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रोमा कहिए या अन्तरराष्ट्रीय बंजारे। पूरी दुनिया में फैले ऐसे लोग जिनकी भाषा और संस्कृति पर भारतीयता की स्पष्ट छाप है, लेकिन हर जगह, हर देश में जिन्हें हाशिए पर ठेल दिया गया और जिनके मानवाधिकारों की कोई बात नहीं करता। ह्यूमन राइट्स डिफेंस इंटरनेशनल (एचआरडीआई) द्वारा 3 मई को नई दिल्ली के भारतीय विधि संस्थान के सभागार में ह्यरोमाओं के मानवाधिकारह्ण विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस संगोष्ठी में विश्वभर में फैले हुए रोमाओं के अभावों, उनकी समस्याओं और उन पर हो रहे अत्याचारों को मानवाधिकारों का हनन बताते हुए इन्हें अन्तरराष्ट्रीय मंचों पर उठाने की वकालत की गई। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि पूर्व विदेश सचिव श्री शशांक ने कहा कि एक देश की पहचान उसकी समृद्ध विरासत, सनातन संस्कृति और जीवन्त मूल्य ही होते हैं। पूर्वी यूरोप सहित अमरीका और आस्ट्रेलिया तक फैला रोमा समुदाय ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और जैवीय दृष्टि से भारत देश से ही निकला प्रमाणित हो रहा है। भारत की इन खोयी हुई संतानों को हमें एक विशेष भावनात्मक पहचान देने के साथ इन पर हो रहे अत्याचारों और शोषण के विरुद्ध स्वर बुलंद करने होंगे। कुछ विशेष प्रतीकों की स्थापना करके हम रोमा समुदाय को एकसूत्र में पिरोकर उसकी पुरानी जड़ों से जोड़ सकते हैं। रोमा समुदाय से सम्बन्धित मानवाधिकार के मुद्दों को हमें पूरी ताकत के साथ प्रत्येक मंच पर उठाना चाहिए। रोमाओं पर शोध करने वाली रोमा अधिकार कार्यकर्ता डा. निधि त्रेहन ने कहा कि पूरे विश्व में करीब एक करोड़ रोमा फैले हुए हैं जिन्हें कि यूरोप सहित संबंधित देशों में दूसरी या तीसरी श्रेणी का नागरिक माना जाता है। ये ज्यादातर अशिक्षित, कुपोषित और अत्याचारों से ग्रस्त हैं। इनकी भाषा इंडिक अथवा संस्कृतनिष्ठ हिन्दुस्तानी है, समय आ गया है कि हम इनपर शोध और मेल-जोल बढ़ाने का प्रयत्न करें।
पाञ्चजन्य के पन्नों से
मानवाधिकारों के वैश्विक समर्थक श्री रवि अय्यर ने कहा कि विश्व विजेता सिकन्दर के कवच पर भारत के एक सामान्य नागरिक ने तीर चलाया था जो उसे भेद गया और विष बनकर आखिर उसकी मृत्यु का कारण भी बना। जाते वक्त यूनानी अपने साथ यहां से हजारों बंजारों को ले गए। आज इन्हीं के वंशज रोमा अलग-अलग देशों के राजनेताओं द्वारा खदेड़े जा रहे हैं। फ्रांस के राष्ट्रपति सरकोजी हजारों की संख्या में इन रोमा लोगों को कोसोबो भेजने की कार्रवाई कर चुके हैं। स्वीडन में पुलिस रिकार्ड में 3000 लोग हैं जिनमें 3 वर्ष का बच्चा भी अपराधी बनाया गया है। सेवा इंटरनेशनल के महामंत्री श्री श्याम परांडे ने कहा कि- रोमा समुदाय के नाम से प्रसिद्ध सदियों से दूर हुआ भारतीय समाज का यह हिस्सा 20-22 देशों से अमरीका, कनाडा और अब आस्ट्रेलिया तक भी पहुंच गया है। प्रख्यात भाषाशास्त्री डा. रघुवीर, भिक्खू लाल, पठानिया आदि लोगों ने इन जिप्सी और रोमा समाजों की भाषा पर व्यापक अनुसंधान किया था। इस परंपरा को आगे बढ़ाने की जरूरत है। 2001 में भारत में हुए रोमा सम्मेलन में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी के सम्मुख इस समुदाय ने नागरिकता का आग्रह किया था।
सर्विया कोसोवा में रोमा समुदाय का अध्ययन करने वाले श्री सुरेश पिल्लई ने कहा कि डीएनए रोमा लोग भारतीय मूल के हैं। आज ये अभाव और बेरोजगारी के चलते यौन उत्पीड़न के शिकार हो रहे हैं। इन देशों की सरकारें और न्यायालय तक उनके अधिकारों के संरक्षण से राजनीति के चलते बच रहे हैं। फिर इनकी चिन्ता हम नहीं तो कौन करेगा।
संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए अन्तरराष्ट्रीय रोमा सांस्कृतिक विश्वविद्यालय बेलग्रेड (सर्विया) के कुलपति पद्मश्री डा. श्याम सिंह शशि ने कहा कि विश्वभर में रोमा समुदाय आज से 1000 वर्ष पूर्व यदि गया तो वह पुरानी हिन्दी को नहीं बल्कि अपने साथ हिन्दुस्तानी भाषा को लेकर गया था। इन रोमाओं की भाषा में आज भी सबसे ज्यादा संस्कृत, पंजाबी, राजस्थानी या पहाड़ी भाषा के शब्द हैं। रोमाओं और उनकी भाषा पर पहली पुस्तक प्रकाशन विभाग के सहयोग से भिक्खू चमनलाल ने प्रकाशित की थी। इस अवसर पर श्री सुरेश पिल्लई द्वारा निर्देशित रोमा समुदाय पर केन्द्रित वृत्तचित्र ह्यपुरानो मानुषह्ण भी दिखाया गया। संगोष्ठी के प्रारंभ में एचआरडीआई के महामंत्री राजेश गोगना ने बताया कि संस्था भविष्य में रोमाओं के अधिकारों के प्रति भारत सरकार और संबंधित देशों की सरकारों से व्यापकचर्चा करेगी। गोष्ठी का संचालन श्री चन्द्रशेखरन देव ने किया।
प्रतिनिधि
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