा गया तो उनका सीधा सा जवाब था 'मैडम ने देने के लिए कहा और हमने दे दिए' यह वर्ष 2011 की बात है। उस समय कोलकाता के भवानीपुर विधानसभा केन्द्र में उपचुनाव होने वाला था। 2011 के चुनाव में ममता बनर्जी संसद सदस्या थीं। परंतु उस चुनाव में 'वाममोर्चे' को हटाकर दो तिहाई बहुमत से तृणमूल कांग्रेस जीती थी। परंतु ममता के विधानसभा केन्द्र भवानीपुर से सुब्रत बक्शी जीते थे। उन्होंने ममता के लिए भवानीपुर केन्द्र से त्यागपत्र दिया था ताकि ममता उस केन्द्र से जीत सकें। इस जीत को पक्का करने के लिए उन्हें एक करोड़ रुपए दिए गए थे। अब जब पत्रकारों ने यह हिसाब लेना चाहा तो पता चला कि उस अंचल के केवल चार थाना क्षेत्रों चेतला, कालीघाट, भवानीपुर व आलिपुर में जितने क्लब हैं केवल उन्हीं में यह पैसा बांटा गया है। कारण क्या? कारण यह है कि ये चारों थाना क्षेत्र इलाका भावानीपुर विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत हैं। जहां से ममता उपचुनाव के लिए लड़ रही थीं। इसका अर्थ हुआ कि वह किसी भी तरीके से अपनी जीत सुनिश्चित करना चाहती थीं भले ही इसके लिए घूस ही क्यों न देनी पड़ी।  -असीम कुमार मित्र

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