जंजाल में नेपाल
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चुनाव आयोग ने खड़े किए हाथ–चुनाव कराने के नहींहालात
जैसे तैसे नेपाल के चार बड़े दलों ने भारी माथापच्ची के बाद सुलह-सफाई करके देश के मुख्य न्यायाधीश खिलराज रेग्मी को नई मंत्रिपरिषद् के गठन और उसके बाद आने वाले जून महीने में संविधान सभा के चुनाव कराने की कमान सौंपी थी। लेकिन अब इसके तीन हफ्ते बाद ही वहां जैसे हालात बने हैं उनमें जून में चुनाव कराने की संभावना दूर-दूर तक नजर नहीं आ रही है। वहां के चुनाव आयोग ने भी हाथ खड़े कर दिए हैं और घोषित कर दिया है कि जून में चुनाव कराना उसके वश की बात नहीं। कारण? कारण यह है कि नेपाल के उन बड़े चार दलों को छोड़कर बाकी के तमाम दलों ने नई कार्यपालिका के संवैधानिक दर्जे को मानने से इनकार कर दिया है। इतना ही नहीं, उनके मुताबिक, रेग्मी की यह सरकार चार बड़े दलों के गुट की 'कठपुतली' मात्र है, जिसमें सेवानिवृत्त नौकरशाह भरे पड़े हैं। यह एक तरह से सही भी है, क्योंकि नेपाल के सर्वोच्च न्यायालय को इस सरकार की संवैधानिक वैद्यता का फैसला करना बाकी है। रेग्मी पर खुद मुख्य न्यायाधीश पद छोड़ने का भारी दबाव है, क्योंकि मानवाधिकारवादी समूहों और कई नागरिक संगठनों को लगता है कि रेग्मी मुख्य न्यायाधीश पद पर बने रहे तो शायद न्यायालय (रेग्मी के मामले में) निडर और निष्पक्ष होकर काम नहीं कर पाएगा।
नेपाल के करीब 33 दलों ने राष्ट्रपति रामबरन यादव से अपील की है कि प्रधानमंत्री पद पर किसी राजनीतिज्ञ को बैठाएं। उन्होंने साफ कहा है कि जब तक माहौल ठीक नहीं हो जाएगा, वे चुनाव में भाग नहीं लेंगे। विरोध का झंडा उठाए इन दलों में नेपाल की एकीकृत कम्युनिस्ट पार्टी-माओवादी से टूटकर बनी नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी-माओवादी भी शामिल है। पूर्व प्रधानमंत्री और माओवादी नेता प्रचण्ड सहित रेग्मी को कुर्सी पर बैठाने संबंधी समझौते पर दस्तखत करने वाले नेपाली कांग्रेस के सुशील कोइराला और सीपीएन-यूएमएल के नेता झलनाथ खनाल के पीछे उनके अपने ही दलों के लोग पड़े हैं कि रेग्मी को कुर्सी पर क्यों बैठाया, जबकि दलों की केन्द्रीय समिति इसके खिलाफ थी।
राह से भटकती राजनीति के अलावा नेपाल में बदतर होती जा रही कानून-व्यवस्था करेले पर नीम ही चढ़ा रही है। हाल में राष्ट्रपति को पत्रकारों के किसी सम्मेलन का उद्घाटन करने पोखरा जाना था, पर तनाव के हालात होने के चलते नहीं जा पाए। उसके कुछ दिन बाद माओवादियों ने बरदिया जिले में खुद रेग्मी के खेतों के चारों तरफ लाल झण्डे गाढ़ कर अपना 'कब्जा' जता दिया। बाद में पुलिस ने झण्डे उखाड़ फेंके।
अपनी कुछ दिन पहले चुनाव सर्वेक्षण किए गए थे जिन्होंने बताया कि राजशाही और नेपाल की हिन्दू पहचान की समर्थक राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी नेपाल के लोगों के दिलों में घर करती जा रही है। लोग माओवादी दलों से दूर जा रहे हैं क्योंकि उन्हें समझ आने लगा है कि नेपाल के आज जैसे बुरे हाल हैं उसके लिए माओवादी ही जिम्मेदार हैं।
नेपाल के आज के हालात देखकर तो ऐसा ही लगता है कि चुनाव आगे सरकाए जाएंगे। लेकिन बड़ा सवाल है कि जिस जंजाल में आज नेपाल फंसा है उससे उबरने में उसे और कितना वक्त लगेगा?
दूतावासों के विदेशियों से कहा-
देश से चले जाओ
परमाणु हथियारों से लैस हो चुका उ. कोरिया रह-रहकर अपना अक्खड़पन दिखा देता है। उसने ताजा धमकी दी है कि द. कोरिया में रह रहे विदेशी देश छोड़कर निकल लें, क्योंकि लड़ाई छिड़ी तो वे मुसीबत में फंस जाएंगे। 9 अप्रैल को रायटर के हवाले से मिली जानकारी के मुताबिक, उ. कोरिया ने यह धमकी देकर एक बार फिर इस इलाके में गहराते जा रहे युद्ध के बादलों के और गहराने के संकेत दिए हैं। उ. कोरिया की इस तीखी कुनमुनाहट के पीछे हैं संयुक्त राष्ट्र संघ के उस पर लगाए गए प्रतिबंध।
उ. कोरिया ने पिछले दिनों द. कोरिया में बने विदेशी राजदूतावासों के अधिकारियों को भी उस देश से बाहर निकलने की सलाह दी। सियोल में कुछ राजदूतावासों ने अपने नागरिकों से देश से निकल जाने को कह भी दिया है। हालांकि उ. कोरिया की भड़ास के निशाने पर सबसे आगे मौजूद अमरीका का कहना है कि फिलहाल उसके नागरिकों को खतरे के कोई लक्षण नहीं हैं।
उ. कोरिया में द. कोरिया से सहयोग की आखिरी निशानी के रूप में चल रहे एक फैक्ट्री परिसर में उ. कोरियाई मजदूरों के काम पर आना बंद करने से उस पर भी ताले पड़ गए हैं। वहां में काम कर रहे सैकड़ों द. कोरियाई कामगार पसोपेश में हैं कि अपने देश लौटें या टिके रहें। उनके उ. कोरियाई साथियों के मुंह फूले हुए हैं और वे द. कोरिया वालों से ज्यादा बात नहीं करते। दोनों देशों के कामगारों वाली ये फैक्ट्रियां द. कोरिया से सटे उ. कोरियाई शहर कीसांग में हैं।
उ. कोरिया के गैरजिम्मेदाराना पैंतरों ने दुनिया के तमाम देशों को हैरत में डाला हुआ है। वाशिंगटन ने चीन से अपील की है कि वह उ. कोरिया को समझाए कि वह ऐसी पारा चढ़ाने की बातें न
आलोक गोस्वामी
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