लोक संस्कृति का आंगन: पुरखौती मुक्तांगन
|
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के नजदीक एक जगह ऐसी है जहां छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक विरासत की झलक मिलती है। उस जगह का नाम है पुरखौती मुक्तांगन यानी पुरखों के रहन-सहन, संस्कृति और लोक कलाओं का वह आंगन जहां चप्पे-चप्पे पर छत्तीसगढ़ी संस्कृति की मनोहारी छटाएं अपने देशज अंदाज में पूरी समृद्धि के साथ आकारित हो आपको आनंदित ही नहीं, बल्कि अभिभूत करती हैं। लोक कला प्रतीकों से सजे भव्य द्वार से शुरू होता है परिसर का साक्षात्कार। परिसर के द्वार तक पहुंचने से पहले ही परकोटे पर चित्रित छत्तीसगढ़ के ऐतिहासिक स्थलों से जुड़ी कथाएं इस क्षेत्र में रची-बसी मान्यताओं/परंपराओं की छवि का दर्शन कराती हैं।
मुक्तांगन के मध्य भाग के दोनों ओर ढोलक पर थाप देतीं भव्य आदिवासी शिल्पाकृतियां मानो वाद्य ध्वनि के साथ पर्यटकों का मंगल ध्वनि से आत्मीय स्वागत करती हैं। लोक कला की शैली में लोहा प्रस्तर से निर्मित स्वागत करता तकरीबन पचास फुट ऊंचा शिल्प आपको अभिभूत करता है। इस शिल्प के चारों ओर टेराकोटा के प्रभाव से युक्त लोकजीवन से रूबरू कराते भव्य शिल्पों में जहां मां के ममत्व के दर्शन होते हैं, वहीं विभिन्न कार्यों में लिप्त शिल्पाकृतियां वनवासियों के कर्तृत्व की गाथा कहती हैं।
मुख्य मार्ग के दाहिनी ओर के क्षेत्र में जहां अंचल के रहन-सहन, वास्तु, पशुओं से जीवंतता से रूबरू कराते दृश्यों का सृजन आकार ले रहा है, वहीं बार्इं ओर की दृश्यावलियां अंचल की आध्यात्मिक, सांस्कृतिक समृद्धि से प्रभावशाली ढंग से साक्षात्कार कराती हैं। मुख्य मार्ग के अंतिम सिरे पर एक अभिनव जलीय मंच विकसित हो रहा है।
इसके साथ ही लगी एक भव्य प्रतिमा छत्तीसगढ़ के आस्था केन्द्र ‘रुद्र शिव’ का विराट दर्शन कराती है। पास ही आकारित हो रही क्षेत्र के प्रसिद्ध मंदिर की प्रतिकृति अपने पौराणिक महत्व व वास्तु सौंदर्य के वैभव से दर्शकों को प्रभावित करती है। इसके पास ही स्थापित है ‘माडिया खम्बा’ और लोक वास्तु व शैली से सज्जित आवासीय परिसर।
गांव के खुले मैदानों की पृष्ठभूमि में लोकनृत्य के सौन्दर्य को बिखेरते शिल्पों के विस्तारित समूह न सिर्फ आल्हादित करते हैं वरन् वहां की प्रचलित नृत्य शैलियों डंडा नाच, पंथी नाच, राऊत नाचा और सुआ नाच से संवाद कराते हैं। शिल्प समूह की कलात्मकता, लयात्मकता और लोक सौंदर्य की ये प्रतिकृतियां अनायास ही आपको अपने नृत्यों में सम्मिलित करने के लिए साग्रह आकर्षित/आमंत्रित करती सी महसूस होती हैं।
