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भारत में एक ऐसे संत हुए हैं, जिन्हें स्वयं भगवान का अवतार कहा जाता है। वे हैं श्री चैतन्य महाप्रभु, जिनका जन्म वर्ष 1485 में बंगाल के नवद्वीव के विद्वान ब्राहण परिवार में हुआ था। उनका बचपन का नाम चैतन्य देव था, बाद में वे चैतन्य महाप्रभु के नाम से प्रसिद्ध हुए। अपने पांडित्य कर्म के कारण वे जल्दी ही प्रसिद्ध हो गए। 24 वर्ष की आयु में ही उन्होंने संन्यास ले लिया था। बाकी का अपना जीवन उन्होंने प्रेम और भक्ति के संदेश का प्रचार करने में ही व्यतीत किया। वे भगवान विष्णु के अनन्य भक्त थे। लोग उन्हें भगवान विष्णु का अवतार भी कहते हैं। 18 वर्ष तक वे ओडिशा में रहे और छह वर्ष उन्होंने दक्षिण भारत, वृंदावन, गौड़ और अन्य स्थानों पर बिताए। उन्होंने पूरा जीवन लोगों को श्री हरि (विष्णु) के प्रति आस्था रखने का उपदेश दिया। हिंदू धर्म के अलावा दूसरे पंथ के लोग भी उनके शिष्य बने और उनके उपदेशों का पालन किया। महाप्रभु के सिद्धांतों से पूर्वी भारत, विशेषकर बंगाल के लोग बड़ी संख्या में प्रभावित हुए। मृदंग की ताल पर गाए उनके भजन बहुत लोकप्रिय हैं। साथ ही उनके उपदेशों और जीवन पर बहुत सी किताबें लिखी गई हैं।
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