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हमें गर्व है कि हम जनसंघ कार्यकर्ता रहे, आपातकाल के जुल्म सहे।
-पुनीत लााल धीगडा़
'मैं 1954 से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ा, बाद में जनसंघ का कार्यकर्ता बना। कांग्रेस के खिलाफ राजनीति करना आसान नहीं था। उस दौर में इमरजेन्सी लगी। रोज पुलिस घर आती थी, परिवार को तंग करती थी। हम छिपे रहते थे। एक दिन पार्टी का निर्देश हुआ, सत्याग्रह करना है। हमने जुलूस निकाला-पर्चे बांटते हुए गिरफ्तार कर लिए।' आपातकाल के दौरान जेल में बिताये समय को याद करते हुए भावुक हो जाते हैं पुनीत लाल धींगड़ा। उत्तराखण्ड के हल्द्वानी शहर के निवासी पुनीत लाल धींगड़ा ने 6 माह का वक्त नैनीताल जेल में एक बंदी के रूप में काटा, दो बार उन्हें बरेली जेल भेजे जाने के आदेश भी हुए लेकिन वह जेल से बाहर नहीं निकले।
पुनीत लाल बताते हैं कि उस समय इंदिरा और संजय गांधी का इतना खौफ था कि पुलिस कुछ भी कर सकती थी। हमारे नाखून भी खींचे, बट भी मारे लेकिन दूसरे कैदियों के हमारे साथ घुलमिल के रहने की वजह से वह अत्याचार की मर्यादाएं पार नहीं कर पाए। धींगड़ा बताते हैं, जब मुझे जेल हुई, मेरा छोटा बेटा विकास डेढ़ साल का था। पत्नी जसबीर के जिम्मे तीन और बच्चों की भी जिम्मेदारी थी। उनका लालन-पालन बेहद कठिन हो गया था।
वे बताते हैं, 'सुबह शाम गिनती के बाद कैदियों के साथ देशभक्ति के गीत गाते थे। सुबह शाखा लगाते थे, जेल पुलिस हमें तंग करती थी। पुलिस घर वालों को हमसे मिलने नहीं देती थी। हाईकोर्ट से एक बार पैरोल मिली, तब मैं रिश्तेदारी में एक शादी में शामिल हुआ।'
श्री धींगड़ा बताते हैं, उनकी गिरफ्तारी एसडीएम कोर्ट में जुलूस के दौरान पर्चा बांटते वक्त की गई लेकिन आरोप लगाया कि 'मैं रेल पटरी उखाड़ता हुआ पकड़ा गया।' उन्होंने कहा कि जनसंघ कार्यकर्ता होने का उन्हें गर्व था। बाद में भाजपा बनी। जे.पी. आंदोलन की गूंज जेल में भी, सुनाई देती थी। लग रहा था कि देश जाग रहा है। वह आंदोलन नहीं तूफान था। वे बताते हैं, आपाकाल के बाद भी वह कई बार जेल गए।
जनसंघ के दौर में भी, भाजपा के दौर में भी संघर्ष की राजनीति करते रहे। भावुक होकर धींगड़ा अपना दर्द बयां करते हैं कि आपातकाल के दौरान वह जनसंघ के शहर अध्यक्ष थे। पर आज की पीढ़ी उनके व उनके साथियों द्वारा किए गए सभी संघषोंर् को भूल गई। 'जातिवाद, क्षेत्रवाद की राजनीति ने हमारे मनोबल को ठेस पहुंचाई। संघ ने संस्कार दिए, लिहाजा किसी से कुछ मांगने भी नहीं गए। आज मोदी जी को प्रधानमंत्री देख दिल, से खुशी होती है कि हमारा संघर्ष व्यर्थ नहीं गया।' ल्ल
'मुकदमा सरकार के खिलाफ मीटिंग का चलाया'
लक्ष्य पूरा होता दिख रहा है।
-बाबूलाल गुप्ता
मुझे याद है 23 जुलाई 1975 का दिन। उससे दो दिन पहले हमारे प्रतिष्ठान में डकैती पड़ी थी। पुलिस ने हमें कोतवाली बुलाया। हमने सोचा कि केस सुलझ गया होगा। हम जैसे ही कोतवाली के सामने पहुंचे, बंदी बना लिए गए। आरोप लगाया कि हम सरकार के खिलाफ मीटिंग कर रहे थे, लोगों को भड़का रहे थे।' ये कहना है बाबू लाल गुप्ता का, जो करीब छह माह तक आपातकाल में बंदी रहे।
उत्तराखण्ड के हल्द्वानी शहर में कारोबार करने वाले बाबूलाल जी 1952 से स्वयंसेवक हैं। बाद में जनसंघ से जुड़े। उद्योग व्यापार मण्डल के जरिए सरकार से व्यापारी हितों की लड़ाई लड़ते रहे, बाबू लाल जी बताते हैं, 'आपातकाल के दौरान सबसे पहले जेल जाने वालों में स्वादान सिंह बिष्ट, उनके साथ शिवशंकर अग्रवाल, पुनीतलाल, रामदत्त जोशी, जगन्नाथ पाण्डेय आदि लोग थे। उनके बाद हमारी बारी आयी। हम कुल 23 लोग हल्द्वानी से थे, एक माह हल्द्वानी जेल में बाकी माह बरेली जेल में रहे।'
बरेली में उनके साथ नित्यानंद स्वामी, जगन्नाथ परमार भी थे। बाबूलाल जी बताते हैं, 'जेल से जमानत होने के बाद भी कई वषोंर् तक मुकदमा चलता रहा। उस दौर में प्रचारकों की प्रेरणा से स्वयंसेवक तैयार होते थे, हमें जो भी संस्कार मिले, संघ से मिले। हमारा लक्ष्य हिन्दू राष्ट्र की, पुनर्स्थापना है, जो शायद अब पूरा होता दिख रहा है।'
प्रस्तुति: दिनेश मानसेरा
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