दसवीं कक्षा के बाद
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अब चुनें वही जो मन को लगे सही
सीबीएसई व आईसीएसई बोर्ड ने दसवीं के नतीजे घोषित कर दिए हैं जबकि यूपी बोर्ड का रिजल्ट आना अभी बाकी है। यह एक ऐसा दौर है जो छात्रों को कई तरह से परेशान व व्यग्र किए हुए होता है। दसवीं के बाद उन पर विषय वस्तु (स्ट्रीम) चुनने का भारी दबाव रहता है। कुछ छात्र तो पहले ही तय कर चुके होते हैं कि उन्हें किस क्षेत्र में जाना है जबकि कई अपने चयन को लेकर ऊहापोह की स्थिति में रहते हैं। विकल्प के बारे में काफी कुछ वे अपने दोस्तों, शिक्षकों और अभिभावकों से सुन चुके होते हैं कि डॉक्टर बनना है तो बायोलॉजी तथा इंजीनियर बनना है तो मैथ व एमबीए के क्षेत्र में जाना है तो कॉमर्स पढ़ना आवश्यक है। सही मायने में देखा जाए तो बाजार 'जॉब ओरिएंटेड प्रोफेशनल कोर्सों' से पटा पड़ा है, जिनमें दसवीं उत्तीर्ण छात्र भी दाखिला ले सकते हैं।
आर्ट– जिन छात्रों को इतिहास, भूगोल, सामान्य विज्ञान, राजनीति शास्त्र, अर्थशास्त्र, समाज शास्त्र आदि विषयों में रुचि हो तो वे दसवीं के बाद आर्ट विषयों का चयन कर सकते हैं। इसे चुनते वक्त उन्हें दूरदर्शी भी होना आवश्यक है।
साइंस– विज्ञान में हाथ आजमाने की हसरत रखने वाले छात्रों को विज्ञान वर्ग सबसे उत्तम साबित हो सकता है। इसमें जीव विज्ञान वर्ग व गणित का वर्ग भी आता है। जीव विज्ञान वर्ग के साथ भौतिकी, रसायन, जीव विज्ञान, हिन्दी, अंग्रेजी आदि विषय ले सकते हैं। जबकि गणित वर्ग के साथ भौतिकी, रसायन, गणित, हिन्दी, अंग्रेजी आदि विषय चुन सकते हैं।
कॉमर्स– आर्ट एवं साइंस से अलग कॉमर्स भी छात्रों के लिए अधिक उपयुक्त साबित हो सकता है। ऐसे छात्र जिनकी रुचि बही खाता, व्यापारिक संगठन, सांख्यिकी आदि विषयों में है तो वे कॉमर्स में अच्छा कर सकते हैं। आगे भी उन्हें अपनी प्रतिबद्धता कायम रखने के लिए पर्याप्त अवसर मिलते हैं।
कम्प्यूटर– जिस तेजी से कम्प्यूटर की दखलंदाजी हर क्षेत्र में बढ़ती जा रही है, उसी तेजी से इसे अनिवार्य विषय के रूप में अपनाने की बात प्रबल होती जा रही है। वैसे तो 'स्ट्रीम' कोई भी हो, कम्प्यूटर का ज्ञान सबके लिए आवश्यक है। परन्तु यदि उसे एक विषय के रूप में ही अपना लिया जाए तो निराशा हाथ नहीं लगती है।
इस लिहाज से छात्रों को यही सलाह दी जा सकती है कि वे दसवीं के पश्चात करियर चयन करते समय अपनी रुचि, कौशल को भलीभांति परख लें तथा जहां भी दुविधा की स्थिति हो या विकल्पों को लेकर जानकारी का अभाव है तो नि:संकोच विशेषज्ञों की मदद लें।
लक्ष्य है आपका, आकलन भी खुद करें
अक्सर जब भी हम अपनी आंखें बंद करते हैं तो हमारे सामने अपने किसी प्रिय का चेहरा दिखाई देता है। यह प्रिय शख्स माता-पिता, भाई-बहन, पति-पत्नी, दोस्त आदि कोई भी हो सकता है। लेकिन कभी भी हमें खुद का चेहरा दिखाई नहीं देता। जबकि जरूरत तो खुद को परखने की है। ऐसे में आंखें बंद करके पहले अपने बारे में सोचें कि जिस 'स्ट्रीम' की ओर वे रुख कर रहे हैं तो वाकई में क्या वे उसमें फिट बैठ रहे हैं।
क्षमता पहुंचाएगी मंजिल तक
