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प्यारे बच्चो,
15 जुलाई 2013 से 163 साल पुरानी टेलीग्राम सेवा की स्मृति ही शेष रह गयी है। टेलीग्राम सेवा का स्वर्णिम युग था 1980 का दशक जब भारत में प्रतिदिन एक लाख टेलीग्राम भेजे जाते थे। सूचना क्रांति के इस दौर में जब स्मार्ट फोन, ई-मेल व इंटरनेट ने व्यापक परिवर्तन ला दिये, तब इस सेवा की इतनी महत्ता नहीं रह गई थी।
टेलीग्राम सेवा 1837 से 1980 तक सूचना प्रेषित करने का एकमात्र सशक्त साधन थी। सन् 1837 में सर्वप्रथम इंग्लैंड में कुक व व्हीटस्टोन व अमरीका में सैमुअल मोर्स ने अलग-अलग इलेक्ट्रिक टेलीग्राम पेटेंट कराये। भारत में सर्वप्रथम 1850 में टेलीग्राम लाईन का प्रयोग ईस्ट इंडिया कम्पनी द्वारा किया गया तथा प्रथम टेलीग्राम सन्देश कोलकाता से डायमंड हार्बर को 5 नवम्बर 1850 को भेजा गया। 1870 में ब्रिटेन व भारत की टेलीग्राम लाईन जुड़ने के पश्चात 1939 तक एक लाख मील टेलीग्राम लाईनों से एक करोड़ से अधिक संदेश प्रतिवर्ष नागरिकों द्वारा प्रेषित किये जाते थे। 1857 में प्रथम स्वाधीनता संग्राम के दौरान टेलीग्राम क्रांतिकारियों की आंखों में खटकता रहा क्योंकि इसी सेवा के जरिए ब्रिटिश अधिकारी सूचनाएं जल्दी से सांझा करते थे। टेलीग्राम न केवल सुख-दुख संबंधी सूचनाओं का त्वरित प्रेषक था, बल्कि टेलीग्राम को न्यायिक सबूत के अलावा पुलिस कार्रवाई में भी महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त था।
हालांकि 2006 में वेब आधारित टेलीग्राफ सिस्टम में मोर्स कोड के स्थान कम्प्यूटर पर सूचना संप्रेषण का कार्य भी आरम्भ किया गया लेकिन इंटरनेट, स्मार्ट फोन आदि ने इस सेवा को भारी क्षति पहुंचाई। न्यूजीलैंड, कनाडा, बेल्जियम व स्वीडन आदि राष्ट्रों में अभी भी टेलीग्राम सुविधा उपलब्ध है।
बच्चो, आपके मन में टेलीग्राफिक प्रक्रिया जानने की उत्सुकता भी संभवत: जन्म ले रही होगी। यह प्रक्रिया संक्षिप्त रूप से इस प्रकार थी- टेलीग्राम भेजने वाला व्यक्ति टेलीग्राम सेन्टर पर जाकर पूर्ण विवरण व संदेश सहित प्रपत्र पूर्ण करता था जो टेलीग्राफिक कर्मचारी द्वारा टाईप कर वेब आधारित संदेश प्रक्रिया से मोर्स कोड व टेलीप्रिन्टर द्वारा प्राप्तकर्ता तक पहुंचते थे। टेलीग्राम सुविधाओं में सामान्य, त्वरित व प्राथमिकता वाली सुविधाएं होती थीं, जिन्हें संदेश प्रेषित करने वाला स्वयं चयनित करता था।
निश्चित रूप से विज्ञान की इस अद्भुत खोज का दर्दनाक अंत होने का दु:ख प्रत्येक हृदय में होगा लेकिन परिवर्तन ही जीवन व समय की मांग रही है तथा इसी परिवर्तन के द्वारा विज्ञान नित्य प्रगति करता है। टेलीग्राफिक सुविधाओं का बंद होना भी वैज्ञानिक दृष्टिकोण से इसी परिवर्तन का एक भाग भर है। मनोज पोखरियाल
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