जीवन के पन्ने-कुछ रुपहले, कुछ मटमैले
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सुप्रसिद्ध कथा लेखिका सुधा मूर्ति उपन्यास, यात्रा वृत्तान्त, कहानी-संग्रह, कथेतर रचनाएं तथा बच्चों के लिए अनेक पुस्तकें लिख चुकी हैं। कई पुस्तकों का भारत की प्रमुख भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। भारत सरकार की ओर से श्रीमती सुधा मूर्ति को 2008 में साहित्य के लिए ह्यआर के. नारायणह्ण पुरस्कार और प्रतिष्ठित सम्मान ह्यपद्मश्रीह्ण मिल चुका है। उनकी हाल ही में एक पुस्तक ह्यमां का दुलारह्ण का हिन्दी अनुवाद प्रकाशित हुआ है। इस पुस्तक में प्रमुख बात यह है कि इसके सभी अध्याय लेखिका के स्वयं के जीवन से जुड़े अनुभवों पर आधारित हैं।
पहले ही अध्याय में कहानी ह्यबंबई से बंगलौरह्ण में एक ऐसी लड़की, जिसका काल्पनिक नाम चित्रा है, का जिक्र किया है, जो जन्म से ही अपनी मां को खो चुकी थी। मां की मृत्यु के बाद पिताजी ने दूसरी शादी कर ली। सौतेली मां का व्यवहार उसके साथ काफी बुरा था। सौतेली मां द्वारा रात-दिन घर का सारा काम करवाना, खाना न देना, मारना-पीटना चित्रा की रोज की दिनचर्या में समाहित हो चुका था। इस सबसे ऊब चुकी चित्रा जीवन को नए सिरे से जीने का संकल्प मन में लेकर बंगलौर से मुम्बई की ट्रेन में सवार हो गई। खाली हाथ, फटे-पुराने कपड़े, एक पैसा नहीं। ट्रेन के थोड़ी दूर चलने के बाद टिकट निरीक्षण करने वाला आया और चित्रा से टिकट दिखाने को कहा, लेकिन जब टिकट है ही नहीं तो वह क्या दिखाए। ऐसे में पास बैठी लेखिका ने दया स्वरूप स्वयं उस लड़की का पूरा हर्जाना भरकर टिकट लिया। डरी सहमी चित्रा टे्रन में एक स्थान पर ही सुबह तक बैठी रही। ट्रेन जब मुम्बई पहुंची तो चित्रा भी लेखिका के साथ आने लगी। इसको देखकर लेखिका के मन में उसके प्रति दया व अपार प्रेम का भाव जाग्रत हुआ और उन्होंने मुम्बई में ही अपने पहचान के आश्रय ग्रह में ही उसको रखवा दिया और उसकी तमाम जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली। पढ़ने में अच्छी चित्रा की लगन व मेहनत को देखकर लेखिका ने उसे आर्थिक सहयोग भी दिया जिसके बलबूते कंप्यूटर साइंस में चित्रा ने डिप्लोमा ले लिया। डिप्लोमा लेने के बाद चित्रा को असिस्टेंट टेस्टिंग इंजीनीयर की नौकरी मिल गई। नौकरी मिलने के बाद चित्रा के जीवन की दिशा ही बदल गई।
लेखिका ने अपने अनुभव को पुस्तक की प्रत्येक कहानी में जीवन्त रूप देने की पूरी कोशिश की है और काफी हद तक सफल भी हुई हैं। एक सामान्य किसान की ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठता, मेहनत को बयान करती एक कहानी ह्यपरप्पा का बगीचाह्ण में किसान के अपने गांव व उसमें रहने वाले लोगों के प्रति अमिट प्रेम को प्रकट किया गया है, कि कैसे एक छोटे से बगीचे में सब्जियां उगाकर महंगाई की मार से पीडि़त निर्धन ग्रामवासियों को अपनी मेहनत के चलते परप्पा ने मदद की। पुस्तक में संकलित कहानियों से कुछ न कुछ सीख अवश्य मिलती है और पढ़ने वालों को भावुक भी करती हैं। कुल 37 अध्यायों में ह्यबदलता भारतह्ण, ह्यमृतकों की मददह्ण, ह्यबलिदानह्ण, ह्यजीवन के सबकह्ण काफी प्रासंगिक हैं। वास्तव में लेखिका ने पुस्तक में उन सभी पहलुओं को लिया है, जिससे कहानी में सजीवता आ गई है।
पुस्तक का नाम – मां का दुलार
लेखिका – सुधा मूर्ति
प्रकाशक – प्रभात प्रकाशन 4/19 आसफ अली रोड,
नई दिल्ली-110002
मूल्य – 200 रु., पृष्ठ – 144
स्टीफन हॉकिंग का नाम मस्तिष्क में आते ही लोगों में ब्लैक होल सिद्घांत की याद ताजा हो जाती है। लेखक महेश शर्मा ने वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग पर लिखी अपनी पुस्तक में अनेक पहलुओं की चर्चा की है जिनमें ब्लैक होल का सिद्घांत विशेष वर्णित है। असाध्य रोग ह्यमोटर न्यूॅरानह्य से प्रभावित होने के बावजूद विज्ञान के क्षेत्र में कीर्तिमान स्थापित करने वाले हॉकिंग का बडे़ से बडे़ वैज्ञानिक भी लोहा मानते हैंै। स्टीफन ने न केवल कीर्तिमान बनाया, बल्कि दूसरे लोगों के समक्ष एक नया इतिहास बना डाला कि भले ही रोग कितना ही बड़ा क्यों न हो, लेकिन व्यक्ति की यदि इच्छाशक्ति मजबूत है तो फिर वह हर संकल्प पूरा कर सकता है, चाहे फिर मार्ग में कितनी ही बाधाएं क्यों न आती रहें, वह पीछे मुड़कर नहीं देखता है।