मध्य भाग में अंचल के आभूषणों के ऐश्वर्य से साक्षात्कार होता है। छत्तीसगढ़ी महिलाओं द्वारा उपयोग में लाए जाने वाले विभिन्न आभूषणों जैसे कान की खूंटी, गले का सूता,रुपया, सांटी व तोड़ा की फायबर में निर्मित भव्य प्रतिकृतियों को आभूषण उद्यान में मनोहारी तरीके से संयोजित किया गया है। उद्यान के मध्य में श्रृंगाररत छत्तीसगढ़ी महिला का भव्य शिल्प है जो उद्यान में प्रदर्शित विभिन्न आभूषणों से स्वयं का श्रृंगार कर रही है।
मुक्तांगन में प्रवेश करते ही बार्इं ओर के क्षेत्र में अंचल में प्रयुक्त विभिन्न वाद्यों से वातावरण को झंकारित करती आदिवासी प्रतिकृतियों का भव्य समूह बरबस ही ध्यान आकर्षित करता है। ‘बाजा बजगरी’ शीर्षक से निर्मित इस खंड में छत्तीसगढ़ के लोक संगीत की सुरमयी झांकी है। इसी खंड के पास एक क्षेत्र ‘मानयतला’ नाम से विकसित किया गया है। इसमें अंचल के आदिवासियों द्वारा प्रयुक्त विभिन्न पारंपरिक मुखौटों की आदमकद भव्य प्रतिकृतियां अपनी भव्यता व विशिष्टता से अभिभूत करती हैं। देश के अनेक हिस्सों से रायपुर रेल मार्ग, सड़क मार्ग और हवाई मार्ग से जुड़ा है।
संदीप राशिनकर
हमारे प्राचीन नुस्खे ऐसे हैं जो देखने में साधारण एवं छोटे लगते हैं परन्तु बड़ी-बड़ी बीमारियों को मैदान छोड़कर भागना पड़ता है। आइये इन छोटे-छोटे नुस्खों से इन बीमारियों का काम तमाम करते हैं।
कमर दर्द: 250 ग्राम निर्गुन्डी तथा 500 मिली शुद्ध देशी शहद लेकर एक घी रखने वाली हड़िया में अन्दर घी चुपड़ कर दवा व शहद अच्छी तरह फेंट कर उसमें भर दें तथा उसमें मिट्टी का ही ढक्कन ढककर बांध कर भूसे में गाड़ कर 30 दिन रखें। तत्पश्चात उसे निकालकर कांच की चौड़ी मुख वाली शीशी में भर लें। बस सुबह-शाम 2-4 चम्मच अवलेह गरम दूध के साथ प्रात: रात्रि में कुछ दिन सेवन करने से कमर दर्द अलविदा हो जाता है। दवा के 30 मिनट बाद तक कुछ न खायें पियें।
कांच (अड़िया) निकलना: बच्चों को पाखाना करते समय जोर लगाने से कांच निकल जाती है। इसके लिए पुराने जूते का चमड़ा जलाकर राख को बारीक पीस कर रख लें। जब भी कांच निकले कांच के नीचे थोड़ा घी चुपड़कर वही राख लगाकर हाथ की गद्दी से अन्दर कर दें। यह नुस्खा सुबह-रात्रि 7-8 दिन करें, कांच निकलना बन्द हो जायेगा।
कौड़ी (धुकध्ुाकी) का दर्द: जिनके छाती के नीचे मध्य केन्द्र, जहां चोला सा गड्ढा, जिसे कौड़ी बोलते हैं, में दर्द हो तो 2 रत्ती हींग पीसकर एक मुनक्के के बीज निकालकर उसके बीच में हींग रख कर गुनगुने पानी से सेवन कर लें। यह प्रयोग सुबह-शाम 1-3 दिन करने से कौड़ी का दर्द ठीक हो जाता है। खाना हल्का सुपाच्य खायें, गैस न बनने दें। इसके लिये हिंगाष्टिक चूर्ण भी 1-1 चम्मच गरम पानी से खाने के बाद लेना चाहिए। डा. भारत सिंह ‘भरत’
टिप्पणियाँ