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कोल खदान आवंटन घोटाला मामले में लगातार आरोपों को नकारती आ रही केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय में यह स्वीकार किया कि कोयला खदानों के आवंटन में कहीं ने कहीं कुछ गलती हुई है। इससे ज्यादा अच्छे तरीके से काम किया जा सकता था। जबकि पहले सरकार का कहना था कि आवंटन तो महज आशय पत्र है, इससे प्राकृतिक संसाधनों पर कंपनियों को कोई अधिकार नहीं प्राप्त होता। न्यायाधीश आरएम लोढ़ा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ के समक्ष केंद्र की ओर से पेश हुए महान्यायवादी जनरल गुलाम ई वाहनवती ने कोयला खदानों के आवंटन में सरकार की गलती स्वीकार करते हुए कहा कि हमने ईमानदारी से निर्णय किए, लेकिन लगता है कि कुछ गलत हुआ है। हम कह सकते हैं कि कहीं कुछ गलत हुआ है और कुछ सुधार करने की जरूरत है। दरअसल पीठ ने सुनवाई के शुरू होते ही चुनिंदा कोयला खदानों के आवंटन निरस्त करने के प्रति केंद्र के दृष्टिकोण के संबंध में महान्यायवादी से जानना चाहा। जवाब में महान्यायावादी ने कहा कि सरकार अगले सप्ताह इस मसले पर अपना रुख स्पष्ट करेगी। सितंबर, 2013 में वाहनवती ने कहा था कि कोयला खदानों का आवंटन तो महज आशय पत्र है। यह प्राकृतिक संसाधनों पर कंपनियों को कोई अधिकार नहीं देता, जिसके बारे में राज्य सरकार ही निर्णय करेंगी। उन्होंने तब यह भी कहा था कि कंपनियों को कोयला खदान आवंटित करने का निर्णय तो पहला चरण है और तमाम मंजूरी प्राप्त करने के बाद जब कंपनियां खनन शुरू करेंगी। तभी उन्हें कोयले पर अधिकार मिलेगा। मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, झारखंड, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल जैसे खनन वाले राज्यों ने शीर्षस्थ न्यायालय से कहा था कि कोयला खदानों के आवंटन पर पूरी तरह से केंद्र का नियंत्रण है। इस मामले में उनकी भूमिका तो बहुत ही कम है। सर्वोच्च न्यायालय इस मामले में कोयला खदानों के आवंटन के नियमों का उल्लंघन किए जाने के आधार पर 1993 से किए गए आवंटनों को निरस्त करने के लिए दायर जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है। इन याचिकाओं में आरोप लगाया गया है कि इस प्रक्रिया के दौरान चुनिंदा कंपनियों को लाभ पहुंचाया गया है।
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