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जल अनुशासन पर गोष्ठी
गत 10 मई को नई दिल्ली के दीनदयाल शोध संस्थान में जल अनुशासन विषय पर एक गोष्ठी हुई। इसके वक्ता थे प्रसिद्ध जल विशेषज्ञ डॉ. सुधीरेन्द्र शर्मा। उन्होंने कहा कि जल अनुशासन का अर्थ है पानी की बर्बादी न करना और एक-एक बूंद पानी का इस्तेमाल करना। जल अनुशासन पर चर्चा करने का मतलब है कि जल की कमी हो रही है। जल की इस कमी में हमारी क्या भूमिका है इस पर जब गौर करेंगे तो मालूम होगा कि हम जल के प्रति कितने लापरवाह हैं। इस लापरवाही के कारण हम प्रतिदिन सैकड़ों लीटर पानी बर्बाद करते हैं। उन्होंने कहा कि हम कुल्ला करते समय या दाढ़ी बनाते समय नल को खुला छोड़ देते हैं। अंदाज लगा सकते हैं कि हम 8-10 मिनट के अन्दर कितना पानी बहा देते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि शौच के बाद जब हम फ्लश चलाते हैं तो एक साथ 12-14 लीटर पानी बहा देते हैं। इस पर कोई क्यों नहीं विचार करता है? उन्होंने कहा कि पूंजीवाद नागरिकों को केवल उपभोक्ता मानता है। इसलिए हर चीज को बेचा जा रहा है। पानी भी बिकने लगा है। देश के अन्दर कहीं भी चले जायें हर जगह बोतलबंद पानी मिल जायेगा। सरकारी नीतियां बदलनी पड़ेंगी। डॉ. शर्मा ने कहा कि ब्रह्मपुत्र में बाढ़ बारिश के कारण नहीं आती है। उस पर बांध बनाने की वजह से बाढ़ आती है। उसकी प्रवृत्ति को समझने का प्रयास नहीं होता है। अब ब्रह्मपुत्र पर फाइबर ग्लास से बांध बन रहे हैं। 25 करोड़ की लागत से 1 कि.मी. का तटबंध बनता है। समस्या की जड़ व्यवस्था ही है। व्यवस्था कुछ करना ही नहीं चाहती है। इसलिए पानी का संकट दिनों-दिन बढ़ता ही जा रहा है। 2001 में 18 लाख लीटर प्रतिव्यक्ति प्रतिवर्ष जल उपलब्ध था। 2011 में यह 15 लाख पर आ गया है। अब यह 10 लाख पर आ सकता है। फिर भी हम जल को बचाने के लिए गंभीर नहीं हैं। उन्होंने कहा कि नदियों से तो हम पानी खींच लेते हैं। पर हम यह विचार नहीं करते हैं कि नदियों को जिन्दा रखने के लिए कितना पानी चाहिए।
इससे पूर्व अतुल जैन ने इस कार्यक्रम की भूमिका रखते हुए बताया कि हमारे पूर्वज जल अनुशासन से इतने बंधे थे कि उन्होंने स्वयं जल के संरक्षण के लिए अनेक उपाय किये थे। उपस्थित लोगों को धन्यवाद डॉ. अवनिजेश अवस्थी ने दिया। इसका आयोजन स्वाध्याय मंडल ने किया था।
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