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शेख हसीना वाजिद
संकट में भारत ने बढ़ाया मदद का हाथ
-विवेक शुक्ला-
शेख हसीना वाजेद की अवामी लीग पार्टी को उम्मीद के मुताबिक बंगलादेश के आम चुनावों में शानदार सफलता मिल गई है। उनकी सफलता से दिल्ली में कम से कम वे कुछ लोग जरूर प्रसन्न होंगे, जिन्होंने शेख हसीना को भारत में अपने 1975-1981 के प्रवास के दौरान करीब से जाना। वे उस दौर में राजधानी में अपने पति और दोनों बच्चों के साथ निर्वासित जीवन बिता रही थीं। महत्वपूर्ण है कि शेख हसीना के अलावा विभिन्न देशों के नेताओं ने अपने मुल्क में शिखर छूने से पहले भारत में पढ़ाई की।
पर पहले बात शेख हसीना की। एक तरह से भारत ने उन्हें तब शरण दी थी जब वे अपने जीवन के बेहद कठिन दौर में थीं। उनके पिता और बंगलादेश के संस्थापक शेख मुजीब-उर-रहमान,मां और तीन भाइयों का 15 अगस्त,1975 को कत्ल कर दिया गया था। इस भयावह हत्याकांड के दौर में शेख हसीना अपने पति एम.ए.वाजिद मियां और दो बच्चों के साथ जर्मनी में थीं। वाजिद मियां परमाणु वैज्ञानिक थे। वे वहां कार्यरत थे।
जाहिर है कि इतनी बड़ी त्रासदी ने शेख हसीना को बुरी तरह से झिंझोड़ कर रख दिया था। वे टूट चुकी थीं। तब भारत सरकार ने उन्हें उनके परिवार के साथ भारत में शरण दी थी। उनका बंगलादेश वापस जाने का सवाल ही नहीं था। तब शेख हसीना सपरिवार भारत आ गईं। उन्हें नई दिल्ली में पंडारा रोड में सरकारी आवास मिल गया। पति के साथ बेटा साजिद वाजेद जय और पुत्री सईमा हुसैन पुतुल भी थीं। बच्चे बहुत छोटे थे। जय को दार्जिलिंग के सेंट पॉल स्कूल में दाखिला दिलवा दिया गया पर पुत्री शेख हसीना के साथ ही रही।
उन छह बरसों के दौरान शेख हसीना कमोबेश गैर-राजनीतिक थीं बावजूद इसके कि वे शेख मुजीब जैसे विख्यात नेता की पुत्री थीं। वे जब भारत में आईं तब भारत में इमरजेंसी लग चुकी थी। मुमकिन है कि इस कारण से उन्हें बहुत से लोगों से मुलाकात करने की इजाजत नहीं थी। वे खुद भी कम ही लोगों से मिलती थीं। तब वे शुभ्रा मुखर्जी से काफी मिलती थीं। बताते चलें कि शुभ्रा जी राष्ट्रपति प्रणव कुमार मुखर्जी की पत्नी हैं। शेख हसीना 2010 में जब प्रधानमंत्री के रूप में दिल्ली आईं तो खासतौर पर वे शुभ्रा जी से मिली थीं। उनकी उसी यात्रा के दौरान ममता बनर्जी ने उन्हें नल्ली साडि़यां भेंट की थीं। वे अलग से कोलकाता से उनके लिए रसगुल्ला भी लेकर आई थीं। वरिष्ठ लेखक अरबिंदो घोष ने बताया कि शेख हसीना तब यहां पर गिनती के लोगों से मिलती-जुलती थीं। उनके साथ उनके पिता के एक करीबी ए.एल. खातिब भी रहते थे। वे पेशे से पत्रकार थे। उन्होंने ही मुजीब की हत्या पर एक अहम पुस्तक ह्यहू किल्ड मुजीबह्ण लिखी थी। इसे विकास पब्लिकेशन ने छापा था। इसे मुजीब की हत्या पर लिखी सबसे प्रामाणिक किताब माना जाता है।
