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चुनाव के बाद केन्द्र सरकार का गठन होते ही दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं के अच्छे दिन आ गए हैं। सालभर से तीन वर्षीय पाठ्यक्रम को लेकर लगातार उठ रही छात्रों और शिक्षकों की मांग को देखते हुए मानव संसाधन विकास मंत्रालय और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने पिछले वर्ष लागू किए गए चार वर्षीय पाठ्यक्रम को रद्द कर दिया। राहत की बात तो यह है कि चार वर्षीय पाठ्यक्रम को तब रद्द किया गया कि जब छात्र-छात्राओं ने पहले वर्ष तक की पढ़ाई पूरी की है, वरना देरी होने पर न जाने कितने छात्र-छात्राओं का भविष्य खतरे में पड़ सकता था। अभी छात्रों और शिक्षकों मंे खुशी की लहर है। दरअसल दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले छात्रों के लिए पहले तत्कालीन कुलपति प्रो. दीपक पेंटल द्वारा सेमेस्टर सिस्टम और उसके ठीक बाद वर्तमान कुलपति प्रो. दिनेश सिंह द्वारा 4 वर्षीय पाठ्यक्रम लागू कर यूपीए सरकार के कार्यकाल में दबाव बनाया गया। वर्ष 2013-14 के सत्र में तो विश्वविद्यालय प्रशासन ने आनन-फानन में सभी हदें पार करते हुए 4 वर्षीय पाठ्यक्रम को लागू कर दिया। इसके लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की अनुमति तक नहीं ली गई। विद्वत परिषद और कार्यकारी परिषद की 40 मिनट की बैठक में ही 40 विषयों को पास कर दिया गया। छात्र संगठनों और शिक्षकों की मांगों को भी सिरे से खारिज कर दिया गया।
दरअसल यूपीए सरकार के कार्यकाल में मानव संसाधन विकास मंत्री रहे कपिल सिब्बल और सैम पित्रोदा जैसे लोग विदेशी शिक्षा संस्थाओं के पांव भारत की धरती पर जमाकर शिक्षा के स्तर को गिराना चाहते थे। ये सभी अमरीकी शिक्षा की तर्ज पर 4 वर्षीय गे्रजुएट प्रोग्राम शुरू कर विदेशी विश्वविद्यालयों को बढ़ावा देना चाहते थे। भारत में 144 विदेशी विश्वविद्यालयों ने अपने केन्द्र खोलने की अनुमति मांगी थी जिसमें से मात्र 44 ही सही पाए गए थे, अन्य विश्वविद्यालयों का कागजों के सिवाय कोई आधार ही नहीं था। लेकिन दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति की हठधर्मिता का एनडीए सरकार आते ही अंत हो गया। तीन वर्षीय पाठ्यक्रम लागू होने से छात्रांे में खुशी की लहर दौड़ पड़ी। विश्वविद्यालय को पहले की तरह 2012-13 वाली व्यवस्था पर लौटना पड़ा और एक जुलाई से दाखिला प्रक्रिया शुरू कर दी गई। बी. टेक कोर्स को चार वर्ष का ही रखा गया है।
छात्रहित प्राथमिकता
दिल्ली विश्वविद्यालय समय की जरूरत समझ रहा है। इस समय छात्र हित में दाखिला प्रक्रिया शुरू करना सबसे जरूरी है।
-प्रो. दिनेश सिंह, कुलपति, डीयू
साझी जीत
पिछले साल से जो लड़ाई लड़ी जा रही थी, उसमें कामयाबी मिली है। चार वर्षीय पाठ्यक्रम का हटना छात्र और शिक्षकों की लंबी लड़ाई का नतीजा है।
-नंदिता नारायण, अध्यक्ष, डूटा
छात्रों के साथ हुआ न्याय
पिछले एक वर्ष से दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र अपने हितों की लड़ाई लड़ रहे थे। तीन वर्षीय पाठ्यक्रम दुबारा से लागू होने से छात्रों के साथ न्याय हुआ है। कुलपति और विश्वविद्यालय प्रशासन की मनमानी के चलते छात्रों को एक वर्ष जरूर परेशान होना पड़ा, लेकिन अब उनकी राह आसान हो गई है। छात्रसंघ अब 'स्पेशल चांस' का मौका दुबारा से दिए जाने की मांग करेगा।
-अमन अवाना
