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आयोजन सरकारी था, लेकिन असरकारी, अर्थात् प्रभावी रहा। 7 जुलाई को दिल्ली के विज्ञान भवन में 'गंगा मंथन' का आयोजन हुआ। नदियों, विशेषकर गंगा से संबंधित विशेषज्ञों, जनप्रतिनिधियों, स्वैच्छिक संस्थाओं और प्रशासनिक प्रतिनिधियों के बीच साधु-संतो की उपस्थिति ने मंथन को खास बना दिया। समापन सत्र में केन्द्रीय सड़क परिवहन, राजमार्ग और जहाजरानी मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि आज का दिन हमारे देश के इतिहास में एक अति महत्वपूर्ण दिन है। गंगा के संरक्षण के साथ ही एक पूरी सभ्यता के प्रति हम अपनी चिंता व्यक्त कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि गंगा नदी के विकास के पहले चरण में गंगा को वाराणसी से हुगली के बीच छोटे जहाजों को चलाने योग्य बनाने के लिए इसकी चौड़ाई 45 मीटर और गहराई पांच मीटर करने के लिए खुदाई करने का प्रस्ताव किया गया है।
जल संसाधन और नदी विकास के साथ ही नए मंत्रालय गंगा पुनर्जीवन की मंत्री उमाश्री भारती ने कहा कि पूरा देश गंगोत्री से गंगा सागर तक गंगा के अविरल और निर्मल प्रवाह के लिए वचनबद्ध है। इस संवाद के निष्कषार्ें को सरकार ईमानदारी से पूरा करेगी। गंगा पुनरुद्धार के लिए धन की कोई कमी नहीं रहेगी। उन्होंने कहा कि गंगा जल हिन्दू और मुसलमान दोनों को चाहिए। पंडित को पूजा करने के लिए, तो इमाम को वुजू के लिए। उन्होंने कड़े लहजे में कहा- हमें सर्वपंथ समभाव का दिखावा नहीं करना, इसमें हमारी आस्था है। उमाश्री भारती नदियों के संरक्षण के लिए लोगों का सहयोग चाहती हैं। इसके लिए आम लोगों में नदियों के प्रति श्रद्धा, आस्था और विश्वास को पुनर्जीवित करना जरूरी होगा। वे समाज को संवेदनशील और जागरूक बनाने के साथ ही गंगा संरक्षण के लिए कानून बनाने की पक्षधर भी रही हैं। अपने गंगा यात्रा के दौरान उन्होंने गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण को विफल बताया था। वर्ष 2012 में यूपीए सरकार ने राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण द्वारा विभिन्न परियोजनाओं के लिए लगभग 2600 करोड़ रुपए की मंजूरी दी थी। इन परियोजनाओं में सीवर नेटवर्क, जलमल शोधन संयंत्र, जलमल पम्पिंग स्टेशन, विद्युत शवदाहगृहों के निर्माण, सामुदायिक शौचालयों का विकास और नदियों के मुहानों के विकास की परियोजनाएं शामिल हैं। यूपीए सरकार ने इन कायार्ें के लिए विश्व बैंक से एक बिलियन अमरीकी डॉलर की सहायता ली थी। हालांकि एनडीए की सरकार भी विश्व बैंक से सहायता लेने की कोशिश कर रही है, लेकिन इस सरकार का जोर नदियों के संरक्षण पर रहेगा। वर्ष 2014-15 के आम बजट में मोदी सरकार ने गंगा नदी के लिए प्रवासी भारतीय निधि बनाने की घोषणा की है। गंगा को परिवहन का माध्यम बनाने के लिए मोदी सरकार ने नए बजट में 4200 करोड़ का प्रावधान किया है। इसके अतिरिक्त नमामि गंगे विशेष परियोजना के लिए 2037 करोड़ पृथक से आवंटित किया गया है। केन्द्रीय पर्यटन और संस्कृति मंत्री श्रीपाद नाईक ने कहा कि गंगा के किनारे पर्यटन स्थलों का विकास किया जाएगा।
नौकरशाह भले ही गंगा को सिर्फ पानी का स्रोत समझते हों, लेकिन सामाजिक कार्यकर्ता और गंगा में आस्था रखने वाले विशेषज्ञ उनसे अलग विचार रखते हैं। इस मामले में पंडित मदनमोहन मालवीय के प्रपौत्र और सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति गिरधर मालवीय, यमुना आंदोलन से जुड़े मनोज मिश्र और उनके जैसे ही कई और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने नदी को सिर्फ जलस्रोत समझने के खतरे के प्रति आगाह किया। मंथन के दौरान वे बार-बार नदी को सम्पूर्णता में देखने-समझने पर जोर देते रहे। मनोज मिश्र ने कहा कि जैसे हमारे शरीर में रक्त प्रवाह होता है, वैसे ही नदी के शरीर में जल-प्रवाह। लेकिन जैसे हम रक्त प्रवाह को पूरा शरीर नहीं मान लेते, वैसे ही हमें जल-प्रवाह को नदी नहीं मान लेना चाहिए। हमें नदियों के स्वभाव, प्रकृति, जीवन-प्रक्रिया और उनके वैशिष्टय को गहराई से समझना होगा। इंडिया वाटर पोर्टल के संचालक पद पर वषार्ें से कार्यरत केसर सिंह ने कहा कि हमें सिर्फ गंगा की ही नहीं, बल्कि गंगा को नदियों का प्रतिनिधि मानकर देश की सभी नदियों, खासकर छोटी-छोटी नदियों के बारे में चिंता करनी होगी। भारतीय सभ्यता का अस्तित्व ही नदियों से जुड़ा है। गंगा समग्र अभियान के आशीष गौतम ने कहा कि आज तक हमने गंगा से बहुत कुछ लिया है। हम गंगा को मां मानते हैं, अब मां को कुछ देने का समय आया है।
दरअसल, गंगा विचारधारा का प्रश्न भी बन गई हैं। चुनाव के पहले गंगा समग्र अभियान चला। साध्वी उमा भारती के नेतृत्व में देश के अधिकांश हिस्सों में यात्रा निकाली गई। गंगा अभियान का राजनीतिक लाभ भाजपा को मिला भी। वषार्ें से गो और गंगा माता की बातें होती रही हैं। इसलिए वर्तमान सरकार के सामने बड़ी चुनौती है। गो और गंगा को लेकर लोगों की अपेक्षाएं पहाड़ जैसी हैं। मोदी सरकार ने नदियों, विशेषरूप से गंगा के लिए पृथक मंत्रालय बनाकर गंभीर प्रयास का संकेत दिया है। लेकिन दूसरी तरफ बाजारवादी सोच के लोग भी हैं। ये वे लोग हैं जो तंत्र और व्यवस्था पर हावी हैं। एक सोच गंगा के दोहन की है, दूसरी गंगा के सरंक्षण और पोषण की। गंगा के बहाने नदियों की बात करने वाले नदियों की आवश्यकता समझकर उसके अनुसार प्रयास चाहते हैं, जबकि नदी को महज जल-स्रोत मानने वाले नदी की स्वच्छता, सौंदर्य और प्रवाह को दोहन के नजरिए से देख रहे हैं। देखना यह है कि गंगा को प्रकृति केन्द्रित विकास के परिप्रेक्ष्य में देखा जाता है या मनुष्य केन्द्रित विकास दृष्टि से। -अनिल सौमित्र
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