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विवेक शुक्ला
गुजरे दौर के लोकसभा चुनावों के दौरान हुए चुनाव प्रचार के मिजाज को देखें तो आप पाएंगे कि उसमें कोई भी नेता या पार्टी कारपोरेट दुनिया यानी उद्योग जगत को उसमें नहीं घसीटती थी, कारपोरेट जगत की शिखर हस्ती पर हल्ला नहीं बोला जाता था। याद नहीं आता कि कभी जे.आर.डी. टाटा,जी.डी.बिड़ला या केशव महिन्द्रा सरीखी किसी बड़ी कारपोरेट हस्ती को निशाना बनाया गया था। वाम पार्टियां भी कारपोरेट पर सीधा हमला बोलने से बचती थीं। पर इस लिहाज से इस बार के चुनाव प्रचार का स्तर बहुत नीचे आ गया दिखता है। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी लगातार कारपोरेट जगत पर निशाने साध रहे हैं। अंबानी और अडानी समूह इन दोनों के निशाने पर हैं। पर बड़ा सवाल ये है कि क्या कारपोरेट हस्तियों या बड़े कारपोरेट समूहों को देश-विरोधी या असामाजिक तत्वों की श्रेणी में रखना सही माना जा सकता है? कतई नहीं। राहुल गांधी गुजरात के विकास मॉडल को टाफी मॉडल कह रहे हैं। वे सवाल खड़े कर रहे हैं कि गुजरात सरकार ने औने-पौने दामों पर उद्योगपतियों को जमीनें आवंटित कर दीं। जाहिर है, कांग्रेस के इस हमले से इंडस्ट्री में बैचेनी का माहौल है। पर,काश राहुल गांधी को मालूम होता कि विप्रो,इंफोसिस,टीसीएस जैसी विख्यात आईटी कंपनियों को महाराष्ट्र और कर्नाटक में कांग्रेस की सरकारों के दौरान पुणे और बेंगलुरू में सस्ते दामों पर जमीनें आवंटित हुईं? ताजा हालात ये हैं कि अब इन दोनों शहरों में हजारों आईटी पेशेवरों को रोजगार मिल रहा है। ये पेशेवर सारे देश से आते हैं। कौन सा देश या प्रदेश है,जो अपने यहां उद्योग को आकर्षित करने के लिए उन्हें टैक्स में राहत से लेकर सस्ती जमीन नहीं देता? ये सामान्य प्रक्रिया है।।अचानक से कारपोरेट संसार की कुछ खास कंपनियों पर ही हल्ला क्यों बोला जा रहा है, इसका जवाब नेता ही दे सकते हैं। निवेशक किसी जगह पर निवेश करने से पहले कुछ मुनाफे की अपेक्षा करता ही है। जरा सोचिए, क्या आज गुड़गांव इस मुकाम पर होता अगर मारुति को सस्ते दामों पर जमीन आवंटित नहीं की जाती? राहुल गांधी भूमि आवंटन और ह्यक्रोनी कैपिटलिज्मह्ण के नाम पर मोदी पर प्रहार कर रहे हैं, अरविंद केजरीवाल भी इस लिहाज से पीछे नहीं हैं। राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल कह रहे हैं कि मुकेश अंबानी और गौतम अडानी को नरेंद्र मोदी ने रेवडि़यां बांटी। अगर इन्होंने बेहतर तरीके से होमवर्क किया होता तो इन्हें पता चला होता कि मोदी के गुजरात का मुख्यमंत्री बनने से पहले ही अंबानी और अडानी का गुजरात में तगड़ा निवेश था। इसी तरह सेअंबानी और अडानी देश के दूसरे राज्यों में भी निवेश कर रहे हैं।आम आदमी पार्टी में अरविन्द केजरीवाल से लेकर छोटे-मोटे नेता भी अडानी को लेकर तरह तरह के आरोप लगा रहे हैं। याद नहीं आता कि अमरीका के राष्ट्रपति के चुनाव में माइक्रोसाफ्ट के बिल गेट्स या गूगल के सह-संस्थापक लैरी पेज पर कोई नेता हल्ला बोल रहा था। तो हमारे यहां उद्योग जगत चुनाव प्रचार में किसलिए घसीटा जा रहा है? बेशक,इससे देश में निवेश को लेकर देशी-विदेशी निवेशकों के बीच कोई बहुत बेहतर संदेश नहीं जाएगा।