तिलपत वाले बाबा सूरदास के मंदिर में उमड़ती है श्रद्धालुओं की भीड़
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तिलपत वाले बाबा सूरदास के मंदिर में उमड़ती है श्रद्धालुओं की भीड़

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Jan 11, 2014, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 11 Jan 2014 13:52:46

हरियाणा के फरीदाबाद जिले में स्थित तिलपत गांव में बने बाबा सूरदास मंदिर का विशेष महत्व है। मंगलवार के दिन यहां फरीदाबाद, दिल्ली और नोएडा से कई हजार श्रद्धालु श्री राधा-वल्लभ मंदिर और बाबा की समाधि की परिक्रमा करने पहंुचते हैं। गुरु पूर्णिमा, गोवर्धन पूजा, मकर संक्रांति, राधा अष्टमी और जन्माष्टमी पर यहां विशेष आयोजन किया जाता है।
बताते हैं तिलपत गांव उन्हीं पांच गांवों में से एक है जिन्हें पांडवों ने कौरवों से मांगा था। ऐतिहासिक दृष्टि से भी इस गांव का विशेष महत्व है। बताया जाता है कि यहां पर पांडवों ने भगवान श्रीकृष्ण के साथ यज्ञ भी किया था। वर्ष 1932 के करीब यहां श्री श्री 1008 किशोरी शरण जी महाराज (बाबा सूरदास) आए थे। गांव वाले बताते हैं कि बाबा मूल रूप से गढ़वाल (उत्तराखण्ड) के थे, लेकिन यहां आने के बाद वह यहीं के होकर रह गए। बाबा की ठीक-ठीक उम्र के बारे में कोई नहीं जानता था, लेकिन उनका शरीर 1979 में रक्षाबंधन के दिन पंचतत्व में विलीन हुआ था, उनके निर्वाण के उपरांत वहां पर उनकी समाधि बना दी गई।
बाबा सूरदास का मंदिर मथुरा रोड से करीब 3 से 4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। मथुरा रोड से सराय ख्वाजा होकर यहां लोग पहंुचते हैं। दिल्ली के रास्ते हरियाणा में प्रवेश कर रही आगरा नहर के साथ-साथ चलने पर यहां पहंुच सकते हैं। मीठापुर, हरी नगर, मोलड़बंद, ताजपुर और बदरपुर गांव के लोग यहां इसी रास्ते से होकर बाबा के मंदिर पहंुचते हैं। इसके अलावा पल्ला, सेहतपुर, मवई, ऐतमादपुर, अगवानपुर, सराय ख्वाजा, ददेसिया आदि गांव और आसपास की अनेक कॉलोनियों से श्रद्धालु यहां पहंुचते हैं।
बाबा नेत्रों से देखने में अक्षम थे, लेकिन त्रिकालदर्शी थे। समय के साथ-साथ बाबा की ख्याति चारों ओर फैलती चली गई। बाबा ने अपने समय में राधा-वल्लभ मंदिर का निर्माण कराया साथ ही बाबा समाधि वाले स्थान (वर्तमान में) और आसपास के जंगल में ही भ्रमण करते थे। यहां पर एक जल कुंड भी है और चारों ओर खजूर के लंबे-लंबे पेड़ हैं, जिन पर बैठे पक्षी अपनी चहचहाहट से वातावरण को और संुदर बनाते हैं। बाबा भगवान श्रीकृष्ण के उपासक थे जिनके समय में हर समय यहां पर भजन-कीर्तन का आयोजन जारी रहता था, जो कि आज भी निरंतर जारी है।
बाबा के समय में श्रद्धालु अपनी-अपनी समस्याओं के निदान के लिए यहां पहंुचते थे। वह उनके प्रश्न करने से पूर्व ही उनकी समस्या का निदान बताकर उन्हें हैरान कर देते थे और कई बार तय तिथि बताकर कुछ होने की भविष्यवाणी भी कर देते थे। मंदिर पहंुचने से पहले ही अपने शिष्यों को चाय या प्रसाद बनाने के लिए कह देते थे और शिष्य यह बात जानकर हैरान हो जाते थे कि वास्तव में कुछ देर मंे वह व्यक्ति मंदिर पहंुच जाता था जिसके बारे में बाबा ने उनसे आने की बात कही होती थी। यही नहीं कई बार तो श्रद्धालुओं की समस्याओं का निदान करते समय बाबा दूर-दराज इलाकों से आए लोगों को का नाम बोलकर उन्हें स्वयं ही अपने पास बुला लेते थे। कई बार तो मंदिर की मरम्मत या सफेदी के समय स्वयं ही लोगों वह स्थान बता देते थे, जहां पर दोबारा सफेदी या पलस्तर होने की आवश्यकता रहती थी। बाबा आंखों से नहीं देख सकते थे, लेकिन फिर भी लोगों को सटीक बातें बताकर अपनी विलक्षण प्रतिभा का परिचय करवा देते थे।
कई बार श्रद्धालुओं के साथ अनेक चमत्कार भी हुए जिनसे श्रद्धालुओं की श्रद्धा उनके प्रति और भी बढ़ती चली गई। बताते हैं कि बाबा के दरवाजे पर आने वाला कोई भी भक्त यहां से खाली नहीं लौटता। बाबा के समय में कई नि:संतान उनका आशीर्वाद पाकर माता-पिता बन गए। कई बीमार लोगों को स्वास्थ्य लाभ हुआ तो कई का राजनीतिक भविष्य उज्ज्वल हो गया। बाबा मंदिर से बाहर या दूर कभी नहीं जाते थे, लेकिन फिर भी कई श्रद्धालु उन्हें एक समय में दूसरे स्थानों पर भी देखने का दावा करते थे। कोई उन्हें वृंदावन में देखने का दावा करता था तो कोई विदेश में उन्हें अपने पास देखने की बात कहता था।
मंदिर परिसर के साथ ही स्थित महात्यागी ट्रस्ट की गोशाला के संचालक बाबा विश्वबंधु दास बताते हैं कि यहां पर गुरु पूर्णिमा से एक सप्ताह पूर्व श्रीमद्भागवत कथा का आयोजन किया जाता है। गोवर्धन पर अन्नकूट और मकर संक्रांति पर खिचड़ी का विशेष प्रसाद तैयार किया जाता है। तिलपत गांव निवासी योगराज शर्मा (52) बताते हैं कि उन्होंने बाबा और उनके चमत्कारों को देखा है। एक बार वह खेत में पानी से सिंचाई करने गए तो इंजन चालू नहीं हुआ, थक-हारकर जब उन्होंने बाबा को याद किया तो झट से उनका इंजन चालू हो गया। इसी तरह गोशाला में कार्यरत रतिराम ने बताया कि एक श्रद्धालु रोजाना नियम से बाबा के दर्शन करने शाम को मंदिर पहंुचता था। एक बार बाबा ने उसे सचेत करते हुए कहा कि कल पशुओं को चारा सूर्योदय के बाद ही देना। उसने ऐसा ही किया, लेकिन सुबह जब वह अपने जूते पहनने के लिए आगे बढ़ा तो उसने पाया कि जूते में सांप छिपकर बैठा हुआ है। इससे उसे बाबा के चमत्कार की अनुभूति हो गई। यहां आसपास के क्षेत्र में रहने वालों के बीच बाबा सूरदास आज भी प्रासंगिक हैं।   

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