क्षण… विलक्षण
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अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में अग्रणी बना भारत
लालग्रह की कक्षा में मंगलयान की स्थापना का पल अनमोल है। इस एक क्षण ने विश्व फलक पर भारतीय कौशल, समर्पण और समयबद्धता का सिक्का जमा दिया। सही मायनों में यह भारतीय विज्ञान की विजय है।
क्या आप जानते हैं कि मंगल ग्रह जब हमारे निकट होता है, उस समय हम से कितना दूर होता है? यह दूरी ऐसी है, मानो हमसे एक किलोमीटर दूर तेजी से घूमता 5 रुपए का सिक्का। 24 सितंबर की सुबह भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के वैज्ञानिक दम साधे सुदूर मंगल ग्रह के निकट पहुँच चुके मंगलयान से आने वाले संदेश की प्रतीक्षा कर रहे थे। 68 करोड़ किलोमीटर दूर से संदेश को आने में लगभग 12 मिनट लग जाते हैंं। मंगलयान मंगल ग्रह की कक्षा में प्रवेश करके उसकी परिक्रमा शुरू करने वाला था। इसके पहले केवल रूस और अमरीका ही ऐसा करने में सफल हुए थे। यूरोपीय देशों का संयुक्त प्रयास भी सफल रहा था, परंतु इनमें कोई भी प्रथम प्रयास में सफल नहीं हुआ था। चीन ने भी असफलता का मुँह देखा था। दरअसल जैसे ही हम धरती को छोड़ अंतरिक्ष में जाते हैं, सब कुछ एकदम से बदल जाता है। धरती 1670 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से घूम रही है इतना ही नहीं, धरती 1 लाख 8 हजार किलोमीटर प्रति घंटे की गति से सूर्य का चक्कर लगा रही है। फिर मंगल भी सूर्य की परिक्रमा कर रहा है। ऐसे में किसी ग्रह की कक्षा में प्रवेश करने के लिए एक तय रफ्तार से उसके क्षितिज में प्रवेश करना होता है। तब ग्रह का गुरुत्वाकर्षण आपको नीचे खींचता है, और आपका वेग आपको समकोण पर गतिमान रखने का प्रयास करता है। फलस्वरूप आप ग्रह के चारों ओर घूमने लगते हैंं।
आखिरकार 7 बजकर 47 मिनट पर शुभ संदेश आया। मंगलयान ने मंगल की कक्षा में प्रवेश कर लिया था। इसके साथ ही भारत प्रथम प्रयास में सफल होने वाला पहला राष्ट्र बन गया। पहला तीर ही निशाने पर लगा तो अमरीका और रूस भी विस्मित हुए। हालांकि अभी अंंतरिक्ष दौड़ के अनेक आयामों में बहुत कुछ करना शेष है, परंतु भारत ने बहुत बड़ी बाधा पार कर ली है। इसके पूर्व इसरो ने चंद्रयान के रूप में सफलता अर्जित की थी, और चंद्रमा की सतह पर जल की उपस्थिति के ठोस प्रमाण दिए थे। मंगलयान भी महत्वपूर्ण अभियान पर है। यह एक छोटा परंतु विकसित उपग्रह है, जो मंगल ग्रह के बारे में जानकारी जुटाएगा। मंगलयान अपने साथ 5 उपकरण ले गया है। इनमें मंगल पर हीलियम और ड्यूटीरियम गैसों की मात्रा का पता लगाने वाला लाइमैन अल्फा फोटोमीटर, मंगल के वातावरण में मीथेन गैस की मात्रा नापने के लिए मीथेन सेंसर और एक ट्राई कलर कैमरा तथा ऊष्मा के आधार पर गणना करने वाला थर्मल इन्फ्रारेड इमेजिंग स्पेक्ट्रोमीटर शामिल है।