दिल्ली के हिन्दुस्तान फुटबल क्लब के प्रमुख डी.के. बोस को उस दौर में शेख हसीना से कई मर्तबा भेंट करने का मौका मिला। उन्होंने बताया कि उनकी शेख हसीना से पहली मुलाकात ढाका यूनिवर्सिटी के कुछ अध्यापकों ने करवाई थी। वे दिल्ली आए थे उनसे स्वदेश लौटने का आग्रह करने। उसके बाद उनकी कई बैठकें हुईं। उनमें बंगलादेश के सियासी हाल से लेकर बंगला साहित्य की ताजा हलचलों पर बातचीत होती थी। हर बैठक में गुरुदेव रविन्द्रनाथ ठाकुर की किसी कृति पर चर्चा हो ही जाती थी। उनके सबसे प्रिय लेखक रविन्द्रनाथ ही हैं। बोस ने बताया कि वे उन्हें भारत के बंगला कवियों और लेखकों की किताबें भेंट करते थे जिन पर वे अगली बैठक में बात करती थीं।
भारत में विश्व स्तरीय शिक्षा प्रदान करने की लंबी परंपरा रही है। तक्षशिला एवं नालंदा दुनिया के दो सबसे पुराने विश्वविद्यालय थे, जहां दूर – दूर से छात्र एवं विद्वान खिंचे चले आते थे। भारत आज भी विकासशील देशों से आने वाले विदेशी छात्रों के लिए शिक्षा का केंद्र बना हुआ है। आज ऐसे अनेक नेता हैं जिन्होंने भारत में पढ़ाई करने के बाद अपने-अपने देशों में राजनीति के क्षेत्र में प्रतिष्ठा प्राप्त की। आज भी वे भारत में बिताए अपने दिनों को याद करते हैं और नि:संकोच बताते हैं कि उनके जीवन को ऊंचाई तक पहुंचाने में भारत से मिली शिक्षा का कितना योगदान है। यहां प्रस्तुत है ऐसे ही कुछ नेताओं की भारत में शिक्षा की संक्षिप्त जानकारी।
* आंग सान सू की
नोबल पुरस्कार विजेता आंग सान सू की ने नई दिल्ली के जीसस एंड मैरी कंवेंट में शुरुआती पढ़ाई की तथा आगे चलकर 1964 में लेडी श्रीराम कालेज से स्नातक उपाधि ली। उनकी मां भारत में बर्मा की राजदूत हुआ करती थीं। सू की 1987-88 में शिमला स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडीज में फेलो थीं।
* हामिद करजई
अफगानिस्तान के वर्तमान राष्ट्रपति हामिद करजई ने 1979 से 1983 तक अंतरराष्ट्रीय संबंध एवं राजनीति विज्ञान में अपनी मास्टर डिग्री के लिए शिमला स्थित हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में पढ़ाई की। वह हिंदी एवं ऊर्दू धाराप्रवाह बोलते हैं।
* बिंगु वा मुथारिका
2004 से 2012 तक मालावी के राष्ट्रपति रहे बिंगु वा मुथारिका ने भारत सरकार की छात्रवृत्ति पर 1961 से 1964 तक भारत में पढ़ाई की। उन्होंने श्रीराम कालेज ऑफ कामर्स से स्नातक उपाधि ली तथा दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनामिक्स से अर्थशास्त्र में अपनी परास्नातक डिग्री की पढ़ाई पूरी की।
* ओलुसेगन ओबासांजो
1999 से 2007 तक नाइजीरिया के राष्ट्रपति रहे ओलुसेगन ओबासांजो (इससे पहले वह 1976 से 1979 तक देश के सैन्य शासक रहे) ने 1960 के दशक में तमिलनाडु के वेलिंगटन स्थित डिफेंस सर्विसेस स्टाफ कालेज और पुणे स्थित कालेज ऑफ मिलिट्री इंजीनियरिंग में पढ़ाई की।
* बाबूराम भट्टराई
अगस्त, 2011 से मार्च, 2013 तक नेपाल के प्रधानमंत्री रहे बाबूराम भट्टराई ने 1970 के दशक में चंडीगढ़ कालेज ऑफ आर्किटेक्चर में पढ़ाई की। इन्होंने दिल्ली स्थित स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर से अपनी मास्टर डिग्री की पढ़ाई की और 1986 में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से पीएचडी की। नेपाल में उनकी गिनती प्रमुख माओवादी नेताओं में होती है।