हालांकि हमें विदेशी निवेश की दरकार है, पर हमें अपने यहां ईमानदारी और कायदे से कारोबार करने वालों को भी प्रोत्साहित करना होगा। देश और समाज को लेकर संवेदनशील औद्योगिक घरानों को प्रोत्साहित करना होगा। क्या हम इस बारे में गंभीर हैं? कुमारमंगलम बिड़ला के खिलाफ कोलगेट में एफआईआर दर्ज होने के बाद ये सवाल देश पूछा जा रहा है। अगर अमरीका में किसी प्रमुख उद्योगपति पर एफआईआर दर्ज हो तो क्या होगा? वहां पर उसी तरह से माहौल बनेगा जैसे कि हमारे यहां पर कोलगेट मामले में अचानक से कुमारमंगलम बिड़ला को लेकर बना। उद्योग जगत सन्न रह गया था। उनका इस जगत में वही स्थान है, जो टाटा समूह के पूर्व प्रमुख रतन टाटा, महिन्द्रा एंड महिन्द्रा के प्रमुख आनंद महिन्द्रा, एचडीएफसी बंैक के चेयरमेन दीपक पारेख या फिर रिलायंस समूह के प्रमुख मुकेश अंबानी का है। मजाल है कि कभी कुमारमंगलम बिड़ला का नाम किसी विवाद में भी आया हो। जाहिर है, इसलिए उनके खिलाफ सीबीआई की तरफ से आरोप पत्र दायर करने से सरकार से लेकर कारपोरेट जगत में ऊ पर से नीचे तक हडकंप मच गया था। सबको याद होगा कि इससे पहले 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में सुनील भारती मित्तल और एस्सार ग्रुप के रवि रुइया को अदालत से समन जारी हो चुका है। बेशक,कारपोरेट जगत पर अधकचरी जानकारी के आधार पर हल्ला बोलने से निवेश के माहौल पर विपरीत असर पड़ेगा। ये टेलिकॉम सेक्टर में हुआ था।अडानी की बात करें तो उन्होंने मोदी से अपनी नजदीकियों को कभी छिपाने की कोशिश नहीं की, तब भी नहीं जब वर्ष 2004 में एनडीए सरकार सत्ता से बाहर हो गई थी। लेकिन, सचाई यह है कि वह उन पर ज्यादा निर्भर नहीं रहे। यहां तक कि हरियाणा, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान में अपने ऊर्जा कारोबार को बढ़ाया। अडानी का 35 फीसदी निवेश गुजरात में है, जबकि लंबे समय से कांग्रेस शासित राज्यों में भी इस घराने ने बड़े पैमाने पर निवेश किया है। रिलायंस की स्थिति भी ऐसी ही है। राहुल गांधी और केजरीवाल के लिए बेहतर यही होगा कि गुजरात की उपलब्धियों को झुठलाने के बजाय वे विकास के मुद्दों पर अधिक ध्यान दें। राहुल गांधी उद्यमियों और आम जन के बीच मिल-जुलकर काम करने पर जोर देते रहे हैं। इसलिए उनका अंबानी-अडानी पर वार करना समझ से परे हैं। राहुल गांधी पिछले साल फिक्की के एक कार्यक्रम में शामिल हुए थे। वहां उन्होंने कहा, ह्यभ्रष्टाचार लोगों को आहत कर रहा है और दावा किया कि संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार ने अन्य किसी भी सरकार के मुकाबले भ्रष्टाचार से निपटने में कहीं ज्यादा काम किया है।ह्ण राहुल ने कहा, ह्यभ्रष्टाचार सबसे बड़ा मुद्दा है। इसने जनता को सर्वाधिक पीडि़त किया है। इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता।ह्णउनके भ्रष्टाचार से लड़ने के ह्यइरादेह्ण से सब चकित थे। कांग्रेस के नेता का ऐसा कहना चौंकाने वाली बात ही थी। पर किसी को अकारण घेरना समझ से परे है। अगर बात केजरीवाल की करें तो वे देश को आर्थिक उदारीकरण से पहले के दौर में लेकर जाना चाहते हैं। राहुल गांधी और केजरीवाल को समझना चाहिए कि ये कारपोरेट जगत देश में शेयर धारकों की एक जमात तैयार करता है। इनसे तमाम नौजवान प्रेरित होकर उनके रास्ते पर चलते हैं।जे.आर.डी.टाटा,एऩ नारायणमूर्ति,आनंद महिन्द्रा,स्टीव जॉब्स वगैरह ने ना जाने कितने नौजवानों को उनके जैसा बनने के लिए प्रेरित किया। कारोबारी बनना कोई बच्चों का खेल नहीं है। लंबी योजना, मेहनत और धैर्य के बाद सफलता मिलती है। हां, यह भी सच है कि कोई कानून से ऊपर नहीं है। अगर किसी ने कानून का उल्लंघन किया हो तो उस पर कार्रवाई की जानी चाहिए। पर राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए किसी पर वार करना खतरनाक है। इससे बचना चाहिए।
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