दुनिया के 107 देशों के 114,000 लोगों की राय
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आज के माहौल और नित नए खुलासों को देखते हुए यह कहना अतिशयोक्ति नहीं है कि भारत सहित दुनियाभर में भ्रष्टाचार महारोग की तरह बढ़ रहा है। बर्लिन की एक कंपनी ट्रांस्पेरेंसी इंटरनेशनल ने इस महारोग की नब्ज आंकने के लिए पिछले दिनों एक सर्वे किया। उसमें जो आंकड़े आए, वे चौंकाने वाले हैं। 107 देशों के 114,000 लोगों में से 27 फीसदी ने माना कि पिछले साल सरकारी कामकाज कराने में उन्होंने घूस दी थी। ये एक बड़ी तादाद है। ये बताती है कि इस महारोग की जड़ें गहराती जा रही हैं। अजीब बात यह है कि ज्यादातर लोग जानते और मानते हैं कि भ्रष्टाचार सिरे तोड़कर बढ़ रहा है, लेकिन उसके जवाब में कहते बस यह हैं कि, 'हमें क्या, यह समस्या तो दूसरे की है, हम तो इससे अलग हैं भई।' दिक्कत यह है कि लोगों के इसी रुख के चले यह महारोग बढ़ता जा रहा है।
सर्वे में जवाब देने वाले ज्यादातर लोगों ने कहा कि पिछले दो सालों में यह समस्या बदतर हो गई है। सर्वे से कुछ रोचक तथ्य उजागर हुए हैं। पता चला कि गरीब देशों में घूस देने के मामले अमीर देशों के मुकाबले दोगुने होते हैं। हर तीन में से एक देश में सबसे रिश्वतखोर महकमा पुलिस का मिला, पांच में से तकरीबन एक में न्यायपालिका। कुल सर्वे किए लोगों में चार में से एक ने कहा कि उन्होंने घूस दी है। लोकतांत्रिक देशों में सबसे भ्रष्ट कोई लोक संस्थान पाए गए तो वे हैं राजनीतिक दल।
भ्रष्टाचार के मायने घूस लेना-देना ही नहीं होते। तीन में से करीब करीब दो लोगों का कहना था कि सार्वजनिक क्षेत्र में काम होते हैं तो आपस की भाईबंदी से। यह चीज सिर्फ उभरते लोकतंत्रों या अर्थतंत्रों में ही नहीं देखने में आती। हाउस ऑफ रीप्रेजेंटेटिव्स के नए चुनकर आए डेमोक्रेट सदस्यों को उनकी पार्टी ने कहा कि वे दिन के चार घंटे पार्टी के लिए चंदा जुटाने में लगाएं। यू. के. में तो राजनीतिक दलों के फौरन बाद भ्रष्टाचार के पैमाने पर मीडिया आता है।
सर्वे करने वाली संस्था का आकलन है कि अगर भ्रष्टाचार की सड़ांध से निजात पानी है तो, सरकारों को विश्वास से भरा कोई तंत्र खड़ा करना होगा और लोगों को जब जब मांगी जाए ओर जहां जहां मुमकिन हो, रिश्वत देने से इनकार करना होगा।
बहुत से लोगों का मानना है कि पुलिस वालों और राजनीतिक नेताओं की जानी पहचानी सब डकार जाने वाली छवियों से परे भ्रष्टाचार सर्वव्यापी है। दुनियाभर में रिश्वतखोरी का स्तर बहुत ज्यादा है। लोगों ने माना कि उनमें भ्रष्टाचार को रोकने की ताकत है। कुर्सी के दुरुपयोग, गुपचुप लेन-देन और रिश्वतखोरी से लोहा लेने की इच्छा रखने वालों की अच्छी खासी तादाद है। इस महारोग से लड़ने के लिए सबसे पहले तो हमें शायद जगह, परिस्थितियों, नैतिकता और यहां तक कि भ्रष्टाचार की भाषा तक के बारे में दिमागों में बनी तस्वीरों को चुनौती देनी होगी। सोचना होगा कि क्या रिश्वत देकर मैं ठीक कर रहा हूं? क्या इससे बचा जा सकता था? क्या मैं ऐसा करके इसे बढ़ावा तो नहीं दे रहा? जब मन में ऐसे सवाल उठेंगे तो लड़ाई जीतने की तरफ एक कदम खुदबखुद उठा महसूस करेंगे। प्रतिनिधि
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