छोटा बच्चा पूछ रहा है कल के बारे में साजिश रचकर भाग्य समय ने कुछ ऐसे बांटा कृष्ण पक्ष है, आंधी भी है पथ पर सन्नाटा कौन किसे अब राह दिखाए इस अंधियारे में अन्तर्ध्यान हुए थाली से रोटी दाल सभी कहीं खो गए हैं जीवन के सुर-लय-ताल सभी लगता ढूंढ रहे आशाएं ज्यों इकतारे में नई उमंगें नए सृजन भी कुछ तो बोलेंगे शनै-शनै आशंकाओं की परतें खोलेंगे एक नई दुनिया है शायद मिट्टी गारे में
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