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अस्सी वर्ष पार कर चुका हूं मैं
मेरे दादा-दादी
ताऊ-ताई, चाचा-चाची और बुआ
पिता-माता
सब चले गए
यह एक सच।
एक सच यह भी है
प्यार-दुलार और फटकार के साथ
वे सब जीवित हैं मुझ में आज भी
पाठशाला, वर्ग, कर्मशाला
बनकर वे सदा मेरे साथ रहे।
मुझमें जो जिजीविषा है
मुझ में लड़ने की जो आदत है
मुझमें सहने का जो माद्दा है
मुझमें देने का जो भाव है
मेरे पास भाषा काजो सलीका है
समस्या को सुलझाने का
मेरा जो तरीका है
बांटकर खाने का जो संस्कार है
अनुचित के प्रति जो टोका-टोकी है
यह जो मैं सीढ़ी दर सीढ़ी चढ़ता हूं
यह जो हर मसले पर
आपस में सलाह मश्विरा करता हूं
नाकामियों पर हौसला
कमजोर के पक्ष में फैसला
सबको सबकी जरूरत
सबको सबका सहारा।
यह सब मंैंने संयुक्त परिवार में सीखा है।
मैंने देखा
वहां रास्ते में बीच में गुम नहीं हो जाते
वहां एक द्वार बंद होता है
तो जल्दी ही
दूसरा द्वार खुल जाता है।
मैंने जो सीखा है
उस सबका स्वाद
मेरे लिए मीठा है
लेकिन मेरे नाती-पोतों के लिए
वह स्वाद मीठा नहीं
बड़ा तीखा है।
सबक साझे का
अस्सी वर्ष पार कर चुका हूं मैं
मेरे दादा-दादी
ताऊ-ताई, चाचा-चाची और बुआ
पिता-माता
सब चले गए
यह एक सच।
एक सच यह भी है
प्यार-दुलार और फटकार के साथ
वे सब जीवित हैं मुझ में आज भी
पाठशाला, वर्ग, कर्मशाला
बनकर वे सदा मेरे साथ रहे।
मुझमें जो जिजीविषा है
मुझ में लड़ने की जो आदत है
मुझमें सहने का जो माद्दा है
मुझमें देने का जो भाव है
मेरे पास भाषा काजो सलीका है
समस्या को सुलझाने का
मेरा जो तरीका है
बांटकर खाने का जो संस्कार है
अनुचित के प्रति जो टोका-टोकी है
यह जो मैं सीढ़ी दर सीढ़ी चढ़ता हूं
यह जो हर मसले पर
आपस में सलाह मश्विरा करता हूं
नाकामियों पर हौसला
कमजोर के पक्ष में फैसला
सबको सबकी जरूरत
सबको सबका सहारा।
यह सब मंैंने संयुक्त परिवार में सीखा है।
मैंने देखा
वहां रास्ते में बीच में गुम नहीं हो जाते
वहां एक द्वार बंद होता है
तो जल्दी हीसबक साझे का
अस्सी वर्ष पार कर चुका हूं मैं
मेरे दादा-दादी
ताऊ-ताई, चाचा-चाची और बुआ
पिता-माता
सब चले गए
यह एक सच।
एक सच यह भी है
प्यार-दुलार और फटकार के साथ
वे सब जीवित हैं मुझ में आज भी
पाठशाला, वर्ग, कर्मशाला
बनकर वे सदा मेरे साथ रहे।
मुझमें जो जिजीविषा है
मुझ में लड़ने की जो आदत है
मुझमें सहने का जो माद्दा है
मुझमें देने का जो भाव है
मेरे पास भाषा काजो सलीका है
समस्या को सुलझाने का
मेरा जो तरीका है
बांटकर खाने का जो संस्कार है
अनुचित के प्रति जो टोका-टोकी है
यह जो मैं सीढ़ी दर सीढ़ी चढ़ता हूं
यह जो हर मसले पर
आपस में सलाह मश्विरा करता हूं
नाकामियों पर हौसला
कमजोर के पक्ष में फैसला
सबको सबकी जरूरत
सबको सबका सहारा।
यह सब मंैंने संयुक्त परिवार में सीखा है।
मैंने देखा
वहां रास्ते में बीच में गुम नहीं हो जाते
वहां एक द्वार बंद होता है
तो जल्दी ही
दूसरा द्वार खुल जाता है।
मैंने जो सीखा है
उस सबका स्वाद
मेरे लिए मीठा है
लेकिन मेरे नाती-पोतों के लिए
वह स्वाद मीठा नहीं
बड़ा तीखा है।
दूसरा द्वार खुल जाता है।
मैंने जो सीखा है
उस सबका स्वाद
मेरे लिए मीठा है
लेकिन मेरे नाती-पोतों के लिए
वह स्वाद मीठा नहीं
बड़ा तीखा है।
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