सिर्फ 450 करोड़ रुपयों की लागत का यह अभियान विश्व में सबसे सस्ता मंगल अभियान है। 5 नवंबर 2013 को धरती से चला मंगलयान 7 माह और 19 दिन बाद अपनी मंजिल पर पहुँचा। हमारे वैज्ञानिकों ने इसे 15 माह में तैयार किया है। यह लगभग 77 घंटों में मंगल का एक चक्कर पूरा करेगा, और अगले 6 से 10 माह तक इसरो को मंगल के चित्र और जानकारियां (डाटा) भेजता रहेगा, जिनका विश्लेषण किया जाएगा। हालांकि मंगल ग्रह पर सूर्य की किरणें सतह पर आते-आते कमजोर पड़ जाती हैं, अत: सौर ऊर्जा कम मात्रा में बनेगी। परिणामस्वरूप मंगलयान से आने वाले संदेश कमजोर होंगे।
मंगलयान की सफलता के मायने
मंगलयान की सफलता ने भारत को उपयोगी अंतरिक्ष तकनीक, रिमोट सेंसिंग और संचार के अग्रणी देश के रूप में स्थापित किया है। सुदूर अंतरिक्ष में उपकरणों को भेजना, यंत्रों को कई माह तक सुप्तावस्था में रखना और फिर करोड़ों किलोमीटर दूर से उन्हें दोबारा जाग्रत कर संचालित करना एक बड़ी उपलब्धि है। कभी-कभी एक नासमझी भरा प्रश्न उठाया जाता है, कि भारत को अंतरिक्ष अभियानों में धन खर्च करने की क्या आवश्यकता है, जब हम विकास के लिए तड़प रहे हैं? यह बहुत ही सतही सोच है। अंतरिक्ष में बढ़त बनाने की इस दौड़ के कई पहलू हैं। भारत की इस क्षेत्र से जुड़ी सबसे बड़ी तात्कालिक और भविष्योन्मुखी आवश्य्कता हमारी सुरक्षा जरूरतें हैं।
आज जो देश सक्षम हैं, उन्होंने अंतरिक्ष का शस्त्रीकरण प्रारंभ कर दिया है। अमरीका का ग्लोबल स्ट्राइक कार्यक्रम जारी है, जिसमें लंबी दूरी की मिसाइलों और अंतरिक्ष में ध्वनि से कई गुना तेज गति कर सकने वाले साधनों का विकास शामिल है। रूस इस दिशा में कदम बढ़ा रहा है। जनवरी 2007 में चीन मिसाइल द्वारा उपग्रह को नष्ट करने का प्रयोग सफलतापूर्वक कर चुका है। गौरतलब है, कि चीन के अंतरिक्ष कार्यक्रम में चीन की सेना का खासा दखल है। अंतरिक्ष में हथियारों की इस होड़ में चीन अमरीका से प्रतिस्पर्द्धा करने की प्रतिबद्घता दिखा रहा है।
भारत की नीति अंतरिक्ष को हथियारों के जखीरे से दूर रखने की रही है, लेकिन आज सुरक्षा आवश्यकताओं के चलते भारत के लिए इन क्षमताओं को विकसित करना आवश्यक हो गया है। आज हमारी सुरक्षा जरूरतें तकनीक पर पहले के मुकाबले कहीं अधिक निर्भर करती हैं। अमरीका में तो सेना अंतरिक्ष अभियानों का लाभ लेने वाली सबसे प्रमुख संस्था है।
अंतरिक्ष कार्यक्रमों से उपग्रह संचार का विकास होता है। उड़ानें, ग्लोबल पोजीशनिंग और नेवीगेशन तकनीक इसी क्षेत्र के विकास का प्रतिफल हैं। अंतरिक्ष उपग्रह तकनीक का उपयोग खुफिया जानकारी जुटाने में, मिसाइल चेतावनी तंत्र मंे, मौसम संबंधी जानकारियों आदि के लिए होता है। ऐसे में भारत द्वारा इस क्षेत्र के किसी आयाम में चीन को पछाड़ना रणनीतिक और वैज्ञानिक बढ़त बनाता है।
