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तुफैल चतुर्वेदी
मीडिया में कुछ दिन से हाहाकार बल्कि हू-हू-कार मचा हुआ है। घटना ये कही जा रही है कि न्यूयार्क में राजदीप सरदेसाई के साथ धक्का-मुक्की हुई है और मीडिया के कई हिस्सों में इसे लोकतंत्र के चौथे खंभे को गिराने की कोशिश बताया जा रहा है। किसी भी चैनल के पास संभवत: इस घटना की आवाज सहित रिकर्डिंग नहीं है। अत: उस घटना को विभिन्न टी़ वी़ चैनलों, फेस-बुक इत्यादि पर अपनी-अपनी विवेचना के साथ दिखाया जा रहा है। आइये तटस्थ भाव से घटना की विवेचना करें। रिकार्डिंग दिखा रही हैं कि न्यूयार्क में मोदी जी के भाषण को सुनने के लिए इकट्ठी हुई भीड़ में भारतीय प्रेस के लोग घूम रहे हैं। वीडियोे में राजदीप भीड़ में लोगों से कुछ बात करते हुए दिखाई दे रहे हैं। उनसे किन्हीं सज्जन ने पलटकर कुछ कहा और राजदीप भड़ककर टूट पड़े। कुछ धक्का-मुक्की के दृश्य हैं, सामान्य तर्क-बुद्घि यही कहती है कि राजदीप ने नरेंद्र मोदी जब अमरीका जाकर विश्व के सामने भारत की ब्रांडिंग कर रहे थे, कुछ ऐसा कहा होगा जिस पर उन सज्जन ने प्रति-प्रश्न किये होंगे। जिस पर राजदीप भड़क गए होंगे। भारत में जनतंत्र का ये तथाकथित चौथा स्तम्भ स्वयं को किसी भी जवाबदेही से ऊपर समझता है। इसके लगुए-भगुए तक चक्रवर्ती सम्राटों से भी अधिक दर्प के अधिकारी, हर विषय के ब्रह्मत्व की हद तक जानकार होते हैं। बंधुओ, ये अकारण भी नहीं है। अपने कैरियर की शुरुआत में मुंबई की चालों, दिल्ली के जमुनापार की बस्तियों से बसों में लटककर ऑफिस आने वाले लोग, 15-20 साल में 50-50 करोड़ के बंगलों में रहने की क्षमता वाले हो जायेंगे तो ये स्वाभाविक है कि अहंकार प्रचंड हो ही जायेगा। अब ये भारत की जनता को स्पर्श करने वाले हर विषय को मनमानी दिशा देने का प्रयास करते हैं। ये मानते ही नहीं बल्कि जानते भी हैं कि इनके पास देश, समाज, व्यक्ति सभी के हर दर्द की दवा है।
आप सबको अमरीका में घटी 9-11 की घटना याद होगी। आप में से कितने लोगों ने भयभीत अमरीकी नागरिकों के रोने-चिल्लाने के दृश्य देखे हैं ? जिस दिन ये घटना हुई थी, भागते लोगों की केवल एक स्टिल फोटो टी वी पर आई थी और उसके बाद वह फोटो अमरीका के टी वी चैनलों पर दुबारा नहीं दिखाई दी। ऐसा नहीं हो सकता कि अमरीकी नागरिक इस वज्रपात से डरे नहीं होंगे? रोये नहीं होंगे? अमरीका में प्रेस पर पाबन्दी भी संभव नहीं है़ ये मीडिया का स्वतंत्र निर्णय था कि अपनी कमजोरी दुनिया को नहीं दिखाएंगे। हमारे घबराहट दिखाने से आतंकवादियों को लक्ष्य में सफलता मिलती दिखाई देगी। इसकी तुलना भारतीय विमान अपहरण के समय तत्कालीन प्रधानमंत्री पर दबाव बनाने के लिए मीडिया द्वारा अपहृत लोगों के परिवारी जनों की लगातार हाय-दुहाई को दिखाने से कीजिये। यही मीडिया के लोग अपहृत लोगों के परिवारी जनों को लेकर प्रधानमंत्री निवास पर पहुंचे। इन्हीं ने आतंकियों को छोड़ने का दबाव बनाया और फिर यही प्रधानमंत्री की आलोचना में लग गये। मुंबई में ताज होटल में छिपे आतंकियों को मारने के लिए हैलिकाप्टरों से कमांडो उतारे जाने की बरखा दत्त द्वारा लाइव रेकार्डिंग दिखाना याद कीजिये। कमांडो उतारे जाने की सूचना आतंकियों को तुरंत पाकिस्तान में बैठे उनके आकाओं ने टी वी चैनल देखकर दी और जिसके कारण कमांडो मारे भी गये।
