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2जी मामले की जेपीसी रिपोर्ट से पहले बवाल, घोटाले की जांच में घोटाला
यूपीए सरकार के सबसे बड़े घोटालों में से एक 2जी घोटाले की संसदीय जांच अपने निर्णायक दौर में है। घोटाले की ड्राफ्ट रपट लीक करके सरकार अपनी नीयत और इरादा साफ कर चुकी है। ड्राफ्ट रपट में जिस तरह से तमाम सुबूतों और साक्ष्यों के बावजूद प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री को क्लीन चिट दी गई है, उससे ये तो साफ है कि संयुक्त संसदीय जांच (जेपीसी) की आखिरी बैठक घोटालेबाजों के नाम उजागर करने के लिए नहीं, बल्कि राजनीतिक सौदेबाजी और भयादोहन का एक और मौका होगी। वो भयादोहन जिसके दम पर यूपीए-2 सरकार अब तक का कार्यकाल पूरा कर सकी है।
प्रश्न ये है कि क्या वाकई 2जी घोटाले के असली सूत्रधार का चेहरा बेनकाब हो पाएगा? या सरकार माया और मुलायम के सहारे अपने कुकर्मों को फिर से ढंक लेगी। मायावती के 2 और मुलायम की पार्टी के एक सदस्य का रुख बेहद अहम हो गया है। जेपीसी में अध्यक्ष को छोड़कर बाकी 29 सदस्यों में से कम से कम 15 घोटाले में प्रधानमंत्री को क्लीनचिट दिए जाने के विरोध में अपनी राय जता चुके हैं। इनमें भाजपा, जनता दल-यूनाइटेड, अन्नाद्रमुक, द्रमुक, वामपंथी पार्टियां और बीजू जनता दल के सदस्य शामिल हैं। बीते सप्ताह लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार से मिलकर जेपीसी के अध्यक्ष पीसी चाको को हटाने की मांग करने वाले इन सदस्यों में तृणमूल कांग्रेस का प्रतिनिधि भी शामिल था। लिहाजा ये माना जा सकता है कि ममता भी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को बचाने की इस साजिश का हिस्सा बनने को तैयार नहीं है। समाजवादी पार्टी भी जेपीसी की ड्राफ्ट रपट पर खुलकर अपना एतराज जता रही है।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की भूमिका संदिग्ध होने के बावजूद उनसे एक गवाह के तौर पर भी पूछताछ न होना… मुख्य आरोपी ए राजा को अपना पक्ष रखने का मौका न देना… ये कुछ ऐसी बातें हैं जो बताती हैं कि दरअसल इस घोटाले की जांच भी किसी घोटाले से कम नहीं। लूट के लाखों करोड़ रुपयों में कुछ सौ करोड़ रुपये सरकार की सहयोगी डीएमके से जुड़े लोगों के पास गए। इसके सबूत सामने आ गए। उनके दो सबसे बड़े नेताओं ने जेल की हवा भी खा ली। लेकिन घोटाले की बाकी रकम कहां और किसके पास है, इसके सबूत न सिर्फ सरेआम छिपाए जा रहे हैं, बल्कि उन्हें झुठलाने की कोशिश भी हो रही है।
लीक हुई जेपीसी ड्राफ्ट रपट में कुछ बातें ऐसी हैं जो किसी चुटकुले से कम नहीं। मसलन 1.76 लाख करोड़ रुपये नुकसान का सीएजी का आंकलन गलत है। दूसरा ये कि अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के कार्यकाल में 40 हजार करोड़ का नुकसान हुआ। ये दोनों बातें ऐसी हैं जिन्हें साक्ष्य और तर्क के किसी पैमाने पर सही नहीं माना जा सकता। इन दोनों निष्कर्षों ने ये बात भी साबित कर दी है कि कलम भले ही पीसी चाको की हो, लेकिन परदे के पीछे कोई और ही है।
फिलहाल अब नजर जेपीसी की अगली बैठक पर है। इसमें बीजेपी और विपक्ष की दूसरी पार्टियां जांच की ड्राफ्ट रपट पर वोटिंग की मांग करेंगी और जाहिर है सरकार इसे होने नहीं देगी। क्योंकि इससे सच्चाई सामने आने का खतरा होगा। लेकिन ये कोशिश इस बात को साबित कर देगी कि 2जी घोटाले के पीछे महज एक मंत्री, एक प्रधानमंत्री या कैबिनेट नहीं, बल्कि लूट की वो संस्थागत व्यवस्था है, जिसे परदे के पीछे से एक परिवार चला रहा है। इस व्यवस्था में रानी सिर्फ एक है, बाकी सब नाम के राजा हैं। चन्द्र प्रकाश
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