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1884 में बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय द्वारा लिखे गए आनन्दमठ उपन्यास में वन्दे मातरम् गीत प्रकाशित हुआ था।
1896 में कोलकाता में हुए कांग्रेस अधिवेशन में लोकमान्य तिलक आये थे और उस अधिवेशन का शुभारम्भ इसी गीत से हुआ था।
रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने इस गीत को संगीतबद्ध करके अपने द्वारा बनाए गए सुर में गाया था।
इस गीत का सबसे ज्यादा प्रचार हुआ सन् 1905 में, जब बंगभंग विरोधी आन्दोलन छिड़ा था।
8 नवंबर, 1905 को पूर्वी बंगाल के मुख्य सचिव ने इस गीत पर प्रतिबंध लगा दिया था।
सन् 1906 में पूर्वी बंगाल के बारीसाल जिला कांग्रेस के अधिवेशन के उपलक्ष्य में एक शोभायात्रा निकाली गयी, जिसका नेतृत्व अब्दुल रसूल नाम के एक स्थानीय कांग्रेसी नेता ने किया था। उस शोभायात्रा में बिपिन चन्द्र पाल, सुरेन्द्रनाथ बनर्जी, मोतीलाल घोष आदि ने भाग लिया था। वन्दे मातरम् बोलने पर प्रतिबंध के बावजूद सभा में सभी ने अपने सीने पर वन्दे मातरम् का बिल्ला लगाया था।
पंजाब केसरी लाला लाजपत राय ने भी वन्दे मातरम् नाम से एक उर्दू पत्रिका का प्रकाशन शुरु किया था।
सन् 1908 में लोकमान्य तिलक को गिरफ्तार करके पुलिस ने जब उन्हें अदालत में हाजिर किया तो वहां उपस्थित हजारों लोगों ने वन्दे मातरम् के गगनभेदी नारे लगाए।
28 अक्तूबर, 1907 को नागपुर के नील सिटी हाई स्कूल में 'स्कूल इंस्पेक्टर' के निरीक्षण के दौरान विद्यार्थी केशव बलिराम हेडगेवार के नेतृत्व में छात्रों ने वन्देमातरम् के नारे लगाए।
1887 में कांग्रेस के अध्यक्ष थे बदरुद्दीन, तब उसके अधिवेशन में वन्देमातरम् गाया गया, 1894 में बंकिम बाबू के निधन के पश्चात् 28 दिसम्बर 1896 को स्वयं रवीन्द्र नाथ ठाकुर ने कांग्रेस अधिवेशन में वन्देमातरम् गाया था, उस समय कांग्रेस अध्यक्ष थे मो. रहीम सयानी, 1913 में कांग्रेस के अध्यक्ष थे सैयद मोहम्मद बहादुर, तब अधिवेशन में वन्देमातरम् गाया गया था, 1927 में एम.ए. अंसारी के अध्यक्ष रहते हुए अधिवेशन में गाया गया।
कांग्रेस ने खिलाफत आंदोलन के समय से ही इस गीत के साथ कुत्सित राजनीति शुरू कर दी। मुस्लिम लीग वन्देमातरम् गीत का विरोध करने लगे
सन् 1923 में आंध्र प्रदेश के काकीनाडा में कांग्रेस का अधिवेशन था। पंडित विष्णु दिगम्बर पलुस्कर द्वारा वन्दे मातरम् के गायन के साथ अधिवेशन का शुभारंभ होने वाला था। पलुस्कर जी वन्देमातरम् गाने के लिए ज्यों ही मंच पर आये, अधिवेशन के अध्यक्ष सैयद मुहम्मद अली ने वन्देमातरम् गायन का प्रतिवाद किया। किन्तु पलुस्कर जी गायन के लिए अड़े रहे। परिणामत: मुहम्मद अली चलते बने।
28 अक्तूबर, 1937 को कोलकाता में कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक में यह प्रस्ताव पारित किया गया कि कांग्रेस के किसी कार्यक्रम या अधिवेशन में अगर वन्देमातरम् गीत गाया जाएगा तो इस गीत के केवल प्रथम दो चरण ही गाए जाएंगे।
जिस आशा के साथ कांग्रेस ने राष्ट्रीय गीत वन्दे मातरम् का गला घोंटा था, क्या वह आशा पूरी हो पाई? क्या कांग्रेस मुसलमानों का मन जीत पाई? और तो और मोहम्मद अली जिन्ना ने अपने 11 सूत्री मांग पत्र में पहली मांग रखी कि वन्देमातरम् राष्ट्रीय गीत को पूरी तरह वर्जित करना पड़ेगा।
4 जनवरी, 1950 को संविधान सभा की बैठक में राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद ने यह घोषित किया कि राष्ट्र गान के रूप में 'जन गण मन…' तथा 'वन्देमातरम्' का बराबर सम्मान रहेगा। लेकिन क्या ऐसा हो पाया? इस तरह से मुस्लिम तुष्टीकरण नीति के सामने वन्दे मातरम् को बलि का बकरा बनाया गया।
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