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.अहिंसा के उपासक शांति वाणी शक्ति स्रष्टा तुम,
न फिर समझे कोई कायर जगतभर को बता दो तुम।
समूचे विश्व को परिवार ही अपना समझते हैं,
मनुजता के हैं प्रहरी हर मनुज को प्यार करते हैं।।
है अपनी शान्ति जग जाहिर मगर उसकी भी सीमा है,
कि सौ गाली के आगे फिर नहीं बर्दाश्त करते हैं।
ये अपनी रीति है अनरीत को पाला नहीं करते,
है निश्चित वक्त आगे जुल्म को टाला नहीं करते।।
भारत मां की छाती पर किसी भी नीच हरकत को ,
बढ़ावा दे के मुंह अपना कभी काला नहीं करते।
मनुजता का हननकर्ता क्षमा का हक न रखता है,
पतंगा खुद के मिटने तक कभी भी चुप न रहता है।।
अपने शस्त्र जो शास्त्रों के निर्देशन से हैं अनुशासित
तनिक विश्राम गढ़ लंका ढहाने तक न करते हैं।
अपने हर कदम तो शास्त्र के साये मंे उठते हैं,
जब उठते हैं तो अपना लक्ष्य पाने तक न रुकते हैं।।
अपनी एक पद्धति है जो पावन है निरन्तर है,
मनुजता के सिवा आगे किसी के सिर न झुकते हैं।।
कुंवर बहादुर सिंह
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