|
आस्था और भक्ति तो है ही, लेकिन डाक कांवड़ को मैं युवाओं के लिए एक साहसिक कार्य करने के लिए वरदान के रूप में भी देखता हूं। उनकी मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक सेहत में यह जबरदस्त और आश्चर्यजनक प्रगति और संतुलन लाता है।
आपको पता है कि ह्दय की गति जांचने के 'ट्रेडमिल' पर जो जांच होती है, उसकी तीव्रतम गति क्या होती है? एक मिनट में 6 किलोमीटर। इस तरह से देखें तो यह 10 किलोमीटर प्रतिघंटा हुई। और डाक कांवड़ में देखिए कि वाहन के साथ-साथ युवा कितनी गति से भागते हैं। कम से कम 30 किलोमीटर प्रति घंटा। यानी तेज टीएमटी जांच से भी तीन गुना। और कितनी लम्बी दूरी तक दौड़ना होता है। वह भी छोटे-छोटे अंतराल के बाद लगभग पूरे दिन। तो इसमें जो शरीर, मन और मस्तिष्क तीनों स्तरों पर ऊर्जा का जो पिरामिड बनता है, उसे आप केवल शारीरिक क्षमताओं में बढ़ोतरी के तौर पर नहीं आंक सकते।
हमारी तमाम क्रियाएं किसी कामना से होती हैं। शरीर ठीक करना है या अमुक खेल में विशेष योग्यता अर्जित करनी है। लेकिन डाक कांवड़ में हमारी पूरी क्रियाएं शिवभक्ति के लिए होती हैं। कोई किसी कामना से भी जाता है, लेकिन एक बार लय बन जाने पर भजनों के बीच दौड़ते युवाओं का उत्साह केवल भक्ति के रंग में रंग जाता है। कामना बहुत पीछे छूट जाती है। मैं कहना यह चाहता हूं कि हार-जीत, खोने-पाने की कामना के बिना पूरे समर्पण के युवा जो दौड़ लगाते हैं, उससे मिले उत्साह, शारीरिक तंदरुस्ती, मानसिक संतुलन और तमाम अन्य फायदों को हम किसी दूसरे खेल या जिम में की जाने वाली मेहनत से कतई नहीं आंक सकते। यह उससे कई-कई गुना ज्यादा लाभकारी है।
ऐसा नहीं है कि आप एक दिन में डाक कांवड़ में जाने के लिए तैयार हो सकें। इसके लिए लगातार परिश्रम और दौड़ने का अभ्यास, शरीर और मन का स्वास्थ्य बेहतर होना आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य भी है। तो अगर युवा पूरे साल बेहतर एथलीट बनने का अभ्यास जारी रखते हैं, तभी वे डाक कांवड़ में भाग ले सकते हैं। डाक कांवड़ में जो टीम भावना आती है वह मन के भीतर से आती है। बाकी गतिविधियां आपमें सावधानी या जागरूकता को बढ़ाती हैं, लेकिन इसमें जो सजगता बढ़ती है वह कहीं बड़ी चीज है और जीवन के हर क्षेत्र में कामयाबी के लिए जरूरी है। ल्ल
टिप्पणियाँ