अध्यक्ष, दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ
शिक्षकों और छात्रों का प्रयत्न रंग लाया
पूर्व मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल और पल्लम राजू कुलपति प्रो. दिनेश सिंह की पैरवी कर दिल्ली विश्वविद्यालय में शिक्षा के स्तर को गिराना चाहते थे। इनकी मंशा विदेशी विश्वविद्यालयों के पांव भारत में जमवाकर यहां की शिक्षा प्रणाली का स्तर कम करना था। छात्र और शिक्षक संगठनों ने यूपीए सरकार के कार्यकाल में हर दरवाजे पर दस्तक दी, लेकिन हठधर्मिता के चलते सभी को अनसुना कर दिया। स्कूल ऑफ ओपन लर्निंग में पाठ्यक्रम तीन वर्ष का ही रहा, जबकि नियमानुसार उसमें भी बदलाव होना चाहिए था। फिर भी एक ही विश्वविद्यालय में दो मापदंड अपनाए गए। विश्वविद्यालय प्रशासन हड़बड़ी में यूजीसी से अनुमति लिए बगैर ही चार वर्षीय पाठ्यक्रम को लागू कर दिया। यही नहीं इस पाठ्यक्रम को लागू करने से पूर्व पांच शिक्षाविदों की समिति ने भी इसे निम्न दर्जे का करार दिया था। 2013 में राज्यसभा में नेता विपक्ष अरुण जेटली ने भी संसद में इस पाठ्यक्रम को बिना चर्चा लागू किए जाने का विरोध किया था। विद्यार्थी परिषद और एनडीटीएफ ने छात्रों के हित को देखते हुए भाजपा के चुनाव घोषणापत्र में भी प्रयास कर इस मुद्दे को शामिल करवा दिया था। नई सरकार के गठन और यूजीसी के दबाव के बाद कुलपति को मंुह की खानी पड़ी और अंत में विद्यार्थी परिषद और एनडीटीएफ के प्रयास सफल हो गए। इस पूरी प्रक्रिया में मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी की भूमिका सराहनीय है।
एसोसिएट प्रोफेसर, पीजीडीएवी कॉलेज (प्रात:) एवं पूर्व अध्यक्ष एनडीटीएफ
यह फैसला छात्र हितों की जीत है
दिल्ली विश्वविद्यालय में चार वर्षीय पाठ्क्रम लागू करने में कुलपति और एनएसयूआई की पूर्व छात्रसंघ ने मिलकर छात्र हितों पर कुठाराघात किया था। दिल्ली विश्वविद्यालय में देश भर से छात्र-छात्राएं पढ़ने के लिए आते हैं। यहां पर हॉस्टल या किराये के मकान में रहकर वे बड़ी मुश्किल से अपना गुजारा करते हैं। लेकिन पिछले वर्ष कुलपति ने चार वर्षीय पाठ्यक्रम लागू कर छात्रों के सामने हॉस्टल या किराये के मकान में रहने की समस्या को और भी ज्वलंत बना दिया।
सही मायने में यह छात्रों के लिए धन और समय दोनों की बर्बादी वाला साबित हुआ। छात्रों ने इसके विरोध में भूख हड़ताल तक की, लेकिन यूपीए सरकार का मन छात्रांे की उचित मांग पर नहीं पसीजा। यहां तक कि तीन वर्षीय पाठ्यक्रम लागू करने की मांग कर रहे छात्रों पर सरकार ने मामले तक दर्ज करवा दिए और छात्रों पर लाठीचार्ज तक करवाया गया। फिर भी अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने विश्वविद्यालय प्रशासन की गलत नीति का विरोध जारी रखा। एनडीए सरकार बनने पर भी प्रतिनिधिमंडल ने प्रधानमंत्री को ज्ञापन सौंपकर चार वर्षीय पाठ्यक्रम को हटाने की मांग रखी थी जिसे स्वीकार कर छात्रों के हितों का ध्यान रखा गया है।
डीयू में 'अंतध्र्वनि या ज्ञानोदय एक्सप्रेस' के माध्यम से बेवजह धनराशि खर्च कर दी गई। कुलपति की शह पर ही ओबीसी फंड गलत तरीके से खर्च कर दिया गया। 16 वर्षों से डीयू में एक भी कॉलेज नहीं खोला गया। शिक्षक और गैर शिक्षकों के खाली पद भरने या छात्रों को बुनियादी सुविधाएं देने के बारे में प्रशासन कभी गंभीर नहीं हुआ, लेकिन नई सरकार ने छात्रों के हितों को ध्यान में रखकर उन्हें अतिरिक्त खर्च से बचा लिया।
