|
अजमेर दरगाह बम धमाकों के आरोपी भावेश पटेल ने कहा है कि केन्द्रीय गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे सहित चार कांग्रेसी नेताओं ने इस मामले में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत एवं संघ के वरिष्ठ प्रचारक श्री इंदे्रश कुमार को फंसाने के लिए दवाब डाला था।धमाकों के आरोपी ने इस संबंध में राष्ट्रीय जंाच एजेंसी की विशेष अदालत को एक पत्र लिखा है़, इसमें कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह, केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री आरपीएन सिंहऔर कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल पर भी उस पर दबाव डालने का आरोप लगाया है। पत्र में कहा है कि कांग्रेस के इन नेताओं ने उसे जांच अघिकारियों से मिलवाया और कहा कि जैसा वे कहें वैसा बयान दो तो उसे वे बचा लेंगे, और साथ ही कहा कि उसे अदालत में यह बयान देना होगा कि अजमेर धमाके की साजिश में श्री भागवत और श्री इंदे्रश कुमार शामिल थे। पर अदालत में उसने ऐसा कोई भी बयान नहीं दिया। आरोपी ने खुलासा किया कि ये लोग चाहते थे कि अदालत में वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को फंसाने वाला बयान दे।
भाजपा ने किया दागी प्रतिनिधियों को बचाने के अध्यादेश का विरोध
सोनिया-मनमोहन सरकार कांग्रेस के दागी नेताओं और संप्रग के साथ खड़े अन्य दागी नेताओं को बचाने के लिए किसी भी हद को पार करने के लिए उतावली है। दागी नेताओं को बचाने के लिए इस सरकार ने एक अध्यादेश जारी किया है। इसको राष्ट्रपति की मंजूरी मिलते ही कांग्रेसी नेता रशीद मसूद और राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू यादव को तुरंत राहत मिल जाएगी। उल्लेखनीय है कि रशीद मसूद एमबीबीएस दाखिले के एक मामले में दोषी ठहराए जा चुके हैं,तो लालू पर चारा घोटाले पर जल्द ही निर्णय आने वाला है। किन्तु इस अध्यादेश का तीखा विरोध मुख्य विपक्षी दल भाजपा ने किया है। भाजपा के एक प्रतिनिधिमण्डल ने राष्ट्रपति से मिलकर उनसे आग्रह किया है कि वे इस अध्यादेश पर हस्ताक्षर न करें। इसके बाद राष्ट्रपति ने कुछ केन्द्रीय मंत्रियों को तलब भी किया है। मालूम हो कि जुलाई महीने में सर्वोच्च न्यायालय ने एक फैसला दिया था कि यदि किसी सांसद या विधायक को 2 साल या उससे अधिक की सजा हुई तो वह खुद ही अयोग्य घोषित हो जाएगा।
सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को निष्प्रभावी करने के लिए सरकार ने संसद के मानसून सत्र में जनप्रतिनिधित्व कानून में संशोधन करने के लिए एक विधेयक लाया था। यह विधेयक पांच सितंबर को लोकसभा में पारित भी हो गया है। परन्तु भाजपा व बीजद की आपत्ति के कारण राज्यसभा में यह पारित नहीं हो सका। इसके बाद इस सरकार ने दागियों को बचाने के लिए अध्यादेश का रास्ता चुना है। लेकिन भाजपा सवाल खड़े कर रही है कि सरकार इस मामले को लेकर अध्यादेश लाने में इतनी जल्दबाजी क्यों दिखा रही है?
टिप्पणियाँ