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23 जून को भारतीय जनसंघ के संस्थापक व प्रखर राष्ट्रवादी नेता डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान दिवस पर जम्मू से लेकर कोलकाता तक अनेक कार्यक्रम आयोजित हुए। हर जगह वक्ताओं ने कहा कि डॉ. मुखर्जी ने राष्ट्र की एकता और अखण्डता के लिए अपना बलिदान दे दिया। देश में दो 'निशान' और दो 'प्रधान' का उन्होंने जमकर विरोध किया। इसी का परिणाम है कि आज जम्मू-कश्मीर के लिए अलग झण्डा और अलग प्रधान नहीं है। भारतीय संसद और चुनाव आयोग के कई नियम वहां लागू होते हैं।
पूर्वी दिल्ली में आयोजित एक अन्य कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए भाजपा नेता श्री जयभगवान गोयल ने डॉ. मुखर्जी को एक सच्चा राष्ट्रभक्त करार देते हुए उनके आकस्मिक निधन की उच्चस्तरीय जांच करवाने की मांग की । उन्होंने कहा कि डॉ. मुखर्जी अलगाववादी सोच को देश की एकता के लिए घातक मानते थे। राष्ट्रहित के लिए उन्होंने मंत्री पद ठुकराने में तनिक भी देर नहीं लगाई थी। उनके मन में अखण्ड भारत का जो सपना था आज उसे पूर्ण करने की जिम्मेदारी हम सभी पर है। श्री गोयल ने कहा कि तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की नीतियों से तंग आकर उन्होंने भारतीय जनसंघ की नींव रखी थी और उनका एक ही मकसद था कि जम्मू-कश्मीर के लिए लगाई गई धारा 370 समाप्त कर सम्पूर्ण भारत के लिए एक ही कानून कार्य करे, मगर तत्कालीन कांग्रेस सरकार की कुनीतियों के चलते उन्हें सफलता नहीं मिल सकी और इसी अभियान में उन्हें अपनी जान देनी पड़ी।
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