-राष्ट्रीय मंत्री
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद
छात्र हित में लिया निर्णय
दिल्ली विश्वविद्यालय में चार की जगह तीन वर्षीय पाठ्यक्रम लागू करने का निर्णय छात्र हित में है। इससे छात्र, शिक्षक और विश्वविद्यालय लाभान्वित होंगे। दिल्ली विश्वविद्यालय देश का एक प्रतिष्ठित केन्द्रीय विश्वविद्यालय है, इसकी साख और विश्वसनीयता सबके लिए महत्वपूर्ण है। पिछले वर्ष बिना विचार-विमर्श किए चार वर्षीय पाठ्यक्रम लागू किया था, जो कि गलत था। भविष्य में भी सरकार से आशा है कि बदलाव अवश्य किए जाएं,लेकिन उससे पहले व्यापक स्तर पर चर्चा अनिवार्य है क्योंकि उसका प्रभाव सीधे-सीधे छात्र और शिक्षकों पर पड़ता है।
-सुनील आम्बेकर
राष्ट्रीय संगठन मंत्री, अभाविप
विश्वविद्यालय की गरिमा लौटेगी
4 वर्षीय पाठ्यक्रम कपिल सिब्बल और कुलपति की जिद एवं हठधर्मिता का परिणाम था। अमरीका की नकल पर सारे नियम कानून को ताक पर रखकर बिना विश्वविद्यालय विजिटर, विश्वविद्यालय कोर्ट और यूजीसी की सलाह के साम, दाम, दण्ड भेद से इसे जल्दबाजी में लागू किया गया। कुलपति ने शिक्षक संगठनों को तोड़ा और एनडीटीएफ को तोड़ने की भी कोशिश की, क्योंकि तत्कालीन मंत्री की शह कुलपति को प्राप्त थी इसलिए विश्वविद्यालय की गरिमा को ताक पर रखकर उन्होंने वो सब किया जो सिब्बल चाहते थे। नए पाठ्यक्रम में कुछ भी विशेष नहीं था। नई सरकार ने और मानव संसाधन विकास मंत्री श्रीमती स्मृति ईरानी ने लाखों छात्रों और हजारों शिक्षकों की भावनाओं को समझते हुए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के माध्यम से ऐतिहासिक एवं महत्वपूर्ण निर्णय लिया है, जिसका भरपूर स्वागत किया जाना चाहिए।
अच्छे दिनों की आस
देश के कई क्षेत्रों से गरीब और वंचित परिवारों के बच्चे प्रवेश हेतु दिल्ली विश्वविद्यालय में आते हैं। चार साल का पाठ्यक्रम उनके लिए मानसिक और आर्थिक दोनों ही रूपों में अव्यावहारिक था, समय और पैसे की बर्बादी था। कुलपति ने छात्रों और शिक्षकों की अनदेखी करते हुए केवल राजनीतिक दबाव में अपने कद को ही कम किया। नई सरकार से आशा है कि विश्वविद्यालय में अच्छे दिनों को लौटाते हुए वह शीघ्र नई नियुक्तियां करेगी और विद्यमान निराशा भाव को समाप्त करेगी।
-डॉ. मनोज कुमार कैन, प्राध्यापक , दिल्ली वि.वि.
यूजीसी-डीयू में ऐसे चली तकरार
16 जून-यूजीसी ने पत्र लिखकर डीयू को चार वर्षीय पाठ्यक्रम पर पुनर्विचार करने के
20 जून-यूजीसी ने डीयू को एक और पत्र लिखकर चार वर्षीय पाठ्यक्रम को राष्ट्रीय योजना का उल्लंघन बताया।लिए कहा।
21 जून-यूजीसी ने स्थायी समिति बनाकर चार वर्ष से तीन वर्ष में माइग्रेशन के लिए डीयू से सुझाव मांगा।
22 जून-यूजीसी ने आक्रामक रुख अपनाकर डीयू को चेतावनी दी और पत्र वेबसाइट पर अपलोड कर दिए।
23 जून-प्राचायार्ें से तीन वर्ष पाठ्यक्रम लागू नहीं करने का कारण पूछा गया।
24 जून-दाखिले शुुरू नहीं होने पर स्थिति रपट मांगी गई और डीयू को पत्र लिखा गया।
25 जून-डीयू प्रोफेसर, प्राचार्यों ने सभी छात्रों को तीन वर्ष में ऑनर्स डिग्री देने की सिफारिश की।
26 जून-डीयू में चार वर्षीय पाठ्यक्रम के विरोध में दुबारा से धरने-प्रदर्शन।
27 जून-दोपहर बाद कुलपति की ओर से तीन वर्षीय पाठ्यक्रम वापसी का आदेश।
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