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पश्चिम के देशों में सामान्यत: बचत का रिवाज नहीं है। वहां लोग अपनी आमदनी से भी ज्यादा खर्च करने में विश्वास रखते हैं। परिसंपतियों जैसे घर, फर्नीचर और घरेलू सामान की खरीद उधार लेकर की जाती है और उसे ईएमआई से चुकाया जाता है। भारत में बचत की संस्कृति है। घरों और जरूरी साजोसामान पर तो निवेश होता ही है, सोने की खरीद भी निवेश ही माना जाता है, क्योंकि बुरे समय में सोना एक बीमा का काम करता है। इसलिए दुनिया में चाहे सोने की चमक तेज हो या फीकी, भारत में सोने की चमक हमेशा बनी रही है। यही कारण है कि पिछले कुछ दिनों में सोने की कीमत में कमी होते ही लोग सोने के आभूषण खरीदने के लिए लालायित हो उठे।
भारत में सोना हमेशा से ही आकर्षण की वस्तु रहा है। महिला हो या पुरुष स्वर्ण आभूषणों के लिए लालायित रहते हैं। स्त्री धन भारत की परंपरा में एक विशेष महत्व रखता है। सामान्य तौर पर महिला के आभूषणों को स्त्री धन कहा जाता है। विवाह विच्छेद होने पर स्त्री धन महिला को बिना शर्त मिलता है। विवाह के अवसर पर स्वर्ण आभूषणों के उपहारों का एक विशेष महत्व रहता है। किसी भी परिवार में आमदनी बढ़ते ही सबसे पहला निवेश आमतौर पर सोने में ही होता है। भारत में सोना सामान्य तौर पर निवेश का एक बड़ा प्रकार रहा है। वैसे तो किसी देश में कुल कितना सोना है, इसका आकलन करना खासा मुश्किल काम है, लेकिन भारत के बारे में सोने के कुल भंडार 18000 टन से 40000 टन आंके जाते हैं। लेकिन ये अनुमान भी सही नहीं प्रतीत होते। हाल ही में पद्मनाभन मंदिर में पाए गए खजानों और ऐसे अन्य प्रकार के खजानों को यदि देखा जाए तो भारत में सोने का भंडार इससे कहीं ज्यादा माना जाएगा। भारत में सोने की चाहत के मद्देनजर मोटे तौर पर यह माना जाता है कि भारत में कुल दुनिया के आधे से भी ज्यादा सोने के भंडार हैं।
पिछले कुछ दिनों से दुनिया में सोने की कीमतें घट रही थीं। इसके पीछे कारण यह बताया जा रहा है कि यूरोप के एक देश साइप्रस के भुगतान संकट के चलते उसे अब वैश्विक वित्तीय संस्थाओं से उधार लेने के लिए अपने स्वयं के संसाधन भी जुटाने पड़ रहे हैं। ऐसे में साइप्रस की सरकार अपने सोने के भंडारों को बेच कर आवश्यक मुद्रा जुटाने की जुगत में है, जिसके चलते दुनिया में सोने की आपूर्ति बढ़ने के कारण सोने के भाव औंधे मुंह गिरे हैं। सामान्य तौर पर अल्पकाल में बाजार की प्रवृति यह होती है कि जब कीमत गिर रही होती है, तो लोगों को ऐसा लगने लगता है कि कीमत और ज्यादा गिरेगी और वे अपनी खरीद को और आगे टाल देते हैं। जब कभी कीमत बढ़ रही होती है, तो लोगों को ऐसा लगने लगता है कि कीमत और बढ़ेगी और वे तुरंत उस वस्तु की खरीद करने का प्रयास करते हैं। ऐसे में उस वस्तु की कीमत और ज्यादा बढ़ जाती है।
पिछले लगभग दो सप्ताह से जब सोने की कीमत घट रही थी, तो दुनिया में ऐसा माहौल बन रहा था कि यह कीमत और घटेगी और सोने की मांग वैश्विक स्तर पर घट रही थी। लेकिन भारत में इसके उलट हो रहा था। जौहरियों का कहना है कि उनका सारा स्टॉक पिछले दो सप्ताह में बिक चुका है, क्योंकि लोगों ने कम कीमत का फायदा उठाकर जम कर सोने की खरीदारी कर डाली। गौरतलब है कि पिछले लगभग कई वर्षों से सोने की कीमत देश और दुनिया में बढ़ती जा रही थी। दुनिया के बाजारों में जहां वर्ष 2005 में सोने की कीमत 445 डालर प्रति आउन्स (28.35 ग्राम) थी, वह 2011 तक बढ़कर 1702 डालर प्रति