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'भारतीय स्त्री: एक मीमांसा' पुस्तक के लोकार्पण में वक्ताओं ने कहा
महिलाओं की समस्याओं के निराकरण के लिए समाज को मिलकर प्रयास करने होंगे। –मोहनराव भागवत, सरसंघचालक रा.स्व.संघ
'समाज में नैतिकता एवं संस्कारों के निर्माण में महिलाओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। किसी समय ब्रह्मवादिनी एवं समाज की निर्णय प्रक्रिया में आगे रहने वाली महिलाएं आज अनेकांे समस्याओं से घिरी हुई हैं। उन्हें इन समस्याओं से मुक्त करके उनका मूल रूप उभारने में समाज का योगदान आवश्यक बन गया है'। उक्त उद्गार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने गत दिनों पुणे (महाराष्ट्र) में 'भारतीय स्त्री: एक मीमांसा' पुस्तक का लोकार्पण करते हुए व्यक्त किए। सुश्री सुधा रिसबूड द्वारा लिखित इस पुस्तक को स्नेहल प्रकाशन ने प्रकाशित किया है। लोकार्पण समारोह की अध्यक्षता डेक्कन कालेज अभिमत विश्वविद्यालय के अध्यक्ष डा. गो. बं. देगलूरकर ने की।
श्री भागवत ने कहा कि पिछले कुछ शतकों में भारतवर्ष पर हुए आक्रमणों के कारण यहां की स्थिति महिलाओं के लिए विपरीत हो गई। इसी कालखंड में स्त्री जीवन में विपरीत परिणाम हुए जिसके कारण अनेकों समस्याएं उभर आईं। उन समस्याओं के निराकरण के लिए समाज को अब मिलकर प्रयास करने होंगे। उन्होंने कहा कि आज भी ग्रामीण तथा वनवासी क्षेत्रों में घर-गृहस्थी के निर्णय महिलाएं ही करती हैं, किन्तु घर के बाहर का पूरा जीवन अभी भी बहुत हद तक पुरुष वर्चस्ववादी संस्कृति से भरा हुआ है। यह चित्र बदले जाने की आवश्यकता है।
डा. देगलूरकर ने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि एक हजार साल पूर्व तक हमारे समाज में महिलाओं का जो स्थान हुआ करता था वो हमनें क्यों गवां दिया इसका हमें गंभीरता से विचार करना होगा। आज हम महिलाओं के संदर्भ में सोचते हैं वह भी केवल समाचारों की दृष्टि से। यह स्थिति हमें बदलनी होगी। पुस्तक की लेखिका सुश्री सुधा रिसबूड ने कहा कि परिवार संवारने वाली स्त्री को आज असहाय और दुखियारी बताजा जा रहा है। संस्कारों को संजोए रखने वाली स्त्री को अभी भी अनेक जगहों पर प्रगत शिक्षा से दूर रखा जा रहा है। इस स्थिति में बदलाव लाने के लिए संगठित प्रयासों की आवश्यकता है। इस अवसर पर बड़ी संख्या में पुणे के गणमान्यजन उपस्थित थे।प्रतिनिधि
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