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गोगोई का बंगलादेशी घुसपैठियों के प्रति लगाव देश की सुरक्षा के लिए घातक
वरिष्ठ संवाददाता
असम में हाल ही में भड़की हिंसा के लिए देश कभी असम की तरुण गोगोई सरकार को माफ नहीं करेगा। इसके साथ ही,हिंसा को लेकर ममता बनर्जी ने जिस तरह से वोट बैंक की राजनीति खेली उसे भी देश ने देखा। पर पहले बात असम सरकार के निकम्मेपन की। जाहिर है, उसने बोडो क्षेत्र में 1993,2008 और 2012 में भड़की हिंसा से सबक नहीं सीखा। इन तीनों मौकों पर असम में कांग्रेस की ही सरकार सत्तासीन थी।
असम के कोकराझार और बक्सा जिले सांप्रदायिक या जातीय हिंसा की आग में झुलस गये। यह स्थिति किसी भी देशवासी के लिए शर्मनाक होनी चाहिए, लेकिन हमारे नेता इस पर भी राजनीति करने से बाज नहीं आ रहे। बोडोलैंड क्षेत्रीय स्वायत्तशासी जिलों में यह हिंसा अप्रत्याशित नहीं है। दरअसल चुनाव के दौरान ऐसी हिंसा की आशंका भी जतायी गयी थी, लेकिन गोगोई की कांग्रेस सरकार ने उसे रोकने के लिए जरूरी कदम नहीं उठाये। यह बेहद शमर्नाक है कि गोगोई राज्य में भड़की हिंसा के लिए दूसरों को दोषी बता रहे हैं।
ताजा हिंसा के पीछे उन दो जिलों में बंगलादेशी घुसपैठियों की बढ़ती संख्या पर पैदा हुआ तनाव बड़ी वजह है। समझने की जरूरत है कि असम बहुजातीय समाज है जहां हिंदू 61 प्रतिशत हैं जबकि मुसलमान 34 प्रतिशत। बोडोलैंड के अलावा बाकी असम में भी बंगला बोलने वाले मुसलमानों और असमिया बोलने वाले हिंदुओं के बीच तनाव दशकों से चला आ रहा है। बोडो इलाकों में रहने वाले मुसलमान आमतौर पर कांग्रेस पार्टी को वोट डालते हैं।
दरअसल आम चुनावों के वक्त राजनैतिक दलों के द्वारा मुद्दों, अच्छी शासन व्यस्था एवं विकास पर केंद्रित प्रचार अभियान चलाया जाना चाहिए। परन्तु कई राजनैतिक दलों को ध्रुवीकरण में ही अपना हित दिखाई देता है। दरअसल सालों पुरानी इस समस्या पर कांग्रेस सरकार द्वारा जानबूझकर कोई सकारात्मक पहल नहीं की गयी। परिणामस्वरूप असम के सीमावर्ती जिलों में स्थानीय असमी जनता से कहीं अधिक जनसंख्या बंगलादेशी घुसपैठियों की हो गयी है। साथ ही देश के अन्य राज्यों,जैसे पश्चिम बंगाल एवं बिहार के कुछ जिलों में जनसंख्या के अनुपात में परिवर्तन देखा गया है। राजनैतिक एवं सामाजिक स्तर पर इस घुसपैठ के दुष्परिणाम आने लगे हैं, साथ ही स्थानीय संसाधनों पर भी अनावश्यक बोझ बढ़ता जा रहा है। यह समस्या राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी एक बड़ी चुनौती है।
बेशक देश में इस घुसपैठ पर पूर्णत: रोक लगायी जानी चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय ने भी इस सम्बन्ध में कहा है कि यह एक तरह का मूक आक्रमण है। न्यायलय ने इस सम्बन्ध में सरकार को निर्देश भी दिए हैं कि वह इन घुसपैठियों की नागरिकता की पहचान कर उचित कार्यवाही करे। देश की सुरक्षा से सम्बंधित इस मुद्दे को असम एवं पश्चिम बंगाल के कुछ राजनैतिक दल अपने फायदे के रूप में देखते हैं क्योंकि ज्यादातर घुसपैठिये उनके सेकुलर वोट बैंक का हिस्सा बन जाते हंै। यह एक खतरनाक तथ्य है जिसकी लगातार उपेक्षा की जा रही है।
नरेंद्र मोदी का घुसपैठ के मुद्दे पर उचित एवं तर्कसंगत मत है। हमें घुसपैठियों एवं पलायनकर्ता के मध्य के अंतर को समझना होगा। किसी देश से पलायन करने वाला व्यक्ति उस देश की राजनैतिक एवं धार्मिक विषमताओं के कारण अन्य राष्ट्र में आश्रय लेता है परन्तु घुसपैठिये अपने आर्थिक फायदे के लिए अन्य देश में जबरन प्रवेश करते हैं। दोनों के मध्य कोई तुलना नहीं की जा सकती।
बेशक कोई भी देश इतनी बड़ी संख्या में शरणार्थियों और घुसपैठियों का बोझ अनंतकाल के लिए नहीं उठा सकता। कांग्रेस और उसके मित्र दलों पर वोट बैंक राजनीति के चलते ही बंगलादेशियों को वापस भेजने में टालमटोल करने के आरोप लगते रहे हैं। कोकराझार सीट से अकसर बोडो उम्मीदवार ही जीतता रहा है, लेकिन इस बार गैर बोडो संगठनों और लगभग चार लाख मुसलमानों के बीच तालमेल के चलते वह सिलसिला टूटने की आशंका को ही 24 अप्रैल के मतदान के बाद हुई हिंसा का कारण माना जा रहा है। ऐसी सोच और उससे प्रेरित कोई भी धु्रवीकरण देश और समाज के लिए घातक ही साबित हो सकता है, लेकिन फिर भी हमारे राजनेता ऐसी घटनाओं से सबक सीखने के बजाय लगातार ऐसी ही सोच को बढ़ाने की कोशिश में जुटे हैं। असम में घुसपैठ एक बड़ा मसला है। केन्द्र और राज्य सरकार को सीमा के उस पार से होने वाली घुसपैठ को रोकना होगा।
असम में भड़की हिंसा,बंगलादेशी घुसपैठ को लेकर ममता बनर्जी के रुख पर भारत का हर देशभक्त नागरिक हतप्रभ है। उधर गोगोई के मन में मुसलमानों वोटों के लालच से देश की सुरक्षा पर संकट है। असम के बोडो क्षेत्रों में पहले भी भयानक हिंसा भड़क चुकी है, इस आलोक में सभी संबंधित पक्षों को विचार करना होगा कि समस्या का हल कैसे खोजा जाए।
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