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25 मई को दरभा में नक्सलियों द्वारा किये भीषण नरसंहार से राज्य के मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह आहत तो हैं पर नक्सल विरोधी अभियान को जारी रखने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध हैं। आर्गेनाइजर प्रतिनिधि प्रमोद कुमार से बातचीत में मुख्यमंत्री ने कहा कि यह हमला नक्सलियों में बढ़ रही हताशा को झलकाता है। उनका आधार खिसक चुका है। यहां प्रस्तुत हैं उस बातचीत के मुख्य अंश-
l आपको नहीं लगता कि नक्सलियों के विरुद्ध 'शल्यक्रिया' करने का वक्त आ चुका है?
r हां, बिल्कुल। हम उनके प्रभाव क्षेत्रों में उनकी पहचान करके उनसे निपटने पर तेजी से कार्य कर रहे हैं। इस भीषण हत्याकांड के लिए जो भी जिम्मेदार हैं उन्हें बख्शा नहीं जाएगा। लोकतंत्र इस तरह की चुनौतियों का लगातार सामना करता रहता है। इसका यह मतलब नहीं कि पूरा तंत्र बैठ गया है। वर्षों से लोग नक्सल आतंक के विरुद्ध लड़ रहे हैं और अब भी यह लड़ाई पूरी तीव्रता के साथ जारी रहेगी। हमारे इरादों में रत्तीभर कमी नहीं है और सुरक्षा बलों का दमखम पूरे जोरों पर है। हम निर्णायक कार्रवाई कर रहे हैं। पीछे कदम हटाने का तो सवाल ही नहीं है। स्थानीय जनता के सहयोग से एक नये जोश के साथ कार्रवाई जारी रहेगी। इसी के साथ विकास से जुड़े काम भी उसी तेजी से चलते रहेंगे।
l कुछ रणनीतिकारों का दावा है कि सरकार की नक्सलविरोधी रणनीति असफल हो चुकी है और उसे नयी शक्ल देने की जरूरत है। आपका क्या कहना है?
r नहीं, रणनीति असफल नहीं हुई है। नौ सालों में हमने उन्हें काफी पीछे धकेल दिया है। इस एक घटना से आप पूरे प्रयासों पर सवाल खड़ा नहीं कर सकते। यह तो नक्सलियों का इतिहास है कि जब भी उनको लगता है कि वे घिर गये हैं या पीछे जाने को मजबूर कर दिये गये हैं तब वे इस तरह के कदम उठाते हैं। यह हमला उनकी हताशा को उजागर करता है। पिछले कुछ सालों के दौरान उनके हमलों में हताहत होने वालों की संख्या काफी कम हुई है। न केवल हमले बल्कि धमाके भी कम हुए हैं। इसके साथ ही उनसे मुठभेड़ों की संख्या कई गुणा बढ़ी है। मोटे तौर पर उन्हें पीछे धकेल दिया गया है। उनके खिलाफ चल रहा पूरा अभियान सकारात्मक नतीजे दे रहा है। हाल के हमले को हमारे उन्हीं प्रयासों की प्रतिक्रिया कहा जा सकता है। ऐसी बर्बर घटनाओं के जरिए वे अपनी उपस्थिति दिखाना चाहते हैं। लोकतंत्र को ऐसी सभी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, लेकिन हमारी लड़ाई जारी रहेगी। कोई एक घटना हमारा रास्ता नहीं रोक सकती। इससे हमें और तेजी के साथ लड़ाई में जुट जाने की ताकत मिलती है।
l आपने सेना की सहायता लेने से इनकार क्यों किया?
r देश के अंदर सैन्य कार्रवाई को सही नहीं ठहराया जा सकता। नक्सलवादी लाखों लोगों के बीच छुपे रहते हैं, जहां उनकी पहचान करना मुश्किल होता है। ऐसी परिस्थिति में कोई कार्रवाई कैसे की जा सकती है। गोलीबारी की भी इजाजत नहीं दी जा सकती। वे अचानक से बाहर निकलते हैं, हमला करते हैं और वापस छुप जाते हैं। जब तक किसी को उनके ठिकाने की ठीक-ठीक जानकारी न हो, सैन्य कार्रवाई नामुमकिन है। हमें मासूम लोगों के बारे में भी सोचना पड़ेगा।
l राज्य में इस घटना का राजनीति पर क्या असर पड़ेगा?