राजदीप भारतीय मीडिया में नरेंद्र मोदी के धुर विरोधी माने जाते हैं। नरेंद्र मोदी जी के पहले मुख्यमंत्रित्व के काल में 2002 में हुए दंगों को लेकर बहुत मुखर रहे हैं। गुजरात के तीनों चुनावों में न केवल राजदीप बल्कि मीडिया के लगभग सारे प्रमुख लोग मोदी जी के हारने की भविष्यवाणी भी करते रहे हैं। गुजराती समाज को मोदी जी के विरोध में वोट देने के लिए उकसाते रहे हैं। हर बार मुंह की खायी मगर इस हद तक निर्लज्ज हैं कि इनमें से किसी के फूटे मुंह से कभी भी ये नहीं निकला कि हमने गलत किया। मीडिया समाज की आँख और कान कहा जाता है मगर राजदीप या इनके जैसे लोग अपने काम को करने की जगह केवल मुंह बन गए हैं। मुंह भी ऐसा जिसमें कोढ़ हो गया हो।
देश में किसी भी अन्याय की जांच की प्रणाली है। उसी का अनुसरण गुजरात के दंगों के दंगों के लिए भी हुआ है। स्वतंत्र न्यायालय, जांच आयोग ने बरसों जाँच की है और नरेंद्र मोदी को किसी भी दंगे के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया। जनता ने भी 3-3 बार उनके बेदाग होने की पुष्टि की है। अब तो सारे राष्ट्र ने नरेंद्र मोदी को मुकुट-मणि बना लिया मगर इस चौथे स्तम्भ के ये लोग स्वयं को हर न्यायालय से ऊपर समझते हैं। ये मोदी विरोध में घृणा की हद तक चले गए हैं। इनका बस चले तो ये मोदी को असफल करवाने के लिए देश पर चीन से हमला करवा दें। आतंकवादियों की क्लिपिंग बनाने के लिए स्वयं उनके लिए निशाने तय कर दें। आपको कुछ वर्ष पूर्व गुवाहाटी में एक लड़की के कपडे फाड़ कर उसको लगभग निर्वस्त्र कर देने की घटना की वीडियो क्लिपिंग का ध्यान होगा़ जिस लड़के ने ये क्लिपिंग बनाई थी वह स्वयं इस घटना के लिए जिम्मेदार था और लोगों को भी शामिल होने के लिए उकसा रहा था।
मगर इस मानसिकता को बनाने के लिए हम लोग भी जिम्मेदार हैं। यहाँ एक घटना की चर्चा उपयुक्त होगी। मैं नौएडा ऑथरिटी के एक वरिष्ठ अधिकारी के पास बैठा हुआ था। अचानक एक फटीचर से लड़के ने जूते की नोक मार कर दरवाजा खोला। मैं हतप्रभ रहा गया कि मेरे मित्र अधिकारी उस लड़के के इस व्यवहार पर आक्रोश प्रकट करने की जगह उसके साथ सोफे पर जा बैठे। उस लड़के के जाने के बाद मैंने उनसे इस असभ्यता को पी जाने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि ये पत्रकार है। घटना के कुछ वर्ष बाद वह अखबार निकालने लगा।
हम लोग मुशायरा करते हैं। एक साल वह लड़का भी जो अब दैनिक समाचार पत्र का मालिक और संपादक था, मुशायरे में आया। मैं व्यवस्था में लगा हुआ था, मुझे किसी साथी ने सूचना दी कि मुल्ला जी हूटिंग कर रहे हैं। मैं और मेरे दो-तीन मित्र उनके पास जा कर बैठ गये। वह हमें देख कर 2-3 मिनट तो शांत रहे फिर हूटिंग करने लगे। उनसे निवेदन किया गया अगर आपको नहीं सुनना है तो न सुनें मगर हमें तो सुनने दें।
इस पर वह बौखलाकर बोले आप कहें तो मैं मुशायरे से उठ कर चला जाऊँ , मेरे एक साथी ने उन्हें रोका और कहा आप क्यों जाते हैं हम ही आपके जूते लगाकर बाहर फिकवाए देते हैं। मित्रो वह दिन है और आज का दिन है, मुल्ला जी जब भी कहीं दिख जाते हैं हमेशा पहले हाथ जोड़कर नमस्ते करते हैं और खींसे निपोरते हैं। साहिबो, कौआ मारकर टांगना जरूरी है।
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