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देश में आज हर तरफ जनाक्रोश उबल रहा है। आएदिन घटतीं बलात्कार की घटनाओं, उनमें हद पार करती पाशविक मनोवृत्ति, पुलिस का हतबल होकर नागरिकों पर ही गुस्सा निकालना, पुलिस अधिकारियों का अक्खड़ रवैया और इस सब पर सरकारी कारिंदों, मंत्रियों से लेकर प्रधानमंत्री तक गहरी खामोशी आमजन के मन को झिंझोड़ रही है। जीवन की तमाम मुश्किलों से जूझते जनमानस को सरकार की ओर से किसी तरह के संबल या आश्वस्ति की झलक तक नहीं है। सरकार केन्द्र की हो या राज्यों की, नेता हों या मंत्री, सबकी बोली में लाट साहबियत ही दिखती है। देश भीतरी और बाहरी खतरों में आकण्ठ डूबा है, पर सरकार है कि कहीं दिखती नहीं। आखिर सरकार है कहां? इस सवाल को लेकर पाञ्चजन्य ने सीमा सुरक्षा बल के पूर्व महानिदेशक श्री प्रकाश सिंह से बातचीत की। उस बातचीत में श्री सिंह द्वारा व्यक्त विचार इस प्रकार हैं–
देश में ध्वस्त होती कानून-व्यवस्था और रोजाना बलात्कार की जो दिल दहला देने वाली घटनाएं सामने आ रही हैं, वे सचमुच चिंता का विषय हैं। बलात्कार तो पहले भी होते थे, लेकिन अब बहुत वीभत्स प्रकार के कांड सामने आ रहे हैं। इस तरह की घटनाएं क्यों हो रही हैं, इनके पीछे क्या मानसिक विकृति है इस पर एक सामाजिक अध्ययन होना चाहिए। ऐसे मामलों पर अध्ययन करके एक विश्लेषण सामने आए तब कुछ हो सकता है। इसमें संदेह नहीं है कि आज समाज का वातावरण बहुत दूषित हो गया है। हम पाश्चात्य मूल्यांे को अपनाते जा रहे हैं। हमारे यहां कितने दबाव समूह बन गए हैं। कोई नशे के व्यापार का समर्थन करता है, कोई अश्लीलता का समर्थन करता है। लोग खुली छूट चाहते हैं और यदि कोई उस पर रोक लगाए तो 'मोरल पुलिसिंग' के नाम पर उसका विरोध किया जाता है। यह जो वातावरण बन गया है इसने लोगों की तामसिक प्रवृत्तियों को उभारा है। दिसम्बर 2012 में वह जो दर्दनाक घटना दिल्ली में घटी और अभी दिल्ली में ही 5 साल की बच्ची से बलात्कार का भीतर तक हिला देने वाला कांड हुआ, इनकी जितनी निंदा की जाए कम है।
यह क्यों हो रहा है, जब तक हम इसकी गहराई में नहीं जाएंगे तब तक पुलिस की आलोचना मात्र करने से बात नहीं बनेगी। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि पुलिस अपना काम ठीक से कर रही है। पुलिस में आमूल परिवर्तन की आवश्यकता है। न्यायमूर्ति वर्मा कमेटी ने भी इस बात पर जोर दिया था कि यदि हम स्त्रियों-बच्चियों को सुरक्षित करना चाहते हैं तो उसके लिए कोई छोटा रास्ता नहीं है। उसका एक ही रास्ता है- पुलिस में सुधार लागू किए जाएं। उन्होंने अपनी रपट में हर राज्य से यह कहा था कि इस संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों का पालन करें। पूरी रपट पुलिस सुधार की बात करती है। पुलिस में परिवर्तन से ही महिलाएं सुरक्षित होंगी और सभी समस्याओं से निपटा जा सकेगा।
सरकार की तरफ से भी संवेदनहीनता है। उसे सत्ता का अहंकार है। सत्ता का यह अहंकार केन्द्र में भी दिखता है और राज्यों में भी। एक राज्य का मंत्री कहता है, 'दरोगा तो तब तक बैठ भी नहीं सकता जब तक उसे आदेश नहीं देंगे'। यह कैसी भाषा है? आज नेताओं में सत्ता का अहंकार दिख रहा है। लोगों में यह भावना बन गई है कि जो कुर्सी पर बैठा है वह जो चाहे करे उसकी कोई जवाबदेही नहीं है। वह जितना चाहे लूटे, जितने चाहे घोटाले करे, उसका कोई पुछवैया नहीं है। सत्ता के अहंकार की वजह से जनता बार-बार सड़क पर उतर रही है। नि:संदेह इसकी परिणति सत्ता परिवर्तन में दिखेगी। देश में इस बात से भी निराशा है कि विरोधी पार्टियों से जो नेतृत्व मिलना चाहिए था वह नहीं मिला। लेकिन यह तय है कि मौजूदा केन्द्र सरकार इस देश पर बोझ बन गई है। ये जितनी जल्दी जाए, देश का उतना ही भला होगा।
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