महिला अपमान और बेशर्म बयानों की पुरानी कहानी
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दिल्ली के गांधी नगर में एक मासूम बच्ची से घिनौना कृत्य सबके मन को कचोट रहा है। आखिर बलात्कार की घटनाएं रुकने का नाम क्यों नहीं लेतीं? क्यों कुछ इनसान हैवानियत की भी हदें पार कर रहे हैं? और फिर ऐसी शर्मनाक घटनाओं पर उपजे जनाक्रोश पर सत्तारूढ़ कांग्रेस के नेता और सांसद सतही और आपत्तिजनक टिप्पणियां क्यों कर रहे हैं। जितना शर्मनाक कृत्य हो रहा है उससे भी शर्मनाक सोच प्रकट हो रही है।
दिल्ली में एक युवती के साथ 16 दिसम्बर, 2012 की रात वीभत्स बलात्कार और अब गांधीनगर के दर्दनाक हादसे के बाद उपजे जनाक्रोश के संदर्भ में कांग्रेस नेताओं के बेतुके, बेहूदे तथा बेसुरे बयानों की बाढ़ सी आ गई। उसके बाद माफीनामों का भी क्रम चला। अपनी घृणित उदण्डता के लिए कभी ये नेता कहते दिखे कि जुबान फिसल गई तो कभी कहते दिखे कि उनका मतलब वह नहीं था। कभी आरोप लगाते कि मीड़िया ने उनकी बात का गलत अर्थ निकाला। समय-समय पर उनके बचाव में आयी पार्टी के प्रवक्ताओं को भी कहना पड़ा कि उपरोक्त वक्तव्यों से पार्टी का कोई लेना-देना नहीं है, अथवा पार्टी उनके वक्तव्यों से अपने को अलग करती है या यह उनका व्यक्तिगत विचार था। पर सच तो यह है कि इन वक्तव्यों से कांग्रेसी नेताओं की क्षुद्र मानसिकता, शरारतपूर्ण, दोहरी-दोगली नीति तथा अधकतरी सोच सामने आती है। इसी कारण समाज में से सरकार और कांग्रेस की विश्वसनीयता कम होती जा रही है।
सबको स्मरण होगा कि जब देश की युवा शक्ति 16 दिसम्बर की आपराधिक घटना पर अपना शोक तथा रोष व्यक्त कर रही थी, देश-विदेश की सभी पत्र-पत्रिकाएं तीव्र भर्त्सना कर रही थीं, तब भी देश के कुछ कांग्रेस नेता एक के बाद एक शर्मनाक, लज्जास्पद तथा निदंनीय टिप्पणी करने से नहीं चुके थे। घटना के तीन दिन बाद ही कांग्रेसी सांसद संजय निरुपम ने टीवी पर आयोजित एक बहस के दौरान भाजपा की नेता स्मृति इरानी की आलोचना करते समय मर्यादा की हद पार कर दी और कहा, 'राजनीति में आए हुए चार दिन हुए हैं और आप राजनीतिक विश्लेषक बनी फिरती हैं। आप तो कल तक टी.वी. पर ठुमके लगाती थीं।' एक सांसद और कांग्रेस के प्रवक्ता का बयान इतना बेहूदा और निम्न स्तरीय? स्मृति ईरानी ने उन पर मानहानि का दावा कर दिया है।
आंध्र प्रदेश के कांग्रेस अध्यक्ष बोस्ता सत्यनारायण ने दिल्ली बलात्कार काण्ड को 'मामूली दुर्घटना' बताया। हैदराबाद में कांग्रेस कार्यालय में आयोजित पत्रकार वार्ता में उन्होंने कहा कि 'बलात्कार पीड़िता सावधान नहीं थी।' आगे कहा कि 'भारत को आजादी आधी रात (14 अगस्त की रात्रि) को मिली, इसका मतलब यह नहीं है कि महिलाएं आधी रात में आजाद घूमें।' उनका कहना था कि महिलाएं उस बस में ही न बैठें जिसमें कम यात्री हों। उनके वक्तव्य की जब देशव्यापी आलोचना होने लगी तो बोस्ता ने दूसरी पत्रकार वार्ता बुलाई और कहा कि 'मैंने तो एक जिम्मेदार पिता के रूप में टिप्पणी की थी।' यह था उनका माफीनामा।
शर्म–शर्म–शर्म
भारत के महामहिम राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के पुत्र, जांगीपुर से निर्वाचित कांग्रेस सांसद अभिजीत मुखर्जी ने भी विरोध प्रदर्शन कर रहे लोगों के प्रति भद्दी टिप्पणी की। उन्होंने बलात्कार कांड के दिल्ली में चल रहे विरोध प्रदर्शन पर कहा कि आजकल हर मुद्दे पर 'कैंडल मार्च' निकालने का फैशन चल पड़ा है। लड़कियां खूब रंग-पुत कर दिन में 'कैंडल मार्च' निकालती हैं और रात में डिस्को जाती हैं।' अभिजीत मुखर्जी के बयान पर उनकी बहन शर्मिष्ठा ने ही शर्म-शर्म कहा और माफी मांगी।
केन्द्रीय मंत्री व्यालर रवि ने भी महिलाओं के प्रति एक लज्जास्पद टिप्पणी की। एक महिला पत्रकार ने, जिसने राज्यसभा के उपसभापति पी.जे. कुरियन के सूर्यानेल्ली बलात्कार काण्ड के सम्बंध में प्रश्न पूछा, व्यालर रवि ने उस महिला पत्रकार से कहा, 'तुम्हारे साथ ऐसा कुछ न होगा।' फिर कहा कि 'क्या तुम्हारी कुरियन से कोई व्यक्तिगत दुश्मनी है? क्या कुरियन ने तुम्हारे साथ कुछ किया?' फिर वही हुआ जो होना था। मांफी मांगते हुए कहा, 'मुझे गलत समझा गया। मैं हमेशा पत्रकारों से मजाक करता हूं। सभी ने इसे मजाक में ही लिया था।'
हद तो तब हुई जब भारत के गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने राज्यसभा में भण्डारा (महाराष्ट्र) में तीन नाबालिक बहनों के साथ हुए बलात्कार के मामले में उनके नामों की सूची पढ़ डाली। यह न तो नियमानुकूल था और न ही सामान्य शिष्टाचार के अनुरूप। बाद में राज्यसभा में विरोधी दल के नेता के कहने पर उनके नामों को कार्यवाही से निकाला गया। यह है कांग्रेसी नेता की महिलाओं के प्रति असंवेदनशीलता की हद। क्या इस प्रकार के नेताओं से यह उम्मीद की जानी चाहिए कि वे महिलाओं की सुरक्षा के लिए कभी गंभीर ½þÉåMÉä? b÷É. सतीश चन्द्र मित्तल
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