r यह पहली बार है कि जब राज्य में नक्सलियों ने किसी कांग्रेस रैली पर हमला बोला है। इससे पहले कई भाजपा नेताओं और भाजपा रैलियों पर ऐसे ही बर्बर हमले किये गये थे। हमारी विकास यात्रा के शुरू होने से पहले भी हमारे कई बड़े नेताओं और स्थानीय नेताओं को धमकियां दी गयी थीं। हमारे विधायकों और मंत्रियों पर निशाना साधते हुए धमाके भी किये गये थे। नक्सली किसी भी लोकतांत्रिक प्रक्रिया के खिलाफ हैं। इसीलिए वे उस विकास यात्रा और परिवर्तन यात्रा पर हमले कर रहे हैं, जो लोगों से लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं से जुड़ने का आह्वान करती हैं।
l ऐसे कई तत्व हैं जो इस तरह के हत्यारों के प्रति हमदर्दी रखते हैं। आज वे सब चुप हैं। आपका क्या कहना है?
r मेरा मानना है कि एकतरफा मानवाधिकारों की बातें करना सबसे बड़ा मानवाधिकार उल्लंघन है। जब एक बेटा और उसका पिता एक साथ मार दिये जायें, एक आदमी के शरीर में 30 गोलियां उतार दी जाएं, शरीर को टुकड़े-टुकड़े कर दिए जाएं, और इससे भी बढ़कर, इस बर्बरता पर नाचा जाए, खुशी मनायी जाए तब आप अपनी आंखें बंद कैसे रख सकते हैं? वे मानवाधिकारों के सबसे बड़े उल्लंघनकर्ता हैं। अजीब बात है कि जब कोई ऐसा हत्यारा पकड़ा या मारा जाता है तब ये तथाकथित मानवाधिकारवादी सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने से भी नहीं हिचकते। यह बिल्कुल अस्वीकार्य है।
l इस हमले के बाद दूसरे नक्सल प्रभावित राज्यों के साथ किस प्रकार का समन्वय चल रहा है?
r राज्यों के बीच समन्वय मजबूत होना चाहिए। समस्या से प्रभावी रूप से निपटने के लिए यह जरूरी है।
l राज्य में विधानसभा चुनाव आने वाले हैं और हर उम्मीदवार या राजनीतिक कार्यकर्ता को सुरक्षा देना संभव नहीं है। आपको नहीं लगता इस प्रकार की हिंसक घटनाएं राज्य में चुनाव प्रचार पर असर डालेंगी?
r नहीं, मुझे नहीं लगता। चुनावों में सुरक्षा को लेकर कोई समस्या नहीं आएगी। चुनाव निष्पक्ष और अच्छी तरह सम्पन्न होंगे। पिछले चुनावों के दौरान भी इन तत्वों ने लोकतांत्रिक प्रक्रिया में बाधा डालने की कोशिश की थी। ऐसी कोई भी कोशिश बर्दाश्त नहीं की VÉÉBMÉÒ*n
छत्तीसगढ़ में राजनीतिज्ञों पर हुए नक्सली हमले
13 नवंबर, 2008- गदपल में नक्सलियों ने कांग्रेस के ब्लाक अध्यक्ष और महेन्द्र कर्मा के समर्थक तीरथनाथ ठाकुर की हत्या।
9 नवंबर, 2009- लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा के जिला उपाध्यक्ष रमेश राठौर और उनके सहयोगी सूर्य प्रकाश सिंह चौहान की बडेगुडरा थोथपारा में हत्या।
7 जुलाई, 2010- नकुलनर में कांग्रेसी नेता अवधेश गौतम के घर पर नक्सलियों का हमला। हमले में गौतम के दो नौकर मारे गए और उनका बेटा और सुरक्षा गार्ड घायल हो गए।
4 मार्च, 2011- कुम्हार रास में महेन्द्र कर्मा के निकटतम सहयोगी राज कुमार तामो पर जानलेवा हमला। हमले में तामो के पैरों में गोलियां लगीं लेकिन तामो हमले में बच गए।
13 मार्च, 2012-एक बार फिर राज कुमार तामो पर हमला, तामो के सुरक्षा गार्ड ने एक नक्सली को मारकर हमले को नाकामयाब किया।
8 नवंबर, 2012- दंतेवाड़ा में महेन्द्र कर्मा के वाहन को उड़ाने के लिए नक्सलियों ने बारूदी सुरंग बिछाई लेकिन बुलेट प्रूफ वाहन होने की वजह से महेन्द्र कर्मा बच गए, उन्हें मामूली चोट लगी।
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