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इस साल मेरा सात वर्षीय बेटा दूसरी कक्षा मेंं प्रवेश पा गया। वर्ग में हमेशा से अव्वल आता रहा है।
पिछले दिनों तनख्वाह मिली तो मैं उसे नयी स्कूल ड्रेस और जूते दिलवाने के लिए बाजार ले गया।
बेटे ने जूते लेने से यह कह कर मना कर दिया कि पुराने जूतों को बस थोड़ी-सी मरम्मत की जरूरत है,वे अभी इस साल काम दे सकते हैं।
अपने जूतों की बजाय उसने मुझे अपने दादा की कमजोर हो चुकी नजर के लिए नया चश्मा बनवाने को कहा।
मैंने सोचा बेटा अपने दादा से शायद बहुत प्यार करता है इसलिए अपने जूतों की बजाय उनके चश्मे को ज्यादा जरूरी समझ रहा है।
खैर, मैंने कुछ कहना जरूरी नहीं समझा और उसे लेकर ड्रेस की दुकान पर पहुंचा। दुकानदार ने बेटे के लिए एक सफेद कमीज निकाली। डाल कर देखने पर कमीज एक दम फिट थी़.़..फिर भी बेटे ने थोड़ी लम्बी कमीज दिखाने को कहा।
मैंने बेटे से कहा, बेटा यह कमीज तुम्हारे लिए बिल्कुल सही है तो फिर और लम्बी क्यों?
बेटे ने कहा, पिता जी मुझे कमीज निक्कर के अंदर ही डालनी होती है इसलिए थोड़ी लम्बी भी होगी तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा़.़.़.़ लेकिन यही कमीज मुझे अगली कक्षा में भी काम आ जाएगी। ़.़.़.पिछली वाली कमीज भी अभी नयी जैसी ही पड़ी है, लेकिन छोटी होने की वजह से मैं उसे पहन नहीं पा रहा ।
मैं खामोश रहा।
घर आते वक्त मैंने बेटे से पूछा, तुम्हें ये सब बातें कौन सिखाता है बेटा?
बेटे ने कहा, पिता जी मैं अक्सर देखता था कि कभी माँ अपनी साड़ी छोड़कर तो कभी आप अपने जूतों को छोड़कर हमेशा मेरी किताबों और कपड़ों पर पैसे खर्च कर दिया करते हैं।
गली- मोहल्ले में सब लोग कहते हैं कि आप बहुत ईमानदार आदमी हैं और हमारे साथ वाले राजू के पापा को सब लोग चोर, कुत्ता, बे-ईमान, रिश्वतखोर और जाने क्या क्या कहते हैं, जबकि आप दोनों एक ही आफिस में काम करते हैं।
जब सब लोग आपकी तारीफ करते हैं तो मुझे बड़ा अच्छा लगता है़.़.़मम्मी और दादा जी भी आपकी तारीफ करते हैं।
पिता जी मैं चाहता हूँ कि मुझे कभी जीवन में नए कपड़े, नए जूते मिले या न मिले लेकिन कोई आपको चोर, बे-ईमान, रिश्वतखोर या कुत्ता न कहे।
मैं आपकी ताकत बनना चाहता हूँ पिता जी, आपकी कमजोरी नहीं।
बेटे की बात सुनकर मैं निरुतर था। आज मुझे पहली बार अपनी ईमानदारी का पुरस्कार मिला था।
आज बहुत दिनों बाद आँखों में खुशी, गर्व और सम्मान के आंसू थे।
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