आउन्स तक पहुंच चुकी थी। बढ़ती कीमतों के चलते दुनिया में सोने की मांग घटने लगी थी, क्योंकि अब वे सोने को सही निवेश नहीं मान रहे थे। वर्ष 2000 में जहां सोने की मांग 3281 टन पहुंच गई थी, 2009 तक वह घटकर 2503 टन ही रह गई। इस मांग को घटाने में भारत में सोने की मांग घटने का एक खासा योगदान था, क्योंकि इस दौरान भारत द्वारा सोने की मांग 855 टन से घटकर 579 टन ही रह गई थी। लेकिन इसके साथ ही वास्तविकता यह है कि जवाहरात के लिए सोने की मांग भारत में लम्बे समय तक कभी नहीं घटी। दुनिया में सोने की कीमतों के बढ़ने के बावजूद भारत में सोने की मांग जवाहरात के रूप में बढ़ती ही रही। जहां वर्ष 2009 में भारत में जवाहरात के लिए सोने की मांग 442 टन ही थी, 2011 तक बढ़कर वह 618 टन पहुंच गई थी।
लूट का धन भी लगा सोने में
वर्ष 2008-09 में जहां भारत द्वारा मात्र 20.7 अरब डालर का सोना ही आयात होता था, 2009-10, 2010-11 और 2011-12 में वह बढ़कर क्रमश: 28.6, 40.5 और 56.3 अरब डालर तक पहुंच चुका था। कीमतों के बढ़ने के बावजूद देश में सोने की मांग बढ़ने का कोई विशेष कारण न होने के बावजूद सोने के आयात में वृद्धि काफी हैरानी और चिंता का सबब भी बन रही थी। इस विषय को यदि गहनता से देखा जाए तो पता चलता है कि इस दौरान सोने की मांग बढ़ने का प्रमुख कारण यह था कि भारत में सोने की छड़ों और बिस्कुटों की मांग वर्ष 2009 में 136 टन से बढ़कर 2011 में 368 टन और 2012 में 312 टन तक पहुंच गयी थी। माना जाता है कि शुद्ध रूप में सोने की छड़ों और बिस्कुटों की मांग बड़े निवेशकों से निकलती है। यह खुला सत्य है कि भारत में सोने की कितनी भी मात्रा को नकद के रूप में खरीदा जा सकता है। ऐसे में दुनिया में सोने की कीमत बढ़ने के बावजूद भारत में सोने की मांग बढ़ना कोई सामान्य घटना नहीं थी। बड़े-बड़े घोटालों से लूटा गया पैसा अब सोने में निवेश किया जाने लगा था, और भारत में बढ़ती जा रही सोने की मांग के चलते दुनिया में सोने की कीमत बढ़ती जा रही थी।
हालांकि भारत में सोने की मांग निरंतर बनी रही है, भारत में सोने का उत्पादन लगभग नगण्य है। इसलिए भारत अपने सोने की आवश्यकता के लिए हमेशा आयात पर निर्भर रहा है। जब भी कोई देश किसी भी वस्तु का इतना बड़ा आयातक हो, तो उसकी सौदेबाजी की क्षमता भी ज्यादा होती है। लेकिन विडम्बना यह है कि भारत सरकार ने इस संबंध में कभी कोई रणनीति तैयार नहीं की, और भारत कभी भी सोने की कीमत को अपने पक्ष में करवाने में सफल नहीं हुआ। इतिहास गवाह है कि भारत में सोने के आयात दुनिया (लंदन इत्यादि) के बाजारों द्वारा तय की गई कीमतों के आधार पर ही होता रहा है। भारत सरकार को इस विषय में विचार करना चाहिए।
भारत और शेष दुनिया में सोने की मांग (टनों में)
देश 1995 2000 2005 2009 2010 2011 2012
जापान 272 98 74 -9 -32 -30 7.6
इंग्लैंड 46 65 59 32 27 23 21
इटली 110 78 71 41 35 28 24
इंडोनेशिया 119 107 81 35 36 55 52
वियतनाम 36 60 61 73 81 101 77
तुकर्ी 139 207 248 107 115 143 119
संयुक्त राष्ट्र अमरीका 315 396 377 265 233 200 162
पूर्वी मध्य 365 498 388 246 238 188 178
वृहत चीन 427 329 293 472 607 822 818
भारत 477 855 722 579 963 986 864
अन्य को मिलाकर कुल 2865 3281 3092 2503 3055 3488 3164
सोने का मूल्य 384 279 445 972 1225 1702 1605
(डालर प्रति आउन्स)
स्रोत : वर्ल्ड गोल्ड काउन्सिल
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