पाकिस्तान में हिन्दू दमन का एक और नजारा
|
6 अक्तूबर को पाकिस्तान के मजहबी कट्टरवादियों ने अल्पसंख्यकों, खासकर हिन्दुओं के विरुद्ध अपनी नफरत का एक और उदाहरण पेश किया। सूबाए सिंध के एक गांव में कट्टरवादियों की भीड़ ने स्थानीय कब्रिस्तान में दफन वंचित वर्ग के एक हिन्दू भूरो भील के पार्थिव शरीर को खोदकर निकालने के बाद उसका सरेआम अपमान करते हुए बाहर सड़क पर ला पटका। भूरो की मृत देह वहां खुले में 8 घंटे तक पड़ी रही, क्योंकि उन्मादियों के खौफ से हिन्दू समुदाय के लोग उसे वहां से हटा ही न सके ।
हुआ यूं था कि 5 अक्तूबर को भूरो को एक सड़क दुर्घटना में गंभीर चोट आई थी। उसे हैदराबाद के अस्पताल में ले जाया गया, लेकिन वहां पहंुचने से पहले ही उसकी मृत्यु को गई। समुदाय के रिवाज के अनुसार, भूरो के परिजनों ने बादिन जिले के हाजी फकीर कब्रिस्तान में भूरो को दफना दिया। पहले भी वे अपने नाते-रिश्तदारांे के मरने पर उनके शरीर वहीं दफन करते रहे थे। लेकिन इस बार वहां के मुल्ला-मौलवी ठनक गए, अकड़ गए कि भूरो का शरीर निकालो वहां से। उन्हें कितना समझाया गया कि भई, पुरखों के समय से यहीं दफनाते आ रहे हैं, पर वे नहीं माने। कुछ सिरफिरे नौजवान उन्मादियों ने भील समुदाय को धमकाया कि ह्यभूरो को निकाल दो, नहीं तो…..।ह्ण भूरो को दफन किए अभी 12 घंटे भी नहीं बीते थे कि उन्मादियों की भीड़ कब्रिस्तान जा पहंुची और इंसानियत की तमाम हदें पार करते हुए उन्होंने भूरो के दफन शरीर को निकालकर बाहर सड़क पर डाल दिया। वे जोर से जोर से चिल्ला रहे थे, कि हिन्दू को मुसलमानों के कब्रिस्तान में क्यों दफनाया। सहमे हिन्दू 8 घंटे तक भूरो के मृत शरीर को छूने तक की हिम्मत न जुटा पाए। तब कहीं जाकर वहीं के एक जमींदार ने भूरो को दफनाने के लिए जगह दी।
मामले के तूल पकड़ लेने की आशंका से घिरे हिन्दुओं ने पहले से ही पुलिस को आने वाले खतरे की सूचना दे दी थी, लेकिन पुलिस नदारद रही। घटना के बाद भीलों के साथ उनके हमदर्द, सिंधी नेशनलिस्ट पार्टी के सदस्यों ने थाने पर जाकर विरोध प्रदर्शन किया। बताया गया कि उन्मादी मुल्लाओं ने पास के शहरों से मदरसों के छात्रों को भी बलवा करने को बुलवा लिया था।
मामला जायदाद का हो तो फिर उस जिन्ना की इकलौती बेटी 88 साल की दीना वाडिया की इस्लामी उत्तराधिकार कानूनों को ठेंगा दिखाकर हिन्दू कानूनों को मानने की दलील देने क ी बात सुनकर हैरानी नहीं होती, जिन्होंने पाकिस्तान बनवाया और पाकिस्तानी जिन्हें कायदे-आजम कहकर सर माथे बिठाते हैं। दीना ने यह दलील पिछले दिनों मुम्बई उच्च न्यायालय में मोहम्मद अली जिन्ना के आज की कीमतों के हिसाब से, 300 करोड़ रु. के कई मंजिला जिन्ना हाउस के उत्तराधिकार विवाद पर जिरह के दौरान दी थी। 1947 में जिन्ना तो पाकिस्तान बनवा कर वहां चले गए थे, लेकिन दीना भारत में ही रह गई थीं, क्योंकि जिन्ना ने जाते जाते उनसे कह दिया था-जा, आज से तू मेरी बेटी नहीं रही। आजकल दीना अमरीका में रह रही हैं। 2007 में दीना ने मुम्बई उच्च न्यायालय में, भारत में जिन्ना की तमाम संपत्ति पर अपना दावा ठोका था। मुस्लिमों के उत्तराधिकार कानून चलें तो वह सारी संपत्ति दीना सहित परिवार के दूसरे तमाम दावेदारों में बंटेगी। यह जानकर दीना के वकील फली नरीमन को रास्ता सूझा। उन्होंने अदालत से कहा कि चूंकि जिन्ना खोजा-शिया थे, इसलिए उन पर मुस्लिम कानून की बजाय हिन्दुओं के कानून लागू होंगे, मतलब कि, जिन्ना की संपत्ति की अकेली वारिस दीना हैं। फली ने इसके उदाहरण रख दिए। मामला तब और दिलचस्प हो गया जब सरकारी वकील ने बताया कि जिन्ना तो अपनी कोठी अपनी बहन फातिमा के नाम कर गए थे, जो खुद 1947 में पाकिस्तान चली गई थीं, लिहाजा जिन्ना हाउस अब भारत सरकार की संपत्ति है। इस बीच फातिमा के नातेदार भी यह कहकर मामले में कूद पडे़ हैं कि जिन्ना की वसीयत के अनुसार असली हकदार वे हैं। इस सब में एक पेंच दीना के बेटे, जिन्ना के नाती, भारत में बड़ा कारोबार चलाने वाले नुस्ली वाडिया ने भी फंसा रखा है।
लेकिन कुल-मिलाकर हैरानी इस बात पर होती है कि खुद को भारत के मुसलमानों का रहनुमा बताने वाले और इस बात पर देश के टुकड़े क राने वाले इंसान पर मुस्लिम नहीं, हिन्दू कानून लागू होने की दलील और कोई नहीं, खुद उसी इंसान की पुत्री दे रही हैं।
शांति का नोबुल मुझे दे देते : असद
जानते हैं, इस साल शांति का नोबुल पुरस्कार किसे दिया गया है? यह दिया गया है सीरिया में इस वक्त 11 ठिकानों पर रासायनिक हथियारों को तबाह करने के काम में जुटे संगठन ह्यआर्गेनाइजेशन फॉर द प्रोहेबिशन ऑफ कैमिकल वैपन्सह्ण को। उसे पुरस्कार दिए जाने पर सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद की टिप्पणी लेने गए लेबनान के अखबार, ह्यअल अखबारह्ण के संवाददाता से असद ने चुटकी लेते हुए कहा, यह सम्मान तो मुझे मिलना चाहिए था।उक्त संगठन को सीरिया के वे सारे हथियार मध्य 2014 तक तबाह करने का बड़ा भारी काम सौंपा गया है।
पिछली 1 अक्तूबर से उसके और संयुक्त राष्ट्र के 60 विशेषज्ञों का एक दल सीरिया में रासायनिक हथियारों को खोजने में जुटा है। वैसे ह्यअल अखबारह्ण की मानें तो, असद ने 2003 में ही एक प्रस्ताव रखा था कि इलाके के तमाम देशों को बड़े पैमाने पर तबाही मचाने वाले वे हथियार सौंप दे। आलोक गोस्वामी
टिप्पणियाँ