अंतरिक्ष तकनीक का विकास हमारी अन्य आवश्यकताओं को भी प्रभावित करता है। अंतरिक्ष लगातार वृद्धि प्रदर्शित करता अंतरराष्ट्रीय बाजार है। दूसरा, जब कोई खोज होती है, तो वह अनेक रूपों में मानव जीवन को प्रभावित करती है। जब बिजली की खोज हुई थी, तब उसके आज के स्वरूप की कल्पना तो आविष्कारक को भी नहीं थी। तकनीक का विकास निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है, और नयी खोज पुरानी खोज के कंधे पर पैर रखकर ऊपर आती है। विज्ञान का विकास वैज्ञानिक संस्थाओं के विकास में निहित है, जिसमें पीढि़याँ खप जाती हैं। आवश्यकता पड़ने पर इसे रातों-रात खड़ा नहीं किया जा सकता, इसलिए इसका निरंतर विकास होता रहे, यह आवश्यक है।
अंतरिक्ष विज्ञान और तकनीक के कुछ दिलचस्प पहलू भी हैं। जैसे आधुनिक वॉटर फिल्टर सर्वप्रथम अंतरिक्ष यात्रियों के उपयोग के लिए ही बनाया गया था। नासा जानना चाहता था कि अंतरिक्ष में पानी को लंबे समय तक कैसे साफ रखा जा सकता है। शरीर की अंदरूनी गड़बडि़यों का पता लगाने वाला सी टी स्कैन अंतरिक्ष यान के कक्षों की गड़बडियों का पता लगाने के लिए बनाया गया था। आधुनिक कम्प्यूटर माइक्रो चिप अपोलो अभियान की देन है। खरोंच प्रतिरोधी लैंस अंतरिक्ष यात्रियों के हैलमेट के लिए बनाए गए थे। परिष्कृत रेडियल टायर्स, खाद्य प्रसंस्करण, तेल रहित स्नेहक (लुब्रिकेंट) और जल में से पेट्रोलियम पदाथोंर् का प्रदूषण दूर करने की विधि अंतरिक्ष आवश्यकताओं की पूर्ति से प्राप्त हुए अतिरिक्त उत्पाद हैं।
अंतरिक्ष उपकरणों के नट-बोल्ट पर पड़ने वाले दबाव और तनाव को मापने की विधि का उपयोग रेल मागार्ें की सुरक्षा, भूजल विश्लेषण, विकिरण और रोगियों के आंतरिक अंगों की सूजन का पता लगाने में हो रहा है। अग्निरोधक तकनीक, वीडियो की गुणवत्ता सुधारने की तकनीक, सड़क सुरक्षा में प्रयोग की जा रही तकनीकें, गिनते चले जाइए, ये सूची बहुत लंबी है। सार यह है, कि विज्ञान के विकास और वैज्ञानिक उपलब्धियों से एक अनंत श्रंृखला निर्मित होती है। इस श्रृंखला में निरंतरता और विविधता का राष्ट्र की शक्ति और प्रभाव से सीधा अनुपात होता है।
मंगलयान की उपलब्धि हमारे लिए एक अवसर है, जिसका उपयोग हम समाज में वैज्ञानिक चेतना और वैज्ञानिक सोच के विकास के लिए कर सकते हैं। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने स्व. लाल बहादुर शास्त्री के नारे में एक अंश और जोड़कर नया नारा दिया था- 'जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान।' हमारे मंगलयान की सफलता जवान, किसान और विज्ञान, तीनों को प्रभावित करने वाली है। – प्रशांत बाजपेई
मंगलयान के बहाने विज्ञान शिक्षा पर विमर्श
धरती के तीन सुदूर स्थानों पर बच्चों के लिए बनाए गए कार्टून धारावाहिकों की विषय वस्तु देखते हैं। जापानी धारावाहिक विज्ञान की शिक्षा और वैज्ञानिक यंत्रों पर आधारित हैं। फिलस्तीन में हमास द्वारा विकसित कार्टून बच्चों को 'जिहाद' और 'शहादत' सिखा रहे हैं। भारतीय निर्माता बच्चों को भूतप्रेत, जादू और चमत्कार दिखा रहे हैं।