वर्ष 2009 में अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने स्टीफन को अमरीका के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ह्यराष्ट्रपति पदकह्य से सम्मानित किया था। वह वर्ष 2001 में भारत की यात्रा पर आए थे और तब भी उनकी खूब सराहना हुई थी। पुस्तक में उनके जीवन से जुड़ी अधिक से अधिक रोचक घटनाओं को समाहित करने का पूर्ण प्रयास किया है। पहले खण्ड ह्यजीवनी खण्डह्ण में उनके आरम्भिक जीवन व विद्यालय में प्रवेश से लेकर उनके पारिवारिक जीवन को विस्तृत रूप में बताया है। बचपन के जीवन में स्टीफन पढ़ाई में कम रुचि रखते थे पर वह ब्रह्माण्ड के विषय में ज्यादा से ज्यादा जानकारी लेने में तत्परता दिखाते थे। वह सदैव यह सोचते रहते थे कि ब्रह्माण्ड कहां से आया, इसका निर्माण कैसे हुआ तथा सृजन किसने किया। पुस्तक में स्टीफन हॉकिंग के जीवन में प्रमुख घटना को अपने अध्याय ह्यकैंब्रिज में प्रवेश और असाध्य रोग मेंह्ण बताया गया है कि किस प्रकार उनके जीवन में रोग की चपेट में आकर एक नया मोड़ आया, ह्यएक्थोट्रोफिक लेटरल स्केलेरोसिसह्ण ऐसा रोग होता है, जिसमें चलना,बोलना,शरीर के ज्यादा से ज्यादा अंग कार्य करने में असमर्थ हो जाते हैं, लेकिन इसके बावजूद भी स्टीफन ने कभी भी जीवन से हार नहीं मानी और सदैव साहस के साथ आगे बढ़ते गए और विज्ञान के क्षेत्र में जो भी कार्य कर दिये वे आज भी दुनिया के लिए मिशाल बने हुए हैं। पुस्तक में इन सभी घटनाक्रमों को जीवन्त तरीके से प्रस्तुत किया गया है। पुस्तक के द्वितीय खंड में एक प्रसिद्घ समाचार चैनल को दिए उनके साक्षात्कार को समाहित किया है, जो काफी प्रासंगिक है, जिसमें उन्होंने भविष्य में प्रधानमंत्री बनने की इच्छा जतायी थी। स्टीफन हॉकिंग जो कि आविष्कारों के लिए ही जाने जाते हैं, उनके विज्ञान के क्षेत्र में अनेक अविस्मरणीय योगदान, और सिद्घान्तों जैसे ऊर्जा गतिज विज्ञान, काल की नई संकल्पना, गुरुत्वाकर्षण का नियम, ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के संबंध में उनके अनेक सिद्घान्तों को बड़े ही सुन्दर तरीके से प्रस्तुत किया गया है। पुस्तक में कुल छह खण्डों में उनके जीवन से जुड़े प्रत्येक उस पहलू को लेने का प्रयास किया है जिसको जानकर देश-दुनिया का प्रत्येक व्यक्ति हॉकिंग से शिक्षा ले कि विकलांगता किसी कार्य में बाधक नहीं बनती। अपार बुद्घिमत्ता, असीम धैर्य और बेजोड़ हिम्मत के संयोग से उन्होंने असम्भव को भी सम्भव कर दिखाया। प्रतिकूल परिस्थितियों में जीवन कैसे जिया जाता है उनको देखकर सीखा जाता सकता है। आज वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग दुनिया के लिए प्रेरणासे्रात हैं। कुल मिलाकर लेखक ने उनके जीवन के प्रत्येक पहलू को छूने का प्रयास किया है। हॉकिंग के जीवन को जानने की इच्छा रखने वालों के लिए यह पुस्तक उपयोगी साबित हो सकती है।
पुस्तक का नाम – स्टीफन हॉकिंग
लेखक – महेश शर्मा
प्रकाशक – प्रतिभा प्रतिष्ठान,़
1661, दखनीराय स्ट्रीट,
नेताजी सुभाष मार्ग,
नई दिल्ली -110002
मूल्य – 200 रुपए, पृष्ठ – 143
किताबें करती हैं जिन्दगी को रौशन
किताबें जिदगी को रौशन करती हैं और उनका अर्पण सबसे बड़ा दान है। क्योंकि किताबें ही हमारे जीवन का आधार होती हैं साथ ही जीवन को कैसे जिया जाय, वह भी सिखाती हैं। गत दिनों माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल में विश्वविद्यालय के पूर्व महानिदेशक और वरिष्ठ पत्रकार श्री राधेश्याम शर्मा ने अपनी पुस्तकें विश्वविद्यालय के पुस्तकालय हेतु भेंट किए जाने के उपरांत गोष्ठी को संबोधित करते हुए उक्त बातें कहीं। उन्होंने आगे कहा कि जिसने भी जीवन में पुस्तकों को अपना मित्र बना लिया उसको किसी भी दूसरे मित्र की जरूरत नहीं पड़ती है। जीवन में पुस्तकों का जो महत्व है शायद ही किसी का हो। इस अवसर पर साहित्यकार कैलाश चंद्र पंत ने कहा कि श्री शर्मा ने अपने जीवन की पूरी कमाई विश्वविद्यालय को सौंप दी है ,क्योंकि किसी लेखक-पत्रकार के लिए किताबें ही उसकी पूंजी होती हैं। विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बृज किशोर कुठियाला ने कहा कि यह एक सार्थक परम्परा है और हम सभी को ऐसे लोगों से सीख लेनी चाहिए।
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