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सूक्ष्मता से ध्यान देते हुए जोर से बोलें- क, ख, ग, घ ङ।
हमारे मुख में जो कण्ठनाल है (जो उर से कण्ठ तक है) वह कण्ठ के पास सिकुड़ जाती है। इन पांचों अक्षरों को बोलते समय कण्ठनाल के कण्ठ के पास सिकुड़ जाने से इस कवर्ग को काण्ठ्य कहते हैं। ठीक इसी प्रकार चवर्ग के प्रत्येक वर्ण मुख के जिस विशेष हिस्से से बोलते हैं उसे तालु कहते हैं और इस तालु स्थान से बोले जाने वाले वर्णों को तालव्य कहते हैं। टवर्ग के प्रत्येक अक्षर का उच्चारण करें। जरा जोर से। ट ठ ड ढ ण मुख के इस विशेष स्थान को मूर्धा कहते हैं और इन अक्षरों को मूर्धन्य कहते हैं। इसी प्रकार त वर्ग को भी जरा जोर से बोलें और ध्यान दें। जिह्वा के अतिरिक्त जिस मुख स्थान पर आघात हो रहा है वह है दन्त (दांत आपके मसूड़ों के अन्दर तक हैं)। इस हेतु से तवर्ग को दन्त्य भी कहते हैं।
अब जरा एक साथ देखें –
क वर्ग – कण्ठ से – क ख ग घ ङ
च वर्ग – तालु से – च छ ज झ ञ
ट वर्ग – मूर्धा से – ट ठ ड ढ ण
त वर्ग – दांतों से – त थ द ध न
प वर्ग – ओष्ठ से – प फ ब भ म
उपरोक्त 5- 5 के मैट्रिक्स में दिखने वाला एक वर्ण क्रम ऐसी विशेषता है जो हिन्दी के अतिरिक्त किसी अन्य भाषा में नहीं दिखता।
वंशी सा वर्ण विन्यास
जिस प्रकार से एक बांसुरी में फूंकने पर (नली के एक छोर से) और उस बांसुरी के दूसरे छोर पर बने छिद्रों को दबाएं और हटाएं तो अलग अलग छिद्र से अलग प्रकार की ध्वनि सुनाई
देती है।
ठीक उसी प्रकार हमारे उदर से मुखपर्यन्त एक बांसुरी के समान नली है। हिन्दी का वर्ण विन्यास मानो इसी बांसुरी पर सजा है। जब हम बोलने की इच्छा करते हैं तो जठर की अग्नि वायु को नली में ऊपर (मुख की तरफ) धक्का देती है और यह वायु मुख के जिस-जिस हिस्से से टकराती है वैसी-वैसी ध्वनि निकलती है। जैसे कण्ठ के संकरा कर लेने से क ख ग घ व ङ की ध्वनि निकली। मुख रूपी बांसुरी के क्रम में सबसे पहले कठ होने से क वर्ग को मैट्रिक्स में प्रथम स्थान प्राप्त हुआ। कण्ठ के बाद तालु (दूसरा), तालु के बाद मूर्धा (तीसरा), मूर्धा के बाद दन्त (चौथा) व दन्त के बाद नली के सबसे अन्त में ओष्ठ के होने के नाते प वर्ग को मैट्रिक्स में अन्तिम स्थान आरओडब्ल्यू प्राप्त हुआ।
अर्थात कण्ठ के बाद तालु, होठ नहीं अत: कवर्ग के बाद चवर्ग आता है। पवर्ग नहीं।
उपरोक्त मेट्रिक्स में यह तो आर ओ डब्ल्यू का क्रम निर्धारण हुआ। ऐसे ही क्रम का निर्धारण स्तंभ में भी है। पांचवें स्तंभ के किसी भी अक्षर को नासिका के दोनों छिद्रों को बद करके बोलें। ङ ञ ण न म यह संभव नहीं है।
इसका प्रतिक्रम देखें। नासिका बन्द कर प्रथम द्वितीय तृतीय या चतुर्थ स्तंभ का कोई सा भी अक्षर बोलें। बड़ी सहजता से आप इन्हें बोल सकते हैं।
क ख ग घ
च छ ज झ
ट ठ ड ढ
त थ द ध
प फ ब भ
अर्थात पहला स्तंभ के लिए क च ट त प हेतु तो शुद्ध कण्ठ तालु मूर्धा दन्त व ओष्ठ पर्याप्त हैं किन्तु अन्तिम स्तंभ हेतु कण्ठ + नासिका, तालु + नासिका, मूर्धा + नासिका, दन्त + नासिका व होठ + नासिका का प्रयोग हुआ। ऐसे ही अन्य स्तंभों की कुछ-कुछ विशेषता है।
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