यह हमारी सोच का दर्पण है। संभवत: यही कारण है कि हमें बार-बार विचार करना पड़ता है कि हमारे देश में विज्ञान की पढ़ाई का क्या स्तर है? गणित की क्या दशा हो रही है? गणित को विज्ञान की भाषा कहा जाता है। परंतु हमारे छात्रों को गणित का कितना व्यावहारिक ज्ञान हो पाता है? विचारवान छात्र भ्रमित रहता है, कि किताब में जो गणितीय सूत्र लिखे हैं, उनका वास्तविक जगत में उपयोग क्या है! रसायन शास्त्र का विद्यार्थी घर की रसोई में रखे रसायनों को पहचानता है क्या? प्रायोगिक ज्ञान को 'प्रेक्टिकल' की बंदिश से छुड़ाने का कोई उपाय तो ढूँढना ही पड़ेगा। क्या हर शहर में विषयों का व्यावहारिक ज्ञान देने वाला केंद्र नहीं बन सकता, ताकि छात्र रटंत विद्या से बाहर आकर कुछ वास्तविक ज्ञान अर्जित कर सकें? क्या छात्रों को 'अच्छे पैकेज' के साथ नयी खोजों की ओर आकर्षित करने का कोई उपाय है? क्या उन्हें विज्ञान के सामने खड़ी नयी चुनौतियों के बारे में बताने वाला कोई पाठ्यक्रम नहीं होना चाहिए? क्या अंग्रेजी माध्यम में शिक्षा के लिए लग रही अंधी दौड़ विज्ञान और गणित की दुर्दशा के लिए जिम्मेदार नहीं है? क्योंकि देखने में आता है, कि छात्र-छात्राएं विषय को छोड़कर भाषा से कुश्ती लड़ रहे होते हैं, और अक्सर भाषा ही उन्हें चित कर देती है। जनसामान्य के पढ़ने समझने लायक विज्ञान साहित्य हमारे यहाँ चलन में ही नहीं है। अमरीका सहित पश्चिमी देशों में 'जनरल साइंस' के नाम से बड़े पैमाने पर दशकों से साहित्य रचा जा रहा है। लोगों तक विज्ञान को उनकी भाषा में सरल रूप में पहुंचाना एक बहुत बड़ा उत्तरदायित्व है, जिसकी उपेक्षा हो रही है। इन्हीं सब कारणों से गाँव कस्बों और शहरों में बिखरी हमारी सहज वैज्ञानिक प्रतिभाएँ कुंठित हो रही हैं। मंगलयान की सफलता के इस मांगलिक अवसर पर भारत की विज्ञान महायात्रा का श्रीगणेश हो सकता है। बात केवल दृष्टिकोण बदलने की है।
अंतरिक्ष में निवेश की होड़
विश्व के बड़े निवेशकों के लिए अंतरिक्ष निवेश की पसंद बनकर उभर रहा है। दुनिया के अरबपतियों में शुमार वर्जिन गैलेक्टिक के रिचर्ड ब्रेनसन, स्पेस एक्सप्लोरेशन टेक्नोलॉजीस कॉर्प के एलन मस्क और अमेजॉन इंक के सीईओ जेफ बेजो ने 'नव अंतरिक्ष' क्षेत्र में भारी निवेश किया है। अमरीका के नासा के साथ मिलकर अनेक निवेशक अंतरिक्ष के निजी क्षेत्र के विस्तार में लगे हैं। 'न्यू स्पेस' नाम से प्रचलित इस क्षेत्र को अगली पीढ़ी की विशाल आर्थिक संभावनाओं के रूप में देखा जा रहा है। इसमें अंतरिक्ष, इंटरनेट, जैव तकनीक, विमानन, ऑटोमोटिव क्षेत्रों को मिलाकर नई संभावनाएँ तलाशी जा रही हैं। ब्ल्यू ओरिजन और बोइंग के बीच 6़8 बिलियन का करार हुआ है, जिसके अंतर्गत अंतरिक्ष पर्यटन का विकास किया जाएगा। अमरीका वित्तीय अंतरिक्ष उद्योग के विकास और विस्तार के लिए गंभीरता से काम कर रहा है। इसके लिए जोखिम वाले उद्यमियों की निरंतर खोज की जा रही है। अंतरिक्ष एवं अन्य ग्रहों के संसाधनों तक पहुँचने के लिए भी लगातार अनुसंधान और प्रयास हो रहे हैं। अंतरिक्ष कीमती धातुओं से भरा पड़ा है।
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