दुनिया में कोई भी व्यक्ति पूर्ण नहीं होता। हर इंसान के अंदर कुछ न कुछ कमी अवश्य रहती है। जबकि कुछ अपेक्षाकृत ज्यादा क्षमतावान होते हैं। क्षमता को घटाना अथवा बढ़ाना आपके हाथ में है। यदि छात्र में कुछ कर गुजरने की क्षमता है तो कोई भी अवरोध उसका रास्ता नहीं रोक सकता। लेकिन जरूरी है कि इस क्षमता का उपयोग सही दिशा में किया जाए। यदि छात्र इस क्षमता का गलत दिशा में उपयोग करते हैं तो वे अपना कीमती समय नष्ट कर रहे होते हैं। इसलिए छात्र अपनी क्षमता को परखते हुए सही दिशा में दौड़ लगाएं।
'काउंसलर्स' हो सकते हैं सहायक
छात्रों को विषय चुनने में काउंसलर विशेष रूप से मददगार साबित हो सकते हैं। इस बारे में वे न सिर्फ छात्रों को विकल्पों से अवगत कराते हैं, बल्कि उनकी प्रतिभा को परखते हुए सही कोर्स करने की सलाह भी देते हैं। छोटे शहरों में अभी तक काउंसिलिंग की प्रक्रिया परवान नहीं चढ़ पाई है लेकिन बड़े शहरों में तमाम हेल्पलाइन, इंटरनेट अथवा व्यक्तिगत रूप से मिलकर छात्र इनका सहयोग ले रहे हैं। अधिकांश करियर काउंसलर भी इस बात को मानते हैं कि जब भी छात्र उनके पास आते हैं पहले उनका 'एप्टीट्यूड टेस्ट' करके यह देखा जाता है कि छात्र की वास्तविक रुचि किस क्षेत्र में है। इस बावत उन्हें संबंधित विकल्पों से अवगत करा दिया जाता है।
भीड़ का हिस्सा न बनें
छात्रों के अंदर कई बार ऐसी दुर्बलता सामने आती है कि यदि उसके कई मित्र किसी विशेष 'स्ट्रीम' का चयन करते हैं तो वह भी उसी 'स्ट्रीम' की ओर आकर्षित हो जाते हैं। भले ही उस 'स्ट्रीम' में उनकी रुचि कम हो। कोई भी विषय खराब नहीं होता सबका अपना अलग-अलग महत्व है लेकिन इस स्थिति में छात्रों को यह सलाह दी जाती है कि वे भीड़ का हिस्सा न बनकर अपनी रुचि को सबसे ऊपर रखकर देखें। यदि इसके चयन में कोई बाधा आ रही है तो घर-परिवार अथवा मित्रों के साथ बैठकर उसे दूर किया जा सकता है।
अभिभावक की भूमिका अहम
सही मायने में देखा जाए तो बच्चों के असली काउंसलर तो उनके माता-पिता ही होते हैं। माता-पिता को कोशिश करनी होगी कि वे बच्चे की पसंद को भांपकर ही अपना फैसला दें। अक्सर माता-पिता बच्चे की क्षमता तथा रुचि को ध्यान में न रखते हुए अपनी पसंद के कोर्स में दाखिला करवा देते हैं। नतीजा यह होता है कि छात्र का एकेडमिक करियर तो खराब होता ही है साथ ही डिप्रेशन, आत्महत्या जैसे मामले सामने आते हैं। इसलिए माता-पिता को यह सलाह दी जाती है कि वे अपनी पसंद बच्चों पर न थोपें। प्रस्तुति – नमिता सिंह
बच्चों का मार्गदर्शन जरूरी
'उम्र के इस दौर तक छात्र उतने परिपक्व नहीं होते कि उन्हें अपने 'स्ट्रीम' के बारे में सब कुछ पता ही हो। ऐसे में उन्हें थोड़े से मार्गदर्शन की आवश्यकता पड़ती है। इसके लिए माता-पिता अथवा काउंसलर उपयुक्त होते हैं। दसवीं के बाद अपने विषय को लेकर छात्र किसी काउंसलर से बातचीत कर लें तो उन्हें कई तरह की सम्यक जानकारी मिलती है और वे प्रतिस्पर्धात्मक दौड़ में अच्छी तरह शामिल हो सकते हैं।'
–गीतांजलि कुमार, करियर काउंसलर
बन गया लकीर का फकीर
'आज से तीन साल पूर्व जब मैंने दसवीं के बाद अपने माता-पिता के कहने पर कॉमर्स का चयन किया तो मैं अपने अंजाम से वाकिफ नहीं था। कॉमर्स में मेरी कोई रुचि न होने के बावजूद मैंने लगातार मेहनत की। फिर भी बारहवीं में मेरे अच्छे अंक नहीं आए। नतीजा यह हुआ कि किसी अच्छे कॉलेज में दाखिला नहीं मिल सका और मैं पत्राचार से ग्रेजुएशन कर रहा हूं। इसलिए छात्र अपनी रुचि के ही विषय लें।'
– गौतम शर्मा, ग्रेजुएशन छात्र
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