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विजय कुमार
पिछले दिनों सम्पन्न हुए चुनावों के परिणाम आने के बाद शर्मा जी कई दिन उदास रहे पर दिल्ली में कांग्रेस के समर्थन से केजरी आ़पा. (आम आदमी पार्टी) की सरकार बनने से उन्होंने मान लिया कि अब उन्हें ह्यहाथह्ण नहीं, ह्यझाड़ू वाले हाथह्ण का समर्थन करना है।
पर कुछ दिन बाद बिजली की कटौती दो से बढ़कर चार घंटे होने लगी। पानी भी दो के बजाय डेढ़ घंटे ही आने लगा। अत: मोहल्ले वालों ने शर्मा जी के साथ जल बोर्ड के कार्यालय में जाकर शोर किया। कुछ ही देर में एक अधिकारी बाहर आ गये।
शर्मा जी ने कहा – सर, हमारे मोहल्ले में पानी वैसे ही कम आता है और पिछले कुछ दिन से उसका दबाव भी बहुत कम हो गया है।
– देखिये, कुछ दिन प्रतीक्षा करें। अभी सरकार नयी-नयी बनी है। हर घर में 20,000 लीटर पानी देने की व्यवस्था भी बनानी है।
– लेकिन केजरीवाल साहब कह रहे हैं कि यह ह्यआपह्ण की सरकार है, इसलिए जनता को कोई कष्ट नहीं होगा।
– जी हां, यह ह्यआपह्ण ही की सरकार है। इसे ह्यआपह्ण लोगों ने ह्यआपह्ण के ही लिए चुना है, अत: ह्यआपह्ण को धैर्य रखना चाहिए।
– पर हमें कब तक धैर्य रखना होगा ?
– यह तो आप लोग ह्यआपह्ण की सरकार से ही पूछें।
इतना कहकर अधिकारी महोदय लौट गये।
दो दिन बाद सभी ने बिजली कार्यालय पर भी धरना दिया; लेकिन उस समय वहां पर ही बिजली नहीं थी। शर्मा जी समझ गये कि बिजली विभाग भी ह्यआपह्ण से प्रभावित और प्रताडि़त है।
कुछ दिन तक शर्मा जी शांत रहे, पर फिर बेचैन आत्मा की तरह अपनी पार्टी के कार्यालय में जा पहुंचे। वहां गन्दगी का साम्राज्य फैला था। कोने में झाड़ू रखी थी; पर कोई उसे छूने को तैयार नहीं था। थोड़ी देर में एक पदाधिकारी आये। शर्मा जी ने उन्हें ही घेर लिया – आपने केजरी आ़पा. को समर्थन दिया है; पर वे लोग हमें पूछते ही नहीं हैं। हमारी समस्याएं भी पहले जैसी ही हैं।
– तो मैं क्या कर सकता हूं ? हमने मोदी को रोकने के लिए सरकार बनवायी है, समस्याएं सुलझाने के लिए नहीं।
-पर इससे दिल्ली में हम तो समाप्त हो जाएंगे?
– तो क्या हुआ, नरेन्द्र मोदी तो रुक जाएगा।
शर्मा जी वहां सिर मारने की बजाय ह्यआ़पाह्ण के कार्यालय जा पहुंचे। बाहर बड़ी-बड़ी गाडि़यों की भीड़ लगी थी। अंदर सैकड़ों लोग आम आदमी की टोपी लगाये खड़े थे। सब अपनी स्वयंसेवी संस्था (एनज़ी़ओ़) की फाइल आगे करने की जुगाड़ में थे। किसी के पास दो एनज़ी़ओ़ थे, तो किसी के पास तीन। ये आम आदमी के नाम पर मौज करने वाले ह्यखास लोगह्ण थे। कुछ विदेशी भी वहां थे। कई लोग नयी संस्था बनाने की विधि पूछ रहे थे। किसी के हाथ में झाड़ू थी, तो किसी ने टोपी में ही खिलौना झाड़ू सजा रखी थी।
शर्मा जी ने एक नेता जैसे ह्यआम आदमीह्ण से अपने मोहल्ले की बिजली और पानी की चर्चा की। उसने आंखें निकालकर कहा – इसके लिए सरकार के पास जाओ। हमें तो मार्च तक अपने एनज़ी़ओ. का बजट पूरा खर्च करना है। नहीं तो आगे पैसा नहीं मिलेगा।
शर्मा जी हताश होकर चलना ही चाहते थे कि वहां शोर होने लगा। बड़े एनज़ी़ओ़ वाले छोटों को झाड़ू मारकर बाहर भगा रहे थे। कोई खुद को केजरीवाल का ह्यखास आदमीह्ण बता रहा था, तो कोई सिसौदिया का। यह ह्यझाड़ू युद्घह्ण बड़ा भीषण था। एक पुराना अखाड़ेबाज दोनों हाथों में झाड़ू लिये तलवार की तरह चलाने लगा।
तभी दृश्य बदल गया। अब लोग एक-दूसरे के हाथ से छीन कर फाइलें फाड़ने लगे। मारपीट के बीच बरस रही गालियांे का स्तर आम आदमियों जैसा ही था। एक नेता जी ने सबको चुप कराने का प्रयास किया, तो सबने उनके कपड़े ही फाड़ दिये।
शर्मा जी ने कल बड़े दुखी मन से यह सब बताया। मैंने कहा कि जब किसी को उसकी आशा से बहुत अधिक मिल जाता है, तो ह्यप्यादे से फरजी भयो, टेढ़ो-टेढ़ो जायह्ण वाला हाल हो ही जाता है।
-पर वर्मा जी, अभी यह हाल है तो आगे क्या होगा ?
-इस बारे में तो उर्दू के एक शायर ही कह गये हैं –
इब्तदा ए इश्क है रोता है क्या,
आगे-आगे देखिये होता है क्या?
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