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गोरखपुर बम विस्फोट के आरोपी कासिमी के खिलाफ मुकदमा वापस लिया
केन्द्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा ने कुछ दिनों पहले जब यह कहा था कि 'सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव के आतंकवादियों से रिश्ते हैं' तो राजनीतिक क्षेत्रों में हलचल मच गई थी। पक्ष और विपक्ष दोनों तरफ से उनकी बयानबाजी पर आश्चर्य जताया गया था। बेनी ने हो सकता है कि एक राजनीतिक बयान दिया हो और उनके इस बयान में राजनीतिक हानि-लाभ का भाव छिपा हो, लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा गोरखपुर बम धमाकों से जुड़े आतंकी तारिक कासिमी का मुकदमा वापस लेने के बाद यह तय हो गया कि खुद मुलायम सिंह और उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी की सरकार आतंकवादियों के प्रति नरमदिल है। सरकार के इस कृत्य से निश्चित तौर पर आतंकवादियों के हौसले बुलन्द हुए होंगे। अब मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव आतंकवाद और आतंकवादियों के मुद्दों पर कड़ा बयान देने के हकदार नहीं रहे।
यूं तो मुलायम सिंह यादव की छवि कट्टर मुस्लिम समर्थक की है और मुस्लिम वोटबैंक पुख्ता करने के लिए वह किसी भी हद तक जा सकते हैं। मुस्लिम वोटों के लिए ही उन्होंने 1990 में 30 अक्तूबर को रामजन्मभूमि आन्दोलन के दौरान रामलला परिसर के सामने ही कारसेवकों पर गोलियां चलवाई थीं। यही नहीं, 2 नवम्बर को उन्होंने अयोध्या के दिगम्बर अखाड़े से राम-राम कहते हुए रामलला के दर्शनों को जा रहे कारसेवकों पर गोली चलवाई थी जिसमें पश्चिम बंगाल के दो भाई शरद और राम कोठारी समेत कई कारसेवक मारे गये थे। हालांकि उसके बाद हुए विधानसभा चुनाव में मुलायम सिंह बुरी तरह हार गये थे। लेकिन उनका मुस्लिम मोह छूटा नहीं और आज समाजवादी पार्टी का दावा है कि मुस्लिम समर्थन के कारण ही उ.प्र. में उसकी बहुमत की सरकार है।
अब लगता है मुलायम सिंह पिछले विधानसभा चुनाव में मुसलमानों के समर्थन का कर्ज चुका रहे हैं। अन्यथा क्या कारण है कि जिस तारिक कासिमी को उ.प्र. पुलिस के विशेष कार्यबल ने सवा किलो आरडीएक्स, 6 डेटोनेटर, तीन मोबाईल फोन और 6 सिम कार्ड के साथ गिरफ्तार किया था उसे अब जेल से रिहा करने के लिए रास्ता तैयार किया जाए? गोरखपुर धमाके में नामजद तारिक पर अन्य धाराओं के अलावा देशविरोधी काम करने का भी मुकदमा कायम है, लेकिन सरकार ने राजनीतिक कारणों से न्याय विभाग की मदद लेते हुए गोरखपुर के डीएम और एसपी से मुकदमा वापसी के सन्दर्भ में आख्या मंगवाई। बताते हैं गोरखपुर के डीएम की रपट मुकदमा वापस न करने के पक्ष में है, फिर भी राज्य सरकार ने उनको निर्देश दिया है कि तारिक की रिहाई के लिए वह अदालत में अर्जी दें। उल्लेखनीय है कि 22 मई 2007 को गोरखपुर में सिलसिलेवार बम धमाके हुए थे, उनमें 6 लोग गम्भीर रूप से घायल हो गये थे। धमाकों का आरोप इण्डियन मुजाहिदीन और 'हूजी' आतंकी संगठनों पर था और तारिक को 'हूजी' का सदस्य करार दिया गया था। वही तारिक ही अब राज्य सरकार की पहल पर आतंकी विस्फोट जैसे जघन्य अपराध से मुक्त होने जा रहा है। तारिक आजमगढ़ जिले के सरायमीर कस्बे का मूल निवासी है और इस समय लखनऊ जेल में बन्द है।
उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार का यह पहला फैसला है कि किसी आतंकवादी का मुकदमा वापस लिया गया हो। तारिक पर फैजाबाद, वाराणसी और लखनऊ की कचहरियों में 23 नवम्बर 2007 को हुए विस्फोटों के षड्यंत्र में शामिल होने का भी आरोप है।
वैसे मायावती सरकार भी इस आतंकी के प्रति नरमदिल रही है। मामले की जांच के लिए मायावती ने आर.डी. निमेष की अध्यक्षता में एक आयोग बनाया था। सरकार के संकेतों पर निमेष आयोग ने भी कासिमी की गिरफ्तारी पर सवाल उठाया था। अब मुलायम सिंह की शह पर काम कर रही अखिलेश सरकार ने मुकदमा वापस करने के लिए निमेष आयोग का ही सहारा लिया। कासिमी के साथ जौनपुर निवासी खालिद मुजाहिद को भी गिरफ्तार किया गया था और उसके ऊपर से भी मुकदमा वापस लेने का दबाव बन रहा है।
इससे पहले मुलायम सिंह ने अपनी ही सरकार में 'सिमी' के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष का भी मुकदमा वापस कर लिया था। उस समय वह देशविरोधी कार्य करने के आरोप में बहराईच जेल में बन्द था। लोकसभा चुनाव करीब आते-आते मुलायम सिंह और उनकी मुस्लिम परस्त नीतियों पर काम कर रही अखिलेश सरकार इस तरह के और फैसले ले सकती है। इसकी शुरुआत भी हो चुकी है। इस सरकार ने लखनऊ और फैजाबाद की कचहरियों में हुए धमाकों में शामिल तीन अन्य आतंकियों पर से मुकदमा वापसी की तैयारी कर ली है। इस सम्बन्ध में सम्बन्धित जिलों के डीएम और एसएसपी से आख्या तलब की गई है। उनकी आख्या आये, इससे पहले वकीलों ने कड़ा विरोध किया है, क्योंकि इन धमाकों में वकीलों के साथ अदालतों में काम करने वाले अन्य लोग मारे गये थे और कई जख्मी हुए थे। सम्भवत: इस सरकार को अपने वोट बैंक के आगे इस विरोध की परवाह नहीं है।
पांच अन्य आरोपी भी मुक्त
इस सरकार ने 'हूजी' से सम्बन्ध रखने वाले पश्चिम बंगाल के पांच अन्य आतंकियों पर लगा मुकदमा वापस ले लिया है। इन पर दिसम्बर 2008 में लखनऊ कचहरी में एक अन्य मुकदमे की सुनवाई के दौरान देश विरोधी नारे लगाने का आरोप है। पश्चिम बंगाल निवासी मुख्तार हसन, मो. अली अकबर, अजीजुर रहमान, नौशाद हाफिज और नुरुल इस्लाम को देश विरोधी नारे लगाने के आरोप से मुक्त करने की कानूनी प्रक्रिया पूरी कर ली गयी है। कासिमी के साथ ये पांचों भी किसी भी समय जेल से रिहा किये जा सकते हैं। लखनऊ से शशि सिंह
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