* जिग्मे सिंग्ये वांगचुक
1972 से 2006 तक (जब उन्होंने अपने बेटे के पक्ष में गद्दी छोड़ी) भूटान के चौथे नरेश रहे जिग्मे सिंग्ये वांगचुक ने अपनी शुरुआती पढ़ाई सेंट जोसेफ कॉलेज, दार्जिलिंग में की थी।
* जिग्मे खेसर नामग्याल वांगचुक
भूटान के पांचवें एवं वर्तमान नरेश जिग्मे खेसर नामग्याल वांगचुक ने अपने पिता जिग्मे वांगचुक से 2006 में राजसिंहासन प्राप्त किया। उन्होंने दिल्ली स्थित राष्ट्रीय रक्षा कॉलेज में पढ़ाई की है।
* लेफ्टिनेंट जनरल अकूफो
1978- 1979 में घाना के राष्ट्राध्यक्ष रहे लेफ्टिनेंट जनरल फेड्रिक विलियम अकूफो ने 1973 में राष्ट्रीय रक्षा कालेज में पढ़ाई की थी। अकूफो ने घाना में संवैधानिक शासन बहाल करने का प्रयास किया परंतु उन्हें सत्ता से हटा दिया गया तथा 1979 में उन्हें फांसी दे दी गई। उस समय उनकी आयु कुल 42 साल थी।
* जनरल हुसैन मुहम्म्द इरशाद
1983 से 1990 तक बंगलादेश के राष्ट्रपति रहे जनरल हुसैन मुहम्मुद इरशाद भारत के राष्ट्रीय रक्षा कालेज के छात्र रहे हैं। इरशाद ने 1970 के दशक के मध्य में राष्ट्रीय रक्षा कालेज में पढ़ाई की थी।
* बीरेन्द्र बीर बिक्रम शाह देव
राजा बीरेन्द्र 1972 से लेकर 2001 में अपनी मृत्यु तक नेपाल के 11वें नरेश थे। उन्होंने अपनी शुरुआती शिक्षा 1950 के दशक में सेंट जोसेफ कालेज, दार्जिलिंग से प्राप्त की थी।
* ज्ञानेन्द्र बीर बिक्रम शाह देव
ज्ञानेन्द्र बीर बिक्रम शाह देव ने 2001 में अपने भाई शाह बीरेंद्र की मृत्यु के बाद राजगद्दी प्राप्त की तथा 2008 तक शासन किया, जब नेपाल गणतंत्र बना। अपने बड़े भाई की तरह वे भी सेंट जोसेफ कालेज, दार्जिलिंग के छात्र थे।
* मानूचेर मोट्टाकी
2005 से 2010 तक ईरान के विदेश मंत्री रहे मानूचेर मोट्टाकी ने ग्रेजुएशन की अपनी पढ़ाई 1977 में बंगलौर विश्वविद्यालय से की थी।
* जान सेमुअल मेलीसेला
1990 से 1994 तक तंजानिया के प्रधानमंत्री रहे जान सेमुअल मेलीसेला ने विदेशी छात्र के रूप में वहां पढ़ाई की जिसे उस समय बॉम्बे विश्वविद्यालय कहा जाता था तथा 1959 में वाणिज्य में स्नातक की डिग्री ली।
* सिटीवेनी राबुका
1992 से 1999 तक फिजी के प्रधानमंत्री रहे सिटीवेनी राबुका ने 1979 में तमिलनाडु में वेलिंगटन स्थित डिफेंस सर्विसेज स्टाफ कालेज में पढ़ाई की।
ऐसे नेतागण भी हैं जिन्होंने आजादी से पहले के भारत में पढ़ाई की, जो आगे चलकर राष्ट्राध्यक्ष एवं शासनाध्यक्ष बने। इनमें पाकिस्तान के जनरल जिया उल हक (सेंट स्टीफन कलेज), पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति अयूब खान एवं लियाकत अली खान (अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय), नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री बी.पी. कोइराला और जी.पी. कोइराला (बनारस हिंदू विश्वविद्यालय) तथा मलेशिया के तीसरे प्रधानमंत्री तुन हुसैन ओन्नो (भारतीय सैन्य अकादमी, देहरादून) आदि शामिल हैं।
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