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भारत के अलग-अलग राज्यों में दशहरा अलग-अलग रूप से मनाया जाता है। पूरे उत्तर भारत और मध्य भारत में नौ दिन की राम लीला के बाद रावण, मेघनाथ और कुंभकर्ण के पुतले जलाए जाते हैं। कर्नाटक के मैसूर में वाडियार राजा भव्य तरीके से दशहरा मनाते हैं। अपने पूरे सैन्य बल का प्रदर्शन करते हैं। हिमाचल प्रदेश में दशहरे के दिन से दस दिन का उत्सव शुरू होता है। कुल्लू का दशहरा पूरी दुनिया में मशहूर है। सभी देवी-देवता अपनी-अपनी पालकियों में सवार होकर कुल्लू दशहरा मनाने आते हैं।
पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, असम, त्रिपुरा में दुर्गा मां दशहरे को अपने घर के लिए प्रस्थान करती हैं। पूजा अर्चना और रंग खेलने के बाद मां को नदियों में विसर्जित किया जाता है। छत्तीसगढ़ में बस्तर का दशहरा भी बाकी राज्यों से अलग है। यहां शक्ति स्वरूपा मां दंतेश्वरी की पूजा की जाती है। दशहरा पर्व आम जनमानस में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री रामचंद्र से जुड़ा है। इसी दिन भगवान राम ने लंका के राजा रावण का वध करके लंका पर विजय प्राप्त की थी। आश्विन महीने के शुक्ल पक्ष में भगवान राम ने भगवान शिव के महाभक्त महाबली रावण पर विजय पाने के लिए नौ दिन तक देवी भगवती की आराधना की। आठवें दिन मां दुर्गा ने भगवान राम को दर्शन दिए। नौवें दिन सब प्रकार की सिद्धियां देने वाली मां सिद्धिदात्री की पूजा की और दसवें दिन जया, विजया और अपराजिता लता की पूजा करके रावण पर विजय प्राप्त की। यह दिन विजयादशमी के नाम से भी जाना जाता है। भगवान राम ने चूंकि विजयादशमी के दिन पूजा करके लंका विजय के लिए प्रस्थान किया इसलिए इसे राजसी त्योहार यानि क्षत्रियों का त्योहार भी माना जाता है। हनुमन्नाटक में लिखा है- आश्विन महीने के शुक्लपक्ष की विजयादशमी तिथी को दशमुख रावण के वध के लिए श्री रामचंद्र जी ने प्रस्थान किया। उनके द्विरद, विधु, महाब्ज नाम के कपि सेनापति तथा समग्र पृथ्वी, दिशा और गगन मंडलों को व्याप्त करते हुए असंख्य सैन्य थे।
विजया दशमी साल के तीन अति शुभ मुहुतोंर् में से एक है। इस दिन बिना किसी मुहुर्त के शुभ कार्य किए जा सकते हैं औऱ विजयादशमी श्रवण नक्षत्र युक्त हो तो बहुत शुभ औऱ विजय देने वाली मानी गयी है। राजा महाराजा इस दिन रणविजय और शत्रु पर विजय के लिए प्रस्थान करते थे। विजयादशमी किस दिन औऱ किस नक्षत्र में मनायी जानी चाहिए शास्त्रों में यह स्पष्ट बताया गया है।
ज्योतिर्निबंध के अनुसार-
आश्विनस्य सिते पक्षे दशम्यां तारकोदये।
स कालो विजयो ज्ञेय: सनकार्याथ सिद्धये।।
अर्थात आश्विन शुक्ल दशमी को सायंकाल में तारा उदय होने के समय विजयकाल रहता है। वह सब कायोंर् को सिद्ध करता है। धर्मसिंधु निर्णय सिंधु में भी सायंकाल में दशमी तिथि होने पर ही दशहरा माना गया है।
सनातन परंपरा में जैसा कि दशहरा क्षत्रियों का त्योहार है तो इसलिए विजयादशमी को अस्त्र-शस्त्र के पूजन का विधान है। राजा महाराजा विजयादशमी को अपने आयुध भंडार के सभी अस्त्र-शस्त्र निकाल पूजन करते थे। अपनी सेना का नगर भर में प्रदर्शन करते थे। अगर शत्रु पर विजय के लिए प्रस्थान नहीं करते थे, तो अपने राज्य की सीमा का उल्लंघन करके लौट आते थे।
भले ही यह क्षत्रियों का त्योहार हो लेकिन दशहरा पूजन सब के घरों में किया जाता है। अपनी-अपनी जाति और कुल की परंपरा के अनुसार सनातन धर्मी दशहरा पूजन करते हैं। गोबर से दशहरा बना कर धान्य, मौसमी फल और सब्जियां जैसे सिंघाड़ा, गन्ना, मूली आदि, कलम-दवात, बही-खाते, दही मथने वाली मथानी और अस्त्र-शस्त्र रख कर दशहरा पूजन किया जाता है। और परिवार के पुरुषों के कानों पर जौ की बालियां रखी जाती हैं। अब आप ही देखिए इसमें पशुधन, वनस्पति, सरस्वती देवी, लक्ष्मी देवी और शक्ति का पूजन किया जाता है।विजयादशमी के दिन अपराजिता बेल का पूजन और शमी वृक्ष का पूजन किया जाता है। शमी वृक्ष का पूजन महाभारत काल से जुड़ा है। जब पांचों पांडव अज्ञात वास पर थे तो महान योद्धा अर्जुन ने अपने हथियार शमी के वृक्ष में छुपा दिए थे और आश्विन महीने की विजयादशमी को निकाले थे। शमी पूजन को लेकर और भी कई मान्यताएं हैं। माना जाता है शमी के पत्ते दशहरे पर घर लाने से धन की देवी लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और खजाना सोने-चांदी से भर जाता है। वैसे शमी वृक्ष को नवग्रहों में शनि का प्रतीक माना गया है। हवन में शनि की समिधा शमी की लकड़ी से दी जाती है। दशहरा जीवन में हमें यह दर्शन भी देता है कि असत्य पर सत्य, अधर्म पर धर्म, बुराई पर अच्छाई की जीत सदा होती है। -सर्